30 मार्च, 2013
मैं साम्यवादी नहीं था :मार्टिन नीमोलर
कविता में किसान
रामप्रकाश कुशवाहा
चिंतक एवं लेखक
हिन्दी कविता में किसान-जीवन और यथार्थ की उपसिथति-अनुपसिथति के बढ़ते-घटते ग्राफ को समझने के लिए हमें साहित्य से पहले हिन्दी-क्षेत्र के अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र को समझना होगा । यह एक दुखद सच्चार्इ है कि औधोगिककरण,शहरीकरण,बाजारवाद और भूमण्डलीकरण की दिशा में हुए देश के विकास तथा सरकारी नीतियों नें
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आलोचना
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