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23 मार्च, 2021

विचारों के खेत में भगत सिंह की याद

©रामाज्ञा शशिधर
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भारतीय समाज और साहित्य को गांधी के विचार और आचरण ने जितना बदला है,भगत सिंह के विचार और आचरण उससे कम नहीं।
      गांधी का राजनीतिक सांस्कृतिक दुरुपयोग थोड़ा मुमकिन है लेकिन भगत सिंह के सामने आते ही राष्ट्र और मानवता के हमसफ़र और गद्दार अलग अलग चमकने लगते हैं।
      मेरे लिए भगत सिंह तक पहुंचना अपनी जन्मभूमि सिमरिया,प्रफुल्लचंद चाकी की स्थानिक विरासत,आज़ादी की लड़ाई में शामिल अपने लड़ाकू पुरखे किसान,महाकवि दिनकर साहित्य के माध्यम से हुआ।
       आजकल नख कटाकर क्रांतिकारी और गाली ताली
   चलाकर उग्र राष्ट्रवादी बनने वाले उचक्कों की बहार है।वे भगत सिंह से भागते और ओझा भगत को पूजते हैं।उन्हें कौन समझाए कि भाषणवीरता और विचारशीलता में बहुत फर्क है।
       किसान और उनके जवान बेटे 1857 में भी सच्चे देशभक्त थे,आज भी हैं और कल भी रहेंगे।
       लोदी,फिरंगी और भक्तरंगी आते हैं और इतिहास के खलनायक होकर पुरातत्व बन जाते हैं।
       मेरे किसान पिता को गौरव था कि एक बेटे के हाथ में बॉर्डर की हिफाज़त की बंदूक,दूसरे के हाथ में सृजन का हथौड़ा और मेरे हाथ में जड़ता चीरने की कलम थमायी।
       आजकल लुटेरे व्यापारी और उनके दल्ले लल्ले फर्जी
देशभक्ति और सत्ता की शक्ति के खेल खेल रहे हैं।झूठ और नफरत के खेल का पुरस्कार राख का तूफान होता है।
    बदलाव की आग और जुड़ाव के राग वाले चिरयुवा भगत सिंह की चेतना,विचार और स्वप्न को रूहानी प्रणाम!इंकलाब जिंदाबाद के अर्थ में ही भगत सिंह रहा करते हैं।

20 मार्च, 2021

कैफे कॉफी डे की कहानी:रामाज्ञा शशिधर

【कॉफी वॉर के दौर में सूफी कॉफी कथा!】
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El Cafe 80 में CCD की कॉफी मिल गई!
@अस्सी चौराहा,बनारस
कभी शाम को अस्सी जाइए और कॉफी लवर हों तो अस्सी की बेस्ट कॉफी यहां पीजिए।
     इस नए कॉफी कैफ़े के पास मेरे लिए जो सबसे बेहतरीन चीज है वह इसका लोक रूप और सीसीडी की कॉफी मशीन।इसके ऑनर kk हैं।कॉफी मशीन कम्पनी से किराए पर ली है।एस्प्रेसो हो या अमेरिकेनो।लट्टे हो या कपचिनो।सीडीडी का कोई जवाब नहीं।भारतीय कॉफी लवर के लिए।
      बनारस में हर असली का नकली ब्रांड मिल जाता है।यहां असली है।
      मैं हैरान हुआ जब सीसीडी के लोगोस जहां तहां दिखे।बनारस में सीसीडी के ओरिजनल तीन ब्रांच हैं।एक बीएचयू,दूसरा जेएचवी मॉल, तीसरा सारनाथ।बीएचयू के
शानदार कॉफी हाउस के बाहरी हिस्से को मतिमूढ़ों ने लॉक डाउन में तोड़ दिया है।पता नहीं आज भी वे किस दुनिया में रहते हैं और क्या चाहते हैं।जेएचवी की कॉफी बनारसी जेब के हिसाब से भारी है और बुद्धदेव का ज्ञान स्थल दूर।
     इसलिए आप El 80 में सस्ती और अच्छी सीसीडी कॉफी का आनंद ले सकते हैं।
            हमें जानना चाहिए कि सीसीडी की कहानी भारत में लघु उद्यम के कारपोरेट में बदलने और बड़े कारपोरेट से युद्ध में पिछड़ने की कहानी है।1996 में बंगलुरू से वीजी सिद्धार्थ नामक नौजवान उद्यमी के लघु प्रयास ने दुनिया के दर्जनाधिक देशों में हजारों ब्रांच से चित मंगलुरु कॉफी की पहचान दी।
     कहते हैं मध्यकाल में सूफी संत बूदन पश्चिम से एक मुट्ठी कॉफी बीन लेकर आए और दक्षिण की पहाड़ी पर छींट दिया।खास स्वाद और टेक्सचर की कॉफी के दुनिया भर में दीवाने हैं।
      एक साधरण युवा ने जिस देश को शानदार कॉफी पिलाई,उस देश की सरकार के इनकम टैक्स विभाग ने उस उद्यमी को आत्महत्या तक पहुंचा दिया।आखिर कुछ साल पहले उनका सपना टूट गया।
          इस कहानी का एक छोर जीएसटी,नोटबन्दी वाली सरकार के क्रूर ब्यरोक्रेटिक अभियान से जुड़ता है और दूसरा अमेरिकन स्टारबक,वरिस्ता जैसी महंगी और आक्रामक कम्पनी के भारतीय बाजार पर कब्जा करने के होड़ से।
      दिल्ली के माल और कनॉट प्लेस में स्टार बक की एक कॉफी 400 की मिलती है और सीसीडी की सौ पचास में।इस कम्पनी को खरीदने और निगलने की भी कोशिश अमेरिकन कम्पनी द्वारा हुई है।खैर।यह सब कॉफ़ी वॉर की कथा है।
        कॉफी वॉर के दौर में हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत जैसे क्लाइमेट में कॉफी चाय का रिश्ता
उपनिवेशवाद की लूट से भी जुड़ता है।चाय की नई कथा तो आप जानते ही हैं।
        इन सब बातों को छोड़िए।अगर आप कॉफी लवर हैं तो जाड़े में इसका सही मज़ा है।एक कप कॉफी से गरमागरम बहस और पसीना दोनों निकल सकते हैं।
           कॉफी का इतिहास फ्रेंच क्रांति से आजतक चार चरणों में बंट सकता है।पहला फ्रेंच क्रान्तिकालीन कॉफी युग,दूसरा उपनिवेशित राष्ट्रों में उपनिवेशक की कॉफी कथा,तीसरा उत्तर औपनिवेशिक कॉफी युग और चौथा 
भूमण्डलवादी कॉफी युग।कभी इस पर विस्तार से चर्चा होगी।
         आज तो सूफी संत बूदन के कॉफी बीज से बनी एस्प्रेसो के आनंद में डूबने दीजिए।
     ©रामाज्ञा शशिधर,बनारस

अस्सी:यह मार्क्स कैफे नहीं,मार्क'स कैफे है


【मार्क्स कैफे नहीं,मार्क'स कैफे 】
बताना जरूरी है।यह मार्क्स कैफे नहीं,मार्क'स कैफे है।
80 इवेंट्स घाट के चौराहे पर।
क्या पता जाहिल दिमागों की उपज के खेत से कोई सांढ़ आए और हनुमान पर हमला इसलिए कर दे क्योंकि उनके लंगोट का रंग 'लाल' है। 
चाय प्रपंच के संगीन दौर में कॉफी लवर्स की एक बड़ी पहचान कि वह डार्क रोस्टेड बीन से बनी ब्लैक कॉफी पीता है।वह भी चीनीमुक्त।मैं दिल्ली के इंडियन कॉफी हाउस के अपने ज़माने से ब्लैक पसंद करता हूँ।

कुछ बातें:
1. आज का सौंदर्यशास्त्र सत्तामूलक विचारधारा का पिछलग्गू हो गया है।उससे मुक्त होने की चुनौती उसके 
सामने है।
2.जीवन के सौंदर्यबोध को टेक्नोगति और बाजार की मति तय कर रही है।
3.अलगाव,अकेलापन और अवसाद आज के चित्त का
  आधार और आयतन है।साहित्य इसे दरकिनार नहीं कर सकता।
4 विषय,समस्या और अस्मिता केंद्रित सौंदर्य की केन्द्रीयता के स्थान पर यंत्र,प्रकृति और अवचेतन के त्रिकोण से निर्मित सौंदर्यशास्त्र साहित्य को भावी जीवन देगा।
5.खंडमानस के अनुभवों को इतिहासबोध और अखंड आख्यान से जोड़कर ही साहित्य का नया दर्शन निर्मित हो सकता है।
6.भविष्य का कला सिद्धांत राष्ट्रवाद और भूमण्डलवाद की जगह ग्लोकल चिंतन या सांस्कृतिक संकरण के इर्द गिर्द सभ्यता विमर्श करेगा।
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  【यह तस्वीर एक नवोदित आलोचक ने कॉफी विद मिल्क पीते हुए उतार ली है।उनसे साहित्य के नए सौंदर्यशास्त्र पर लंबा संवाद हुआ।उनकी स्मृति अच्छी है,इसलिए जरूर उस संवाद का रचनात्मक उपयोग करेंगे।】