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04 अक्तूबर, 2012

वालमार्ट खुद एक बड़ा बिचौलिया है


देविंदर शर्मा,अर्थशास्त्री 

रिटेल में एफडीआइ को कृषि की तमाम बीमारियों का रामबाण इलाज बताया जा रहा है। सरकार प्रचारित कर रही है कि इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बिचौलिये खत्म होंगे और उपभोक्ताओं को कम कीमत में सामान मिलेगा। साथ ही कृषि उपज की आपूर्ति में होने वाली बर्बादी पर अंकुश लगेगा। यह सब झूठ है। यह दोषपूर्ण नीति लागू करने के बाद उद्योग जगत तथा नीति निर्माताओं द्वारा सुविधाजनक बहाना है।

25 सितंबर, 2012

विकास और आधुनिकता पूँजीवादी सभ्यता के दमन-शोषण के 'बीज शब्द’



  
                      भूमिका : 'अदृश्य’ प्रतिरोध की पुनर्रचना


अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4, शालीमारगार्डन, एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-2648212,मोबाइल नं.9868380797,9871856053, ई-मेल: antika56@gmail.com

06 अगस्त, 2012

चिंतन दिशा : नए रचाव की समर्थ कविता

मेरा यह आलेख मुंबई से प्रकाशित लघु पत्रिका चिंतन दिशा के नए अंक में छपा है1 यहाँ उन पाठकों के लिए उपलब्ध है जो बुरे समय में नींद को नए कोण से देखने की इच्छा रखते हैंa- jkeizdk”k dq”kokgk            
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04 जून, 2012

अँधेरी कोठरी में अक्षर का ताना बाना

रामाज्ञा शशिधर 
उनका ताना बाना जगह बेजगह टूट चुका  है।अँधेरी कोठरी इस मुल्क की तरह।गर्दन तक लटके हुए जाले  फंदे की तरह।टंगा हुआ जकात अतीत के साये की तरह।सामने तनी पगिया जंजीर की तरह।कमर तक गड्ढे में धंसे हुए दोनों सूखे पांव कब्र की तरह।ताने को रेशम के बाने से भरती  हुई ढरकी  भविष्य की तरह।
                    
बनारस में बुनकर 
       

05 मार्च, 2012

कविता की दुनिया में एक नई आवाज़ : नामवर सिंह


दूरदर्शन और द पब्लिक एजेंडा (१-१५ मार्च २०१२)से साभार 

रामाज्ञा शशिधर हमारे जेएनयू की उपज हैं। पहली बार मैंने इसी रूप में इनको जाना था। आजकल तो काशी हिंदू विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं। अब चूंकि ये रहनेवाले सिमरिया घाट के हैं। बनारस में इनको नौकरी मिली, और बनारस में जहां वे रहते हैं, रामनगर के ठीक सामने गंगा किनारे सामने घाट है। तो सिमरिया घाट से सामने घाट तक ये पहुंचे हैं। यानी घाट घाट का पानी पीकर।

26 फ़रवरी, 2012

'बुरे समय में नींद' में शामिल मेरी ग्यारह प्रिय कविताएँ

 

दोस्तो!
कविता के पुराने प्रतिबद्ध कार्यकर्ता होने के बावजूद काव्य प्रकाशन और प्रदर्शन को लेकर मैं बेहद शर्मीला और आलसी आदमी हूँ.आप पाठकों की हौसला आफज़ाई का नतीजा है कि सितम्बर २०११ में अंतिका प्रकाशन से अपनी ६९ कविताओं का संकलन बुरे समय में नींद ला पाने में सफल हुआ.मेरे लिए यह उत्तेजक उपलब्धि है कि इस काव्य विरोधी समय में बुरे समय में नींद का पहला संस्करण सिर्फ छह महीने में बिक गया तथा प्रकाशक ने जल्द ही दूसरा संस्करण छापने का आश्वासन दिया है.अनेक दोस्तों ने कई महीने से लगातार मांग की है कि मैं एक साथ अपनी कुछ प्रिय कविताओं को परोसूं.आपके लिए मैं संकलन से अपनी ११ प्रिय कवितायें आपके हवाले कर रहा हूँ.उम्मीद है कि आस्वाद और मूल्य दोनों स्तरों पर आप इनसे जुड़कर आत्मीयता महसूस करेंगे.
आपका
रामाज्ञा शशिधर



12 फ़रवरी, 2012

काशी के एक नए कवि की कविता में जायफल की खुशबू

  
हिंदी कविता के प्राचीन गर्भगृह में एक संभावनाशील एवं बेहद अनूठे कवि के जन्म का स्वागत है! २०१२ के बसंत में प्रस्तुत अजय राय की पांच कविताएँ अँखुआ,जायफल,अडडकाशी, अखबारनवीस एवं रेत अपनी अंतर्वस्तु,संरचना और अंदाजेबयां में बिलकुल भिन्न और उम्मीद से भरी हैं.इन कविताओं में बनारस के अनुभव का विश्वसनीय भूगोल है,पत्रकारिता के रोजमर्रे की परतों के भीतर छोड़ दिए गए सच का पुनराख्यान है,मध्यवर्गीय ठहराव की आत्मालोचना है,सत्ता की हिंसा की शिनाख्त है,बौद्धिक वर्ग के बाँझ चरित का टकसाली चित्रण है तथा है समय और चीजों को बदल नहीं पाने की आत्मग्लानि. रोटी को दांव पर लगाकर प्रतिबद्ध पत्रकारिता को जीने वाले इस युवा कवि में रघुवीर सहाय की काव्य -परंपरा की असली और अगली यात्रा देखी जा सकती है.चुनौती और जोखिम से भरी हुई. यह इसलिए भी कि रघुवीरी काव्य परंपरा ने जहाँ एक ओर कविता कर्म को आसान बनाया वहीँ कविता की नागर धरती पर कूड़े का ऐसा  उत्तुंग ढेर लगाया कि पाठकों के लिए कविता सौ मन कूड़े में चावल के एक कण जैसी हो गई.कबीर की धरती के इस नए कवि को आपका प्यार मिलेगा,यह उम्मीद है-रामाज्ञा शशिधर 

30 जनवरी, 2012

बनारस में साहित्य की नयी लहर





 साहित्य में हाशिया ही केन्द्र होता है.बनारस में इन दिनों साहित्यिक घमासान चल रहा है.केवल जनवरी २०१२ में दर्जन से अधिक बहस-विमर्श हुए.२८ को हिंदी एम्ए के छात्रों ने 'भारतीय राष्ट्र की पुनर्व्याख्या :हाशिए का परिप्रेक्ष्य 'विषय पर ताप से भरी संगोष्ठी की जिसमे वीर भारत तलवार,कालीचरण स्नेही सहित दर्जन भर बहसकार थे.चिंतकों का मानना था कि राष्ट्र अपने जन्मकाल से ही हाशिये के दमन और लूट का औजार रहा है. .आदिवासी,दलित,मुसलमान,किसान,स्त्री,उपेक्षित राष्ट्रीयताएँ आज राज्य की चक्की में राष्ट्रवाद के नाम से ही पिस रहे हैं.कारपोरेट पूँजीवाद और पूंजीवादी राष्ट्रवाद के गठबंधन का उत्पीडन इसी तरह जारी रहा तो आने वाला समय एक भयानक उथल-पुथल से गुजरेगा.२०११ बनारस और बीएचयू के रचनात्मक-वैचारिक माहौल के लिए किसी भी हिंदी जनपद से ज्यादा सक्रिय साल रहा.चाहे शताब्दी कवियों की याद हो अथवा क्रन्तिकारी कवि वरवर राव का काव्य पाठ,महत्वपूर्ण रचनाओं-किताबों के प्रकाशन का मसला हो या साहित्य अकादेमी व् भारतभूषण अग्रवाल जैसे जरूरी पुरस्कारों की उपलब्धि,इरोम शर्मीला का आन्दोलन हो या अन्ना का,कविता,कहानी ,आलोचना,रिपोर्ताज -हर विधा में नयी लहर है,दोपहर है.-माडरेटर 

02 जनवरी, 2012

 कल गुरु काशीनाथ पचहत्तर के हो गए और मै बकैत .दुनिया जब नए साल का जन्म दिवस माल,रेस्तरां और हाल में पिज्जा,बेबीकोर्न क्रिप्सी,फेनी और कोलावेरी डी में डूबकर मना रही थी तब अस्सी के बकैत अड़ीबाज बर्थडे ब्वाय मि. के. नाथ की ७५ वी पार्टी को पोई की चाय संसद में गोल-लम्बे गुब्बारे,गेंदे-गुलाब के गुलदस्ते,गली के सरियल कुक्कुर की तरह केंकियाते  हार्न,पत्थर की रेलिंग पर चूतरों से घिसी चट्टी के सहारे  बोकिया रहे  थे.