पिछले साल की जनधर्मी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बनारस इस बार कविता पर ज्यादा नुकीला आयोजन कर रहा है.इस बार विद्यार्थियों की संसद का विचार हुआ है कि हिंदी समाज गहरे संकट से गुजर रहा है और हिंदी कविता के खेत में अन्न देने वाली फसलों पर गाजर घास का हमला बढ़ता जा रहा है.नकली और असली कविता का मानक खत्म किया जा रहा है.पुरस्कार और महंथई की राजनीति ने नकली और अजनबी कविता का बाजार गरम कर रखा है,वहीँ सच्ची और अच्छी कविता कारावास और कसाई के हवाले की जा रही है.हड़ताली पीढ़ी की आलोचना चूक चुकी है.
21 सितंबर, 2011
बनारस में राष्ट्रीय बहस:हमारा समय और आज की हिंदी कविता
10 सितंबर, 2011
बुरे समय में नींद ने कविता न पढ़ने के मिथ को तोडा :गौरीनाथ
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