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17 नवंबर, 2017

सिमरिया में बादल एक कवि का नाम है:शशिधर

::निधन स्मरण::
#दिनकर की धरती पर अब बादल नहीं गरजे-बरसेंगे!
(तस्वीर:1991,बाएं बादलजी,मध्य में बिहार विध्न परिषद अध्यक्ष उमेश्वर प वर्मा और दाएं मैं:
,सिमरिया,आंसू के अंगारे का दिनकर जयंती में विमोचन)
दिनकर आज रो रहे होंगे।उनकी संतान बादल खो गए।वे सिमरिया के खेत खलिहान मंच पर न तो कभी गरजेंगे और न ही बरसेंगे। दिनकर को अपने ही गाँव में लगातार 30 साल तक किसान और किशोर से जोड़ने वाले बादल की छाया का अभाव भरा नहीं जा सकता।
    इसबार ग्रीष्म में जब बादलजी बीमार पड़े तो रेलवे क्वार्टर प्रवीण,मोनू,फ़िरोज़ के साथ मैं पहुंचा।काफी खोजने के बाद मुलाक़ात हुई।बेड पर थे पर आवाज़ में वही मेघमन्द्र कड़क।बोले-"कुछ लोग मेरे बारे में अफवाह उड़ा रहे हैं।सिमरिया और दिनकर की मिटटी का हूँ।अभी छाती पर मूंग उगाता रहूंगा।"बहुत जल्दी हम नई फसलों को उदास छोड़कर चले गए।

चन्द्रकुमार शर्मा बादल दिनकर की मिट्टी के सच्चे समर्पित साहित्यकार थे।समकालीन कविता का एक ताकतवर कवि।दोमट मिट्टी की ऊर्जा से भरे।वे जीवन भर दिनकर और सिमरिया के लिए साहित्यिक सांस्कृतिक कार्य करते रहे।आदर्श ग्राम सिमरिया और दिनकर पर्व आज जिस भव्य महल  के रूप में प्रसिद्ध हैं उनमें सबसे मजबूत और पहली बुनियाद बादल जी ने डाली थी।बादल जी अतिसाधारण परिवार के होते हुए भी कभी स्वाभिमान,साहित्य और संस्कृति विरोधी मूल्यों से समझौते नहीं किए।सिमरिया को आदर्श बनाने के समर्पित जुनून में  उन्हें एक ओर गाँव के अपराधियों ने उत्पीड़ित किया दूसरी ओर दिनकर मंच के नए रण बांकुरों ने भी बाद में उनका दिनकर मंचीय सम्मान नहीं किया।उनकी आवाज़ दिनकर मंच पर सावन के बादल की तरह गरजती थी मानो वह दिनकर का ही स्वर हो।वे लंबे समय तक प्रलेस में रहे और वहां भी कुछ राजनीतिक जुगाडिए से उनकी अक्कड़ मुठभेड़ होती थी।
       बादलजी और दिनेश दा की जोड़ी अनूठीथी।दिनेश सिंह को ठीकेदार से दिनकर रसिक और अंतर्मुखी से जीभमुखी बनाने में बादल जी का अभूतपूर्व योगदान था।बादल जी गंगा किनारे मेरे पडोसी थे।वे गंगा के पानी से बने बादल थे इसलिए एक दियर के किसान समाज के सारे गुण उनमें रहे।सिमरिया में जब मैंने आँखें खोली तो दो आवाज़ों से घिरा पाया।एक तो गोलियों की गड़गड़ाहट और दूसरी दिनकर काव्य की ठनक।दिनकर को मैंने बादल के कंठ से पहली बार जाना। बादल जी का सिमरिया के विकास,सांस्कृतिक निर्माण,शिक्षा सुधार,अपराध मुक्ति,आदर्श ग्राम निर्माण और दिनकर पर्व निर्माण में नींव के पत्थर जैसा महत्व है।यह स्मृति ध्वंस और बाजारू वर्चस्व का बेहद क्रूर समय है।फिर भी उम्मीद करता हूँ कि सिमरिया दिनकर की भूमि होने के नाते बादल जी के सारे योगदान को स्मृति के खज़ाने से निकाल कर समय देवता की छाती पर लिख देगा।सिमरिया आज भी किसानों का गाँव है।किसान और खेत को जितना दिनकर चाहिए उतना ही बादल भी। अपने मंच उस्ताद को भींगी आँखों और मर्मी मन से श्रद्धांजलि देता हूँ।गाँव वाले बड़ी संख्या में बादल जी का मृत्यु उत्सव मनाए क्योंकि वे मरेंगे नहीं।काश मैं उनकी अर्थी को कन्धा देने गाँव में रहता!

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