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14 अगस्त, 2025

समानता के बिना स्वतंत्रता घोड़े की लीद है

"सच्ची स्वतंत्रता अमेज़ॉन या फ्लिपकार्ट या जिओ आउटलेट पर दो पैसे में नहीं मिलती है। उसके लिए अपने अस्तित्व और अस्मिता को दांव पर लगाना पड़ता है। स्वतंत्रता देह और आत्मा की वह अवस्था है जहां स्व पर अन्य का सारा दबाव हट जाता है। जागरण और स्वप्न में दमन व बंधन का प्रभाव नहीं महसूस होता है।
      यह दमन,दबाव और अलगाव का चरम युग है। मानस, देह,समाज और प्रकृति पर निगरानी रखी जा रही है। ऐसे में स्वतंत्रता पर पुनर्विचार जरूरी है।
       समानताविहीन स्वतंत्रता घोड़े की लीद से भी बेकार चीज़ है।
      आनंद गुलामी से भी मिलता है और स्वतंत्रता से भी।यह समता से मुक्त गुलामी के आनंद की खरीद बिक्री का दौर है। इसलिए स्वतंत्रता से बराबरी और लोकतंत्र का तत्व लापता है। स्वतंत्रता संकेतों और प्रतीकों के खोखले रैपर की तरह दिखने लगी है। वह किसी अन्य उत्पाद की तरह व्यवहार कर रही है।
      दरअसल स्वतंत्रता भाववाचक संज्ञा है।इसलिए भीतरी भावना और बाह्य ठोस के द्वंद्व के बिना वह 'इवेंट', 'फेस्टिवल', 'दिखावा', 'विज्ञापन', 'विलास' 'छद्म अहसास' होकर रह जाती है। स्वतंत्रता के साथ 'दिवस' और 'कर्मकांड' जैसा व्यवहार एक मनुष्य और राष्ट्र दोनों के लिए आत्मघाती कदम है।
      स्वतंत्रता घटना नहीं,प्रवाह है;तालाब नहीं, नदी है; बाहर नहीं,भीतर है; मेगा शो का पाखण्ड नहीं, सड़क से संसद तक दिल से दिल और हाथ से हाथ का अमृत स्पर्श है।
    
        स्वतंत्रता आसमान में उड़ान भरता हुआ प्रेम और आनंद का 'सर्वशक्तिशाली पंछी' है जिसके एक पंख पर 'समता का क्षितिज' है और दूसरे पर 'सहअस्तित्व का क्षितिज'।
        मैं स्वतंत्रता के लिए खुद को तबाह करने के लिए तैयार हूँ। मैंने लोहा लिया है। मैं आत्मा के गीत की गूंज के लिए बहुत कुछ खोने को तैयार हूँ। यह भाव और स्थिति ही मेरे लिए स्वतंत्रता का सुख है। वह मेरे पास है।उम्मीद है आपके पास भी होगा।"
{राश की डायरी}