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07 नवंबर, 2010

कविता घाट : ओबामा! ओ वाम!

ओबामा ओबामा
वाम लो वाम लो
तेरे विरोधी जो
सारे हैं वाम
रूस गया,इराक गया
गया अफ़गानिस्तान
धड्धड धराम


ओबामा ओबामा
बाम दो बाम लो
दोनों को दर्द बहुत
झंडू-शंकर ब्रांड हो


कटोरा-छाप बाम लो
डालर छाप बाम दो
पेट्रोलियम बाम लो
न्यूक्लियर बाम दो
जंगल-बूटी बाम लो
ग्रीन हंट बाम दो
नदिया नीलाम लो
पेप्सी कोला बाम दो
संसद गुलाम लो
व्हाइट हाउस बाम दो
स्टेच्यू लिबर्टी बाम दो


ओबामा ओबामा
हम तेरे पचपौनिया
हम तेरे खानसामा
नई जमींदारी की रैयत हैं हम
वारह्वीं सदी की पटरानी
अठारहवीं सदी की सती वामा
घर बाहर दोनों का हमसे ही काम लो


ओबामा ओबामा
दाम लो दाम लो
आलू का दाम लो
टमाटर का दाम लो 
लाख बीटी बीज दो
दो लाख किसान लो
ग्राम,सेवाग्राम लो
नया विश्वग्राम दो
तू ही मुखिया,तू ही सर्पंच
शेष सारा गांव है असभ्य चरमपंथ
खाज-खुजली,गुप्त रोगी
साबुन हमाम दो


ओबामा,ओबामा
बम दो बम दो
मंदी का मौसम है
वाशिंगटन बेदम है
रोजगार कम है
चारा नरम है
बारूद गरम है


बम दो बम दो
बम बम बराम
नागासाकी वियतनाम
काम तमाम
सभ्यता की नई शाम
ओबामा! ओ वाम!

2 टिप्‍पणियां:

ABHISHEK MISHRA ने कहा…

very nice post
hahahahaaaaa

गंगा सहाय मीणा ने कहा…

नवउपनिवेशवाद की गिरफ्त में आते भारत की कहानी कहती प्रस्‍तुत कविता ओबामा के भारत दौरे निहितार्थों की पोल खोलती है. बधाई.