रामाज्ञा शशिधर
उनका ताना बाना जगह बेजगह टूट चुका है।अँधेरी कोठरी इस मुल्क की तरह।गर्दन तक लटके हुए जाले फंदे की तरह।टंगा हुआ जकात अतीत के साये की तरह।सामने तनी पगिया जंजीर की तरह।कमर तक गड्ढे में धंसे हुए दोनों सूखे पांव कब्र की तरह।ताने को रेशम के बाने से भरती हुई ढरकी भविष्य की तरह।
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बनारस में बुनकर |
अकेला मोहम्मद ही नहीं,लाखों बनारसी बुनकर ,इस देश के बुनकर उलझा दिए गए हैं ।मोहम्मद के करघे के हजारों दर्द हैं,जगह जगह मसकी हुई साड़ी के पैबंद की तरह।पर हर्फ़ की कमी का दर्द गहरे सालता है उसे।बनारस की पाश कालोनी बृज इन्क्लेव जहाँ हिंदी के मशहूर लेखक काशीनाथ सिंह और सामाजिक न्याय के आलोचक चौथीराम यादव के भवन हैं,दो लाख बुनकरों की आबादी जहन्नुम की जिन्दगी जीती है।
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जहाँ कबीर के चेले रहते हैं |
इस विकसित होते राष्ट्र की योजनाओं में वहां के लिए सीवर नहीं हैं,पीने का साफ पानी नहीं है,गलियों सड़कों पर पटिया,अलकतरे नहीं हैं,अस्पताल नहीं है,स्कूल नहीं हैं,जच्चा बच्चा स्वाथ्य सुविधाएँ नहीं हैं.है तो सिर्फ धोखा,उपेक्षा,घृणा और बर्बादी के मर्सिया।वह जगह है बजरडीहा यानी विकास का बंजर डीह.
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वे सारे हमारी कतारों में शामिल: जनगायक युद्धेश |
दिल्ली से लुढ़कने के बाद सात सालों से मैं बुनकरों के दर्द को नजदीक से महसूस रहा हूँ।तक़रीबन नब्बे फीसदी अक्षर ज्ञान से महरूम इन बुनकरों के लिए 'आधुनिक राष्ट्र ' के विकास और कायदे कानून की हर गुफा एक तिलिस्म की तरह है।राष्ट्रीय सेवा योजना के छात्र केम्प के दौरान भी घर घर घूमने का मौका मिला।शिक्षा के अ भाव में गिरस्ता,गद्दीदार,बैंक,बुनकर प्रशासन,नेता,डाक्टर यहाँ तक कि आसपास के दलाल भी नोचते-खरोंचते रहते हैं।
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घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए |
ताना बाना स्कूल की शुरुआत इन्ही दुखों से मुक्ति के लिए नन्ही पहल है।बीएचयू के सामाजिक सरोकार में दिलचस्पी रखने वाले छात्रों के साथ हमने इसे मार्च से शुरू किया है। शाम 5-8 के बीच चलने वाले इस अनौपचारिक स्कूल की शिक्षा निःशुल्क है। किसी संस्था से कोई आर्थिक अनुदान लिए बिना व्यक्तिगत सहयोग से सब कुछ चल रहा है।दिलचस्प कि न केवल बच्चे बल्कि दिन भर साड़ी बुनने वाले दस्तकार शाम को बड़ी तादाद में दीन दुनिया सीखने आ रहे हैं।
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आखिर इस दर्द की दवा क्या है |
हम चाहते हैं कि बनारस और देश के वे लोग जो बुनकर समुदाय की मुक्ति के पसंद्गीर हैं वे इधर ध्यान दें.यह जरूरी है कि जल्दी से जल्दी इस इलाके में सरकारी प्राथमिक और उच्च शिखा के विद्यालय खुले।
आदमी और आदमी के बीच बढती जा रही खाई का सबसे भयावह उदाहरण बुनकर समुदाय की तंगहाली एवं बर्बादी है।यह समाज दिन रात खटर-पटर करता हुआ कब्रिस्तान है जहाँ बुनकर चलते फिरते मुर्दे हैं।