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20 मार्च, 2021

अस्सी:यह मार्क्स कैफे नहीं,मार्क'स कैफे है


【मार्क्स कैफे नहीं,मार्क'स कैफे 】
बताना जरूरी है।यह मार्क्स कैफे नहीं,मार्क'स कैफे है।
80 इवेंट्स घाट के चौराहे पर।
क्या पता जाहिल दिमागों की उपज के खेत से कोई सांढ़ आए और हनुमान पर हमला इसलिए कर दे क्योंकि उनके लंगोट का रंग 'लाल' है। 
चाय प्रपंच के संगीन दौर में कॉफी लवर्स की एक बड़ी पहचान कि वह डार्क रोस्टेड बीन से बनी ब्लैक कॉफी पीता है।वह भी चीनीमुक्त।मैं दिल्ली के इंडियन कॉफी हाउस के अपने ज़माने से ब्लैक पसंद करता हूँ।

कुछ बातें:
1. आज का सौंदर्यशास्त्र सत्तामूलक विचारधारा का पिछलग्गू हो गया है।उससे मुक्त होने की चुनौती उसके 
सामने है।
2.जीवन के सौंदर्यबोध को टेक्नोगति और बाजार की मति तय कर रही है।
3.अलगाव,अकेलापन और अवसाद आज के चित्त का
  आधार और आयतन है।साहित्य इसे दरकिनार नहीं कर सकता।
4 विषय,समस्या और अस्मिता केंद्रित सौंदर्य की केन्द्रीयता के स्थान पर यंत्र,प्रकृति और अवचेतन के त्रिकोण से निर्मित सौंदर्यशास्त्र साहित्य को भावी जीवन देगा।
5.खंडमानस के अनुभवों को इतिहासबोध और अखंड आख्यान से जोड़कर ही साहित्य का नया दर्शन निर्मित हो सकता है।
6.भविष्य का कला सिद्धांत राष्ट्रवाद और भूमण्डलवाद की जगह ग्लोकल चिंतन या सांस्कृतिक संकरण के इर्द गिर्द सभ्यता विमर्श करेगा।
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  【यह तस्वीर एक नवोदित आलोचक ने कॉफी विद मिल्क पीते हुए उतार ली है।उनसे साहित्य के नए सौंदर्यशास्त्र पर लंबा संवाद हुआ।उनकी स्मृति अच्छी है,इसलिए जरूर उस संवाद का रचनात्मक उपयोग करेंगे।】

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