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20 मार्च, 2021

कैफे कॉफी डे की कहानी:रामाज्ञा शशिधर

【कॉफी वॉर के दौर में सूफी कॉफी कथा!】
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El Cafe 80 में CCD की कॉफी मिल गई!
@अस्सी चौराहा,बनारस
कभी शाम को अस्सी जाइए और कॉफी लवर हों तो अस्सी की बेस्ट कॉफी यहां पीजिए।
     इस नए कॉफी कैफ़े के पास मेरे लिए जो सबसे बेहतरीन चीज है वह इसका लोक रूप और सीसीडी की कॉफी मशीन।इसके ऑनर kk हैं।कॉफी मशीन कम्पनी से किराए पर ली है।एस्प्रेसो हो या अमेरिकेनो।लट्टे हो या कपचिनो।सीडीडी का कोई जवाब नहीं।भारतीय कॉफी लवर के लिए।
      बनारस में हर असली का नकली ब्रांड मिल जाता है।यहां असली है।
      मैं हैरान हुआ जब सीसीडी के लोगोस जहां तहां दिखे।बनारस में सीसीडी के ओरिजनल तीन ब्रांच हैं।एक बीएचयू,दूसरा जेएचवी मॉल, तीसरा सारनाथ।बीएचयू के
शानदार कॉफी हाउस के बाहरी हिस्से को मतिमूढ़ों ने लॉक डाउन में तोड़ दिया है।पता नहीं आज भी वे किस दुनिया में रहते हैं और क्या चाहते हैं।जेएचवी की कॉफी बनारसी जेब के हिसाब से भारी है और बुद्धदेव का ज्ञान स्थल दूर।
     इसलिए आप El 80 में सस्ती और अच्छी सीसीडी कॉफी का आनंद ले सकते हैं।
            हमें जानना चाहिए कि सीसीडी की कहानी भारत में लघु उद्यम के कारपोरेट में बदलने और बड़े कारपोरेट से युद्ध में पिछड़ने की कहानी है।1996 में बंगलुरू से वीजी सिद्धार्थ नामक नौजवान उद्यमी के लघु प्रयास ने दुनिया के दर्जनाधिक देशों में हजारों ब्रांच से चित मंगलुरु कॉफी की पहचान दी।
     कहते हैं मध्यकाल में सूफी संत बूदन पश्चिम से एक मुट्ठी कॉफी बीन लेकर आए और दक्षिण की पहाड़ी पर छींट दिया।खास स्वाद और टेक्सचर की कॉफी के दुनिया भर में दीवाने हैं।
      एक साधरण युवा ने जिस देश को शानदार कॉफी पिलाई,उस देश की सरकार के इनकम टैक्स विभाग ने उस उद्यमी को आत्महत्या तक पहुंचा दिया।आखिर कुछ साल पहले उनका सपना टूट गया।
          इस कहानी का एक छोर जीएसटी,नोटबन्दी वाली सरकार के क्रूर ब्यरोक्रेटिक अभियान से जुड़ता है और दूसरा अमेरिकन स्टारबक,वरिस्ता जैसी महंगी और आक्रामक कम्पनी के भारतीय बाजार पर कब्जा करने के होड़ से।
      दिल्ली के माल और कनॉट प्लेस में स्टार बक की एक कॉफी 400 की मिलती है और सीसीडी की सौ पचास में।इस कम्पनी को खरीदने और निगलने की भी कोशिश अमेरिकन कम्पनी द्वारा हुई है।खैर।यह सब कॉफ़ी वॉर की कथा है।
        कॉफी वॉर के दौर में हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत जैसे क्लाइमेट में कॉफी चाय का रिश्ता
उपनिवेशवाद की लूट से भी जुड़ता है।चाय की नई कथा तो आप जानते ही हैं।
        इन सब बातों को छोड़िए।अगर आप कॉफी लवर हैं तो जाड़े में इसका सही मज़ा है।एक कप कॉफी से गरमागरम बहस और पसीना दोनों निकल सकते हैं।
           कॉफी का इतिहास फ्रेंच क्रांति से आजतक चार चरणों में बंट सकता है।पहला फ्रेंच क्रान्तिकालीन कॉफी युग,दूसरा उपनिवेशित राष्ट्रों में उपनिवेशक की कॉफी कथा,तीसरा उत्तर औपनिवेशिक कॉफी युग और चौथा 
भूमण्डलवादी कॉफी युग।कभी इस पर विस्तार से चर्चा होगी।
         आज तो सूफी संत बूदन के कॉफी बीज से बनी एस्प्रेसो के आनंद में डूबने दीजिए।
     ©रामाज्ञा शशिधर,बनारस

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