रामाज्ञा शशिधर :मेरी डायरी के पन्नो से पुरानी थाती
#काशी में माछ रोटी #
काशी के दशाश्वमेध घाट पर जब परमहंस का प्रिय प्रसाद,
विवेकानन्द का परमप्रिय व्यंजन और
बाबा नागार्जुन की सुस्वादू तरकारी
से मुलाकात हुई तो मेरे लिए काशी
और हिन्दू तत्व का दूसरा द्वार खुला।
बड़े प्रेम से इचना उर्फ़ झींगा उर्फ़ प्रांस उर्फ़ चेम्मिन को बंगाली शैली
में बनाया। न्यौता तो कइयों को दिया
लेकिन पास सिर्फ चौबे महाराज हुए।
मक्के की रोटी के साथ नारियल पेस्ट
वाले माछ खाकर चौबे बाबा 24 घंटे
सोए रह गए। बोले ऐसा नशा तो कभी
आया ही नहीं। बेचारे तिवारी जी,
उपाध्याय जी,पांडे जी लोकलाज के
फेर में पानी फल से वंचित रह गए।
जब से उन्हें यह पता चला है कि विवेका
नन्द के अंतरराष्ट्रीय दिमाग में माछ
का बड़ा योगदान था वे अपनी खोपड़ी
से बेहद खफा हैं। अगली बार मैं 10
शैलियों में अपनी चिर परिचित दूसरी
पाक शैली अर्थात मैथिल झोर शैली का प्रयोग
करूंगा। आप भी कंठी तोड़कर आ जाइए।
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