√रामाज्ञा शशिधर के की बोर्ड से
{बनारस में हिंदी}
【हिंदी दिवस पर 'हिंदी गाथा' का लोकार्पण】
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आज भीतरी और बाहरी गुलाम चेतना से लड़ने वाली हिंदी का स्मरण दिवस है।ठीक से याद कीजिए और कराइए।
कबीर से नज़ीर तक।ईस्ट इंडिया कम्पनी से से आज़ादी के बाद तक।बनारस हिंदी की सामान्य व विशेष निर्मिति का उत्पादन,प्रयोग व प्रतिनिधित्व स्थल रहा है।
स्त्री मुक्ति के लिए भारतेंदु का अभियान हो,ज्ञान निर्माण और स्वाधीनता संघर्ष के लिए नागरी प्रचारिणी सभा की विराट पहल हो,किसानों की कानूनी मुक्ति के लिए मालवीय जी का कचहरी में हिंदी प्रयोग का संघर्ष हो या आज़ाद भारत का बीएचयू से आरम्भ अंग्रेजी हटाओ आंदोलन।बनारस की हिंदी यात्रा की कहानी लंबी,गहरी और बहुआयामी है।
हिंदी के इन्हीं सिपाहियों में एक सिपाही का नाम है लोलार्क द्विवेदी।लोलार्क द्विवेदी अस्सी साहित्य मंच के अभिभावक हैं।वे अंग्रेजी हटाओ आंदोलन से आज तक लेखन,प्रकाशन,शब्द और कर्म से हिंदी के लिए डटे हैं।वे हमेशा अस्सी की सड़क पर
खड़ी बोली की तरह खड़े मिलते हैं।
लोलार्क द्विवेदी के सुविख्यात आर्य भाषा संस्थान प्रकाशन से आधुनिक खड़ी बोली हिंदी के जन्म और विकास पर एक दिलचस्प किताब छपी है-खड़ी बोली की विकास यात्रा।लेखक हैं हिंदी मर्मज्ञ व शोधकर्ता केशरी नारायण।यह किताब ईस्ट इंडिया कम्पनी व फोर्ट विलयम कॉलेज की हिंदी निर्मिति से लेकर हिंदी उर्दू विवाद और भारत सरकार की भाषा नीति तक अनेक पहलुओं को जन हिंदी की शैली में प्रस्तुत करती है।
अस्सी चौराहे की बच्चन सरदार की अड़ी पर इसका लोकार्पण हम लोग कर चुके हैं।आप यह किताब तो पढ़िए ही,जब भी अस्सी जाइए तो बाजार की महामारी से मुक्त होकर हिंदी के रीयल व सीमांत हीरो लोलार्क द्विवेदी से मिलिए।वे त्रिलोचन के अभिनव संस्करण लगते हैं।
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