Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

10 जनवरी, 2019

चबूतरे पर गिलहरी,शिशु और विमर्श का स्वागत है।

/मालवीय चबूतरा सत्रारंभ संवाद/
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
☺️चबूतरे पर गिलहरी और शिशु का स्वागत है!😊
                        👍👍👍👍
धूप की तरह किलकते एक नन्हें शिशु ने साहस के साथ कहा-यहां क्या हो रहा है?
मैंने कहा-पढाई।
सवाल-पेड़ के नीचे पढाई?
जवाब-यहां धूप,ऑक्सीजन,आज़ादी और छाया सबकुछ मिलता है इसीलिए।
सवाल-सनडे को भी पढाई?
जवाब-बड़े बच्चे को सनडे को भी पढ़ना चाहिए।
सवाल-क्या फीस भी लगती है?
जवाब-बिल्कुल नहीं।हर रोज पैसे लेकर क्लास में पढ़ाता हूँ।यहां फ्री क्लास होती है।
जवाब-मैं तो खेलने आया हूँ।ग्राउंड खोज रहा हूँ।
सवाल-क्या आप भी पढ़ने आओगे?
जवाब-कभी कभी।
--और मैंने देखा,एक गिलहरी सुबह की खिली धूप में दोनों हाथों से कुछ कुतर रही थी।अचानक सरसराती हुई पेड़ में खो गई।
#########
अब शुरू होगी कक्षा!!!
#शोध का सबसे बड़ा वैरी कटपेस्ट धंधा है।#
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
"-शोध तथ्य की पुनर्खोज और आइडिया का आविष्कार होने के कारण एक गम्भीर मौलिक कार्य है।
-चेतना और अस्तित्व के सरोकारी द्वंद्व के बिना ,सेल्फ और अन्य के द्वंद्व के बिना कोई बड़ा और महान शोध असंभव है।
-शोध को ग़ैरमौलिक और रद्दी प्रचार करने वाली चेतना वस्तुतः ज्ञानकाण्ड में खोखली और लूट झूठकांड में फरहर होती है।
-शोध की मौलिकता के अभाव का बड़ा कारण हमारे शिक्षक छात्र और विश्वविद्यालय की गैरजिम्मेदार भूमिका है वहीं शिक्षा का अनावश्यक राजनीतीकरण भी है।

-शोध की मौलिकता सतत आइडिया ऑब्जेक्ट सम्बन्ध और उसपर चिंतन है।
-आजकल पिछली खिड़की की छलांग से शोधकर्मी होने की कर्महीन उथल पुथल है जिसका परिणाम है कि चेतना विकसित होने के बदले कटपेस्ट मास्टर हो जाती है।
-आलोचना के ह्रास का एक बड़ा कारण शोध में घटती रुचि भी है।
- ज्ञान मंच के किसी स्तर पर मौलिकता और गुणवत्ता को उत्साह और मदद नहीं मिलने से जनता के टैक्स की बड़ी राशि रोजगार पेंशन भत्ता की शक्ल में बदल रही है।
-ज्ञान की बुनियादी निर्मिति मौलिक विचार से जुड़ी होने के कारण शोध एक मौलिक उद्यम है।
-जो शिक्षक छात्र शिक्षक मानवता  सेवा के इस जरूरी कर्म को ग़ैरमौलिक और गैरजरूरी बनाने की कोशिश करते हैं वे गर्दभ की तरह हैं जो पीठ पर लदी चन्दन की लकड़ी का केवल भार ढोते हैं लेकिन उसके गुण से महरूम रह जाते हैं।"
@वक्तव्य:रामाज्ञा शशिधर

कोई टिप्पणी नहीं: