//मालवीय चबूतरा:रिसर्च और नॉलेज की सेल्फी://
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@रामाज्ञा शशिधर,संस्थापक,चबूतरा शिक्षक
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बहस जारी है...मेला गतिशील है...चिड़ियाँ परवाज पर हैं...पेड़ अपनी जगह तना है।बहस जारी है...
अगर ज्ञान उधार का सुधार नहीं है;नकद की नीमकौड़ी है तो यह शोध पर भी लागू होगा।
यूजीसी का नया नोटिफिकेशन ऑनलाइन कहता है...अच्छे शिक्षक और छात्र की कसौटी अच्छा शोधार्थी होना है।मौलिक और गुणवत्त्तापूर्ण शोध ही शिक्षक और छात्र का ज्ञान धर्म है। शोध की साहित्यिक चोरी बंद होनी चाहिए।
शोध का अर्थ रेयर और अनछुआ विषय हो,नए नए और जरूरी सवाल हों,मूलगामी विचार(कॉग्निटिव आइडिया)हो,ताज़गी से भरे तथ्य स्रोत हों,वैचारिक यात्रा की सुलझी और भविष्यमुखी दिशा हो।
यूजीसी की और शिक्षा संस्थानों की सेहत इन दिनों ज्यादा गड़बड़ है।शोध को हतोत्साहित करने वाले कारकों की
संख्या बढ़ती जा रही है।कट एन्ड पेस्ट की आंधी है।
13 सालों के अध्यापन में 13 ऐसे शोधार्थी मेरे पास नहीं आए होंगे जिन्होंने रेयर शोध प्रारूप पर छह माह श्रम कर शोधार्थी होने और पंजीयन की इच्छा रखी हो।
पांव लागी, आशीर्वाद चाहिए,जेआरएफ
खत्म हो रहा है,मैं जेआरएफ हूँ इसलिए मेरा तो नामांकन पहले होना चाहिए,कृपा दृष्टि बनी रहे ये पॉपुलर शोध मुहावरे मिलते हैं।
नौकरी दिलाने देने में कौन गुरु तेज है इसपर गहन शोध चलता रहता है।
संकीर्ण सोच ने भारतीय शिक्षा संस्थानों में छात्रों का बड़ा नुकसान किया है।इस कारण अक्सर क्षमतावान शोधार्थी भी शोध की पटरी त्याग अर्थी
की पटरी पर चलने लगते हैं।
आजकल दो तरह के शोधर्थियों की चर्चा चलती है-रेगुलरिया शोधकर्मी और पेंशनियाँ शोधकर्मी।जो गाइड सेरेगुलर जुड़े रहे वे रेगुलरिया और जो महीने में एक दिन फेलोशिप रजिस्टर पर कलम घुमाने का
कष्ट करें वे पेंशनियाँ।
बातें और समस्याएं कई हैं जिनका समाधान बड़े अकेडमिक संवाद और श्रम के मुमकिन नहीं हैं।लेकिन यदि भारत को दुनिया के शिखर 200 विश्वविद्यालयों में शामिल
होना है तो केवल 'नेट/जेआरएफ फॉर असिस्टेंट प्रोफेसर'
जैसे दस्तावेजों से काम नहीं चलेगा।
अंत मे!
...वे परेशान हैं...मनमाफिक सब कुछ नहीं हो पा रहा है...सिस्टम ढिलाई को कसना चाहता है...योग्य अध्यापक कड़ाई
से नीरक्षीर विवेक कर रहे हैं...
वक्त आ गया है ज्ञान को मिशन और प्रोफेशन से जोड़ा जाए...क्लर्क और अकडेमिशियन, कटपेस्ट और गुणवत्तायुक्त,नकली और असली,साधो और साधक,साहित्य चोर और नीतिज्ञ के बीच लकीर खींची जाए।ज्ञान और शोध को समाज के लिए उपयोगी बनाया जाए।
दीपक की लौ से सिर्फ रोशनी ही नहीं मिलती, सीलन भी सूखती है,कोने अतरे के अदृश्य सामान भी दिखते हैं,
और फतिंगे के पंख झड़ते हैं।
13 जनवरी, 2019
मालवीय चबूतरा रिसर्च और नॉलेज की सेल्फी: रामाज्ञा शशिधर
साहित्य लेखन , अध्यापन, पत्रकारिता और एक्टिविज्म में सक्रिय. शिक्षा-एम्.फिल. जामिया मिल्लिया इस्लामिया तथा पी.एचडी.,जे.एन.यू.से.
समयांतर(मासिक दिल्ली) के प्रथम अंक से ७ साल तक संपादन सहयोग.इप्टा के लिए गीत लेखन.बिहार और दिल्ली जलेस में १५ साल सक्रिय .अभी किसी लेखक सगठन में नहीं.किसान आन्दोलन और हिंदी साहित्य पर विशेष अनुसन्धान.पुस्तकालय अभियान, साक्षरता अभियान और कापरेटिव किसान आन्दोलन के मंचों पर सक्रिय. . प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए कार्य. हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं हंस,कथादेश,नया ज्ञानोदय,वागर्थ,समयांतर,साक्षात्कार,आजकल,युद्धरत आम आदमी,हिंदुस्तान,राष्ट्रीय सहारा,हम दलित,प्रस्थान,पक्षधर,अभिनव कदम,बया आदि में रचनाएँ प्रकाशित.
किताबें प्रकाशित -1.बुरे समय में नींद 2.किसान आंदोलन की साहित्यिक ज़मीन 3.विशाल ब्लेड पर सोयी हुई लड़की 4.आंसू के अंगारे 5. संस्कृति का क्रन्तिकारी पहलू 6.बाढ़ और कविता 7.कबीर से उत्तर कबीर
फ़िलहाल बनारस के बुनकरों का अध्ययन.प्रतिबिम्ब और तानाबाना दो साहित्यिक मंचों का संचालन.
सम्प्रति: बीएचयू, हिंदी विभाग में वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर के पद पर अध्यापन.
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