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02 जनवरी, 2019

मेरे बर्थडे में कन्फ्यूजन क्यों है:रामाज्ञा शशिधर,बनारस

🎂
दोस्तो!
चप्पू बंद हैं,डोंगी खामोश हैं,पतवार बीमार हैं,मांझी भूख की लकड़ी की आग हो बैठे हैं।31 और 1 को उछाली गई बोतलें सड़कों को गुलज़ार कर रही हैं,मशरूमियां रेस्टुरेंटों  से फेंके गए फूड्स अपनी बासी बू से शहर को तर किए हुए है।बीएचयू ब्वाय जोमैटो ब्वाय में बदल गया है और हर जगह स्विगी स्पाइस सांग हैंग स्लिप मोड में थिर है।
           ज़माना मेमोरी लॉस का ऐसा शिकार है और सोशल मीडिया इतना बड़ा आभासी परिवार है कि आदमी  फेसबुक को अपनी सौ ज़िम्मेदारियाँ सौंप अपना बर्थडेट तक भूला रहता है।
      तब अच्छा हुआ कि मेरा बर्थ डेट कंफ्यूजनग्रस्त हो गया।आंग्ल और संस्कृत,मुद्रित और मौखिक,पोथी और अच्छरहीनता के पाटन के बीच फंसकर मुझे
बर्थडे नाटक से राहत मिल गई है।या यूं कहिए कि बर्थडे
कन्फ्यूजन की भेंट चढ़ गया है।इसलिए 2019 मेरे जन्मदिन का लिप ईयर रहेगा।
      बाऊ रहे नहीं।रहते भी तो कोदो खर्च किया नहीं था पाठशाला में।पंडित को खदेड़ते थे और कुदाल को गंगा जल चढ़ाते थे।
     माई मौत के मुंह से लौटने के बाद बमबम है और उसकी स्मृति भरोसे की कहानी है।माई बताती रही है-तू
सबसे बड़ी गंगा बाढ़ के डेढ़ साल पहले पूस में पैदा हुआ।कृष्ण पच्छ की दुतिया थी।सांझ का वक्त था। तेरा बड़ा भाई मर गया था इसलिए तू बुआ के घर गढ़हरा में पैदा हुआ।सांझ का गोधूलि वेला था।सूरज ढल रहा था।
कड़ाके की ठंड थी।पता नहीं खड़मास का है कि नहीं।

      मेरी कोई वास्तविक जन्मतिथि अंग्रेजी और कुंडली फुंडली में नहीं है।
       बनारस आने से पहले ज्योतिषी मुझे देखकर भागते थे और बनारस आकर ज्योतिषियों से मैं भागता रहा हूँ।एक कारण तो मेरा नाशपंथी और विज्ञानपंथी होना है।दूसरे,नगर में मैं एक दर्जन नजूमियों को जानता हूँ जो पहले हलवाईगिरी करते थे या कट्टा चलाते थे या रगुल थे या गाउल थे या खोटर थे या भड्डर थे।जिनके जीवन मे खुद प्रेम नहीं वे दूसरे को लव मैरिज का ग्रह रत्न बांटते हैं।डेढ़ ज्योतिषी ऐसे हैं जो मुर्दे की भाग्य रेखा पढ़कर उन्हें ज़िंदा होने का उपाय बताते हैं।कुछ किताबी हिसाबी हैं लेकिन मुझे फलित में विश्वास नहीं।
     मेरा मसला गणित का है।सो खोज जारी है।
       मैं मौज मस्ती ज्ञान विज्ञान में सांस लुटा दूं लेकिन सौ
बार ठगों से ठगाकर भी न ठग हो पाया न ठगों को लाइक
करता हूँ।ज़माना तो वही है।गंगा में जल भले न हो काशी में आजकल ठगों और महाठगों की बाढ़ है।
       अब अड़ी के अडीबाजों ने मेरा बर्थ डेट ढूंढने के ठेका लिया है।
     मुझे भी सुअवसर मिल गया है कि नावबंदी की तरह
बर्थडेबन्दी कर दूं।अपनी चम्मचगिरी और नकली प्रशंसा से दूर होकर यह देखूँ कि कुछ याद के लायक हूँ भी या धरती का बोझ ही हूँ।विषधर ओझा देश का बोझा।
      सोचा था सेल्फी सेलिब्रशन करूं। दिल्ली से अस्सी कैम्पस तक ठेके प्रलोभन पर गतिशील सेल्फ़ी ईम्प्लॉयर्स और सेल्फ़ीमैनों की रौनक देखकर एक बार मन हुआ कि मैदान में उतर ही जाऊं लेकिन ऑक्सफ़ोर्ड के मनोवैज्ञानिक  प्रोफेसरों के साइको सर्वेक्षण की खबर ने हिला दिया-एक दिन में 6 और उससे ज्यादा सेल्फी लगाने वाला उच्च स्तरीय मनोविक्षिप्त रोगी होता है।
             सचाई तो यही है कि तरंग मीडिया की वर्चुअल
सोसाइटी में में रियल सोसाइटी सिकुड़ रही है।बधाईवालों को मिठाई नहीं मिलती और मिठाईवालों से बधाई नहीं मिलती।
    # 2019 में मेरे पास जन्म लेने के कई चांस हैं।
   # यह पोस्ट मॉडर्न कन्फ्यूजन ही मेरे जन्म लेने का सॉल्यूशन है।
  #  चाहे दुआ दें या बद्दुआ जवानी बनी रहेगी और मेरा X फैक्टर ज़माने पर बना रहेगा।आमीन💐

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