वे हिंदी की किसी संस्था से अकेले बड़े थे।वे भाषा के सच्चे सागर थे।
20 साल तक अनवरत श्रम करते हुए 1800 पृष्ठों और 268000 अभिव्यक्तियों की पांडुलिपि से हिंदी का समांतर कोश तैयार करने वाले अरविंद कुमार आज 95 वर्ष की उम्र में कोविड के आक्रमण से गुज़र गए।
उन्होंने 1960 के दशक में फिल्मी पत्रिका माधुरी का संपादन ही नहीं किया बल्कि उसके माध्यम से कला सिनेमा आंदोलन को दिशा भी दी।समांतर सिनेमा जैसे पद को रचने का सार्थक कार्य किया।
हिंदी भाषा और समाज को अरविंद कुमार और उनकी पत्नी कुसुम जी के श्रम और योगदान का ऋणी होना चाहिए ।
हिंदी विभाग,बीएचयू,मालवीय चबूतरा,ताना बाना(बनारस)प्रतिबिम्ब(बेगूसराय) की ओर से उन्हें मार्मिक श्रद्धांजलि।
-रामाज्ञा शशिधर,बनारस
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें