©रामाज्ञा शशिधर
सोशल मीडिया पर कोविड 19 जैसी महामारी को भय और भरम बताने और हल्के में लेने का एक सरल और सत्तामुखी ट्रेंड बढ़ता जा रहा है।यह कॉमन चेतना को कन्फ्यूज करने और खतरे में ढकेलने की
कुसमय कोशिश है।
मैं इस परिपाटी से असहमत हूँ।यह खाए अघाए और सेफ जोन में बैठे लोगों का जुमला हो सकता है या अनजान लोगों की अज्ञानता या दाढ़ीबाबा बनने का शौक!
आप सिक्के का एक पहलू रखकर लोगों को भय और भरम से मुक्त रहने का दृष्टांत दे रहे हैं।इतिहासबोध बताता है कि इसी प्लेग और स्पेनिश फ्लू (1892-1922) से भारत में लाखों नहीं,करोड़ में लोगों का सफाया हो गया था।तब आबादी भी कम थी।
इटली,जर्मनी,ब्रिटेन,अमेरिका की बड़ी आबादी स्वाहा हो गई है।
हमारा ग्रामीण साथी मोनू चला गया।बनारस और देश में 100 से अधिक परिचित 15 दिन के अंदर खत्म हो गए।
जीवमनोविज्ञान का अध्ययन बताता है कि भूकम्प,बाढ़,आपदा,दुश्मन को वे पशु पक्षी पहले भांप लेते हैं जो भय और सतर्कता का अभ्यास करते हैं।कृषि,टेक्नोलॉजी,भोग और आलस्य ने मनुष्य का बड़ा नुकसान किया है।जंगल में वे ज्यादा स्मार्ट थे।
दूसरी बात।कोरोना का नया वेरिएंट दो गज की दूरी,मास्क है जरूरी से आगे निकल गया है।लेंसेन्ट और विश्व स्वास्थ्य संगठन का तथ्य गौरतलब है कि
यह और हल्का होकर हवा में लंबे समय तक बना रहता और कई गुना ज्यादा संक्रमित करता है।
महानगरों के बाद भैया एक्सप्रेस की वापसी से अब गांवों की बारी है।साथ ही इस म्यूटेट ने ऑक्सीजन की जरूरत को बढ़ा दिया है।
बुद्धिजीवियों और जनजीवियों को यह सवाल चीखकर उठाना चाहिए कि एक साल में बेड, ऑक्सीजन,दवा,वेक्सिनेशन और पूरे हेल्थ सिस्टम को जनता की जरूरत के हिसाब से क्यों मजबूत नहीं किया गया।
ब्रांडिंग,वाहवाही,मंदिर निर्माण,चुनाव,कुम्भ और बेशर्म प्रोपगैंडा का परिणाम सामने है कि श्मसान में लाशें रखने और जलाने की जगह नहीं है।अभी तूफान आना बाकी है।
ऑक्सीजन इमरजेंसी के दौर में हमें भयभीत भी होना है और डर के पार भी जाना है।इस बात पर जनमत को एकमत से केंद्रीय सत्ता से सवाल पूछना चाहिए कि जब देश में ऑक्सीजन जमा करने की जरूरत थी,जब वेक्सिन आंदोलन की जरूरत थी,जब रेमडेसिविर संग्रह करने की जरूरत थी तब सरकार ने इसका बड़े पैमाने पर निर्यात क्यों किया। सरकार जनता के सम्मुख योग्यता और नैतिकता खो चुकी है।
इसलिए पब्लिक हेल्थ सिस्टम की बड़ी लड़ाई की तैयारी तुरत शुरू करनी चाहिए।रीयल और वर्चुल दोनों स्तरों पर।
-रामाज्ञा शशिधर
#दिनकर लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर,वाराणसी
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