【सुनो पीपल की पत्तियो】
©रामाज्ञा शशिधर, बनारस
★★★★
आओ पीपल की पत्तियो
वक़्त कम है
तुम फेफड़े बन जाओ
मेरी शिथिल देह में
फेफड़े होकर भी वे नहीं हैं
वे अब काम नहीं कर रहे हैं
थक गए हैं
भीतरी और बाहरी दुश्मनों से लड़ते हुए
हे धरती
तुम मुझे वरदान दो
मेरी राख पर उगाना
एक पीपल का पेड़
उसमें पत्तियों की जगह फेफड़े लगाना
जब भी
करोड़ों सूक्ष्म दुश्मन हवा के सारे रास्ते बंद कर दे
बाजार के घोड़े पर सवार तानाशाह
लोहे के पेड़ से जुटाए प्राणवायु जब्त कर ले
मैं पीपल का पत्ता
एक साथ
ऑक्सीजन और फेफड़ा
दोनों बनकर
तुम्हारी कोख के सबसे खूबसूरत सृजन को
मानव भविष्य की पताका बनने के लिए
बचा लूं
अगले जन्म में मुझे पीपल ही बनाना धरती
फेफड़े और प्राणवायु से गझिन
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------------------अंग्रेजी अनुवाद---------
★Ghanshyam Kumar
लेखक और अनुवादक
◆
Hark! The Peepal-leaves
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O Peepal leaves!
Come
I've very little time
Be the lungs
My sluggish body
Seems to contain no lungs despite their being inside
They now appear to have stopped working
They are dog-tired
Fighting with foes, outward and inward
O Earth!
Grant me a boon--
Over my ashes
Grow a peepal tree
With lungs hanging in lieu of leaves
Whenever
Crores and crores of the micro-enemies close all the pathways for the air
And the Dictator riding the horses of the market seizes the oxygen obtained from the iron-trees,
I, a Peepalleaf,
Turning myself at the same time into both oxygen and a lung
Earnestly wish to save the most beautiful creation of your womb
In order to become the emblem of the future of mankind
In my next birth
Make me just the peepal densely laden with lungs and oxygen!
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