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13 अक्तूबर, 2010

कविता घाट : मुखियाजी


मुखियाजी का तांडव जारी है. चाहे गांव की पंचायत हो या देश की. संयोग से यूपी और बिहार के चुनावों से जनतंत्र का पाखंड फ़िर खुल रहा है.गांव,टोला,मुहल्ला,घर,दालान,खेत,बथान सभी बाजार,बारूद,जुल्म,जाति और जहर में नए सिरे से बदल गए हैं.दारू से,मुर्गे से,साडी से,धोती से,कट्टे से,टके से,जनेऊ से,खडाऊं से,गोत्र से,मूल से,नाभि से,नाल से मत का दान दनदना रहा है.लोकतंत्र फ़नफ़ना रहा है. ऐसे में बया और दिनकर स्मारिका  में छपी आपबीती और जगबीती  कविता मुखियाजी फ़िर से पोस्ट करने को मजबूर हूं.-रामाज्ञा शशिधर


मुखिया जी कुछ भी न बदला
बदल गए बस आप

जब से आप हुए जनसेवी
लोकतंत्र कुछ और फरेबी
जात धरम की नई जलेबी 
हाट बाट है लेवी  लेवी 
हाथ न सूझे रात है कैसी
तीन ताल धुन सात है कैसी

पूरी गाड़ी खेंचे में है
निकल गए बस आप

न्याय समिति उत्थान सभाएं
बुश ब्लेयर हैं दाएं बाएं
रात रात चलती कक्षाएं
किसे उठाएं किसे गिराएं
एक कथा में सौ मुद्राएं
हर मुद्रा की सौ शाखाएं

चौसर के सब मंत्री मर गए
अमर हुए बस आप

प्राइवेट पब्लिक मिश्रित सेक्टर
आरक्षण के सारे फेक्टर
वर्ल्ड बैंक एनजीओ चैप्टर
लाल कार्ड का मेसी ट्रैक्टर
ठेका पट्टा लूट दलाली
फिर भी दांतिल आंत है खाली

रायल संग मुर्गा काकरेली
निगल गए बस आप

मैकाले की नई मनीषा
आपकी खातिर बुद्ध और ईसा
जाप लिये फुसफुस चालीसा
बिछा रही पत्तल पर शीशा
गिरे लाश न भरे गवाही
मूर्ति निमित्त धन करे उगाही

ग्राम बदर हो गया ससिधरवा
ग्राम रतन हुए आप





3 टिप्‍पणियां:

chandrasen ने कहा…

lekin janta kare to kya kare? uske pash koi vikalp bhi to nahi hai.

rajeev matwala ने कहा…

Sundar Bhawvyakti par hardi bdhai...!!!

rajeev matwala ने कहा…

Sundar bhawavyakti hetu hardik shubhkamnaye...!!!