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21 मई, 2021

बनारस में विश्व चाय दिवस








अब आप चाय लेंगे या कॉफी!
ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार में चाय की भूमिका असंदिग्ध है।भारतीयों को निक्कमा,निठल्ला,ठलुआ,बकलोल,उदररोगी और रूढ़िहल्ला बनाने में चाय की भूमिका महत्तम है।अंग्रेजीराज से लेकर आजतक चायबागान में मजूरों के लाल खून से ही चाय रंग पकड़ती है।
      1929 की मंदी के बाद भारत और बनारस में अंग्रेजों ने चाय की लत लगायी।शुरू में तो फ्री में बनारस की गलियों सड़कों पर गर्म गर्म चाय और पत्ती मिलती थी।दूध,दही,मिठाई,मलइयो की जुबान को कड़वी चाय थू थू जैसी लगती थी।1930 के बाद एक सेना रिटायर्ड बंगाली दादा ने नगर को चाय की आदत बांटी-द रेस्टोरेंट,गोदौलिया।
       आज़ादी के बाद 1952 के आसपास केदार मंडल और कुछ कामरेडों ने दूध,पानी और चीनी के घोल में चीकट मथना शुरू किया।वहां लेखक टाइप के जीव जुटने लगे।अब तो यह आम बीमारी है जिसका शिकार मैं भी हुआ हूँ।
    2014 से चाय के भांड नृत्य ने पूरे भारत को ऐसा नचाया कि 2021 तक देश सी ग्रेड पत्ती का सड़ा हुआ बाल्टा लग रहा है।
        चाय दिवस पर कुछ बात उसके विकल्प की।यानी बात कॉफी की।कहते हैं दुनिया के दो तिहाई थिंक टैंक यानीलेखक,पत्रकार,चिंतक,एक्टविस्ट,आवारा,दार्शनिक,
राजनीतिज्ञ और बैचेन आत्मा एक बार कॉफी हाउस जरूर जाते हैं।कहते हैं कि फ्रांसीसी क्रांति कहवा के गिलास से निकली थी।कहते हैं भारत की सम्पूर्ण क्रांति में कॉफी हाउसों की बड़ी भूमिका है।कहते हैं कि कॉपरेटिव कॉफी हाउस को सरकारों ने नीलाम कर दिया।
        कहते हैं कि काफी बाजार अब देश और दुनिया के सबसे फेवरेट पेय के बाजार के रूप में उभर रहा है।भारत और बनारस में कैफे वाले वे भी हैं जो कॉफी पिलाते हैं,वे भी जो मोमो बेचते हैं,वे भी जो इंटरनेट पर बेरोजगारों का आवेदन अप्लाई करवाते हैं।मैं कॉफी का भी लती हूँ।
       विश्व चाय दिवस आज है तो विश्व कॉफी दिवस भी होगा ही।
     आप बोर हो गए तो बताइए -चाय लेंगे या कॉफी!!
    ©रामाज्ञा शशिधर

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