एक गांव जो भावी क्रांति का थियेटर है
१६ अगस्त २०१०। गाजीपुर से लौटकर ।
१६ अगस्त २०१०। गाजीपुर से लौटकर ।
यह है गौसपुर । गंगा और बेसो के दोआब पर पांव जमाये ।सिर्फ गंगा जमुनी संस्कृति का मेल नहीं । गंगा जमुना का एकाकार विलय । अंतर्वस्तु और रूप दोनों जल एवं लहर की तरह । आप इसे घोषपुर कहें या गौतमपुर कह लें । अब यह गौस मियां का पुरबा ही कहलायेगा । अरबी का गौस और संस्कृत का पुर । भोजपुरिया हिंदी में आकर ठेठ गौसपुर हो गया। गौस यानी फरमान ,नालिश । किस पर?हिंदुस्तान की सत्ता पर । किसकी ओर से ? हिन्दुस्तानी जनता की ओर से । कब ,क्यों और कैसे? तब जब वैदिकों की हिंसा और कर्मकांड से गौसपुर की जनता त्राहिमाम कर रही थी , तब जब फिरंगिया साम्राज्यवाद के शुरूआती नायक लार्ड कार्नवालिस ने यहाँ डेरा डाला था ,तब जब नील ,अफीम की उत्पादन चक्की में पिसकर आबादी पस्तहाल थी और अब जब नव साम्राज्य का पागल हाथी गौसपुरिया खेतों की मरियल फसलों को एक साथ चर-रौंद रहा है ।
बिहार और उत्तर प्रदेश के मुहाने पर गाजी मियाँ के गाजीपुर में औपनिवेशिक हिंदुस्तान के क्रूर कमांडर-इन -चीफ ,वफादार गवर्नर जनरल और स्थायी जमींदारी प्रथा के जन्मदाता लार्ड कार्नवालिस की कब्रगाह है.यानी पुराने साम्राज्यवाद की कब्र है।