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06 सितंबर, 2010

कविता घाट:बनारसीदास

बनारसीदास 
रामाज्ञा शशिधर 




अस्सी घाट की सावनी साँझ 

किसी दिन
चांद तुम्हारे चूल्हे में आकर
कंडे सा सुलग जाए

किसी दिन
सूरज तुम्हारी जीभ पर
आइस्क्रीम सा पिघल जाए


किसी दिन
दुनिया के सारे पेशाबघरों में
चींटियों की धार बरसने लगे
और ग्लोब पर खरबों कतारों में फैल जाए

एक दिन
शुतुरमुर्ग सचमुच उठे
और सितारों सहित आसमान को उठाकर
दूसरे ब्रह्मांड पर रख आए



एक दिन
मधुमक्खियां आग उगलने लगे
कुत्तों की लार से जलेबी बनने लगे
छछूंदर की आवाज से राग मल्हार झरने लगे
मिट्टी से खरबूज
मार्बल से महबूब बनने लगे

एक दिन
गिरगिट गिलहरी में
गिलहरी ह्वाइट हाउस में
ह्वाइट हाउस सर्दी जुकाम में बदल जाए

भई बनारसीदास
क्या तब मानोगे कि दुनिया बदल रही है!