क्या बनारस में 18 सितंबर को पाखी पत्रिका की ओर से आयोजित नामवर सिंह की सम्मान व पुरस्कार सभा पुरानी यादों से सारांशतः अलग होगी? क्या वहां कार्ल मार्क्स के करेले पर कामू का काशीफल (दूसरी रपट भी पढ़ें ) भारी नहीं होगा?
कई प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि आलोचक बच्चन सिंह की पचहत्तरवीं वर्षगांठ पर नामवर सिंह ने सम्मान आयोजन को ध्वस्त करते हुए कहा था कि बनारस का प्रलेस बना ही इसलिए है कि अपनों का सम्मान करे। बच्चन सिंह इतने आहत हुए कि गोष्ठी से सीधे अस्पताल पहुंच गए। नामवर का अस्सी आयोजन को देखकर बुद्धिजीवियों ने टिप्पणी करनी शुरू कर दी है कि बनारस और इस देश का प्रलेस बना ही इसलिए है कि नामवर सिंह की सम्मान गोष्ठी करते चले।
नामवर का अस्सी इसलिए भी रोमांचक है कि पिछले दिनों महादेवी जन्म शताब्दी के दरम्यान बनारस में ही उन्होंने पंत के तीन चौथाई साहित्य को कूड़ा कह दिया था। अखबारी साहित्यिक बहस चल ही रही थी कि स्थानीय भाजपाइयों ने मुकदमा दायर कर इसे नया रंग दे दिया था। कहा जाता है कि नामवर का अस्सी उसकी जबाबी कार्रवाई था। आइए इस हादसे के आंतरिक दृश्यों छवियों एवं अंतर्विरोधों का थोड़ा जायजा लें।
नामवरजी जब साठ के हुए थे तब बनारस की सम्मान गोष्ठी में बाएं -दाएं प्रलेस के दो विराट खंभे थे-नागार्जुन और त्रिलोचन। नागार्जुन ने एक कविता पढ़ी थी% अगर कृति का फल चखना है@आलोचक को खुश रखना है। अस्सी वाले कार्यक्रम में कृति की जगह नौकरी पदोन्नति पार्टी संगठन संबंध बुद्धिजीविता आदि भी रख लीजिए तो इस कविता की व्यंजना बढ़ जाती है। नागार्जुन नहीं रहे लेकिन 20 अगस्त 2007 को नब्बे साल के होने वाले प्रलेस के शुरूआती नायक त्रिलोचन बेटे बहू के घर में जर्जर हालत में सांसें गिन रहे हैं। नामवर सिंह के अस्सी के होने पर त्रिचोलन का एक लंबा इंटरव्यू स्थानीय हिन्दुस्तान में छपा जिसमें आशीर्वादी मुद्रा में कहा गया&हिन्दी में नामवर सिंह जैसी प्रतिष्ठा किसी को नहीं मिली। 28 जुलाई के बाद ही 20 अगस्त आता है। बनारसी बुद्धिजीवियों का कहना है कि नामवर सिंह एवं उनके भाई कुछ भी कर सकते हैं दूसरों का सम्मान नहीं कर सकते।
पचहत्तरवीं वर्षगांठ में सुविख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी थे और देशभर में हवाई जहाज के साथ थे। 80वीं के उधार का जिम्मा हिन्दी विभाग बीएचयू एवं प्रलेस की बनारस इकाई ने लिया और अद्वितीय ढंग से कर्ज चुकाया।
सम्मान समारोह में नामवर जी का चादर से सम्मान जलेस के उद्धारक चन्द्रबली सिंह ने कियाA कई दर्जन संगठनों संस्थानों एवं व्यक्तियों द्वारा माल्यार्पण की फेहरिस्त में जसम की स्थानीय इकाई ने माला भेंट कीA कला कम्यून ने पोटेªट दियाA अनपढ़ बुनकर शायर ने कुर्ता सिलकर पेश कियाA हिन्दी विभाग के अध्यक्ष ने स्वागत भाषण कियाA नवनियुक्त शिष्य ने नामवर की धरती हाजिर कीA परिवार ने पूरी मंगल कामना कीA संस्कृत के पंडितों विद्वानों ने श्लोकों की छौंक से शतायु होने का मंगलगान गाया। इसके बावजूद नामवर सिंह द्वारा प्रस्तुत दो शेर का लुत्फ लीजिए&aa हमको मालूम है महफिल की हकीकत लेकिन@दिल के बहलाने को गालिब यह खयाल अच्छा है। बात इतनी पर ही नहीं रूकीA नामवर जी ने कहा कि काशी में मेरे लिए धरती नहीं है और ज़फर का यह शेर सुनाया&a दो ग़ज ज़मीं भी न मिली कूए यार में।
दो सत्रों में चले आयोजन में तीन चीजें खूब छाई रहीं। नामवर सिंह के लिए कसीदा पढ़ा जानाA रामविलास शर्मा पर हमला करना तथा महादेवी बनाम पंत। पहला प्रसंग आ चुका है। नामवर सिंह को खुश करने एवं खास जगह तक पहुंचने की होड़ में उनका इतनी बार जयकार हुआ कि आखिरी गोष्ठी आलोचना का धर्म में उन्होंने क्रुद्ध होकर कहा& यदि अब एक बार भी मेरा नाम लिया गया तो मैं गोष्ठी से उठकर चला जाउंगा। दिलचस्प यह कि तब भी जयकार होता ही रहा । रामविलास शर्मा प्रकरण भी खूब चला। प्रारंभिक गोष्ठी में चन्द्रबली सिंह ने सम्मान करते हुए कहा कि रामविलास शर्मा के प्रति नामवर ऐसी स्थिति मत बनाएं कि उनकी जयंती पंचजन्य के कार्यालय में होने लगे। दूसरे सत्र में नामवर जी के एक उत्तराधिकारी आलोचक ने मंच से फतवा जारी कर दिया कि रामविलास शर्मा का हिन्दी आलोचना में लगभग कोई योगदान नहीं है।
मजेदार यह है कि समारोह में एक ओर रामविलास शर्मा चुभ रहे थे दूसरी ओर विचार गोष्ठी का विषय ही था&a आलोचना का धर्म। कहां धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक अवधारणा आलोचना और कहां भाजपाइयों के हाथों जख्मी शब्द- धर्म। नामवर जी ने तो इस बार एक तरह से विनय पत्रिका ही रच डाली। सम्मान सत्र में उन्होंने उपनिषद के श्लोक पढ़े। संस्कृत पंडितों ने उनके लिए दर्जन भर श्लोक गाए। नामवर सिंह ने न केवल तुलसी की चौपाइयों से पूरे समारोह को चकाचौंध बनाए रखा बल्कि तुलसी पर सुधीश पचौरी द्वारा वाक में आयोजित परिचर्चा की कड़ी निंदा की। स्थानीय भाजपाइयों को ललकारा कि तुलसी भक्त भाजपाई नहीं वे हैं। इसलिए कि तुलसी की तरह उन्होंने भी कई बार गंगा पार किया है। नामवर जी ने आखिरी इच्छा बतायी कि वे तुलसीदास पर एक आलोचना पुस्तक लिखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि इन दिनों वे बार-बार तुलसी ग्रन्थावली को उलटते पढ़ते रहते हैं। दूसरी ओर तुलसी भक्त अस्सी के भाजपाइयों ने नामवर जी के अस्सी के होने की शुभकामना में अस्सी घाट पर बुद्धि शुद्धि यज्ञ कियाA धूप दीप जलाएA मंत्रोच्चार किया तथा बाबा विश्वनाथ से प्रार्थना की कि ईश्वर उन्हें चिरायु बनाए। ऐसा है कबीर समर्थक नामवर का तुलसी प्यार और तुलसीपंथी रामविलास से तकरार।
अब अंत में महादेवी-पंत प्रकरण का उपेक्षित सच। नामवर सिंह ने हिन्दी में अंधभक्तों एवं कट्टर समर्थकों की एक बड़ी टीम तैयार कर ली है। इसमें लेखक कार्यकर्ता संगठनकर्ता प्राध्यापक चारों है। उनके लिए नामवर ही मानस पारायण के सातों कांड हैं। दूसरी ओर नापसंद करने वालों की भी एक बड़ी फ़ौज है। ज्यो ही नामवर जी ने पंत के साहित्य के तीन चौथाई को कूड़ा कहा वे पत्र-पत्रिकाओं में कलम की तलवार लेकर कूद पडे़। दिलचस्प है कि अब तक किसी ने नामवर जी के जेहन में यह बात नही पहुंचायी कि जिस आचार्य रामचन्द्र शुक्ल( आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी एवं मुक्तिबोध को हिन्दी आलोचना का वे प्रस्थान बिन्दु मानते हैं उन्होंने पंत के काव्य वैभव की जबर्दस्त प्रशंसा की है। नामवर जी ने छायावाद में खुद पंत की प्रशंसा की है। कहीं ऐसा तो नहीं कि सोवियत संघ के विघटन नवउदारीकरण के आगमन कम्युनिस्ट पार्टियों के कांग्रेसीकरण एवं नंदीग्रामीकरण के फलस्वरूप पंत की ऐतिहासिक अनुभूति (बकौल मुक्तिबोध से ज्यादा महाaदेवी का झिलमिल उन्हें भाने लगा है। ।
रही बात मुकदमा प्रकरण की। उनके अस्सी मुहल्ले के भाजपाई मीडियोकरों ने छपास रोग के कारण इस घटना को उड़ा लिया। वे खुश हैं कि पंत और तुलसी को थानेदारों वकीलों और जजों के कटघरे में आनंद आ रहा होगा। वे लोग ऐसा ही करते रहते हैं और कहते भी रहते हैं। कहा जाता है कि उन लोगों को अनुज काशीनाथ सिंह खुद सम्मान समारोह के लिए न्यौतने गए थे। कितना दिलचस्प है कि तुलसीदास पर नामवर जी ने कुछ कहा ही नहीं थाA न भाजपाइयों का उनपर आरोप है पर देश के मीडिया ने उन्हे एम एफ हुसैन की पंक्ति में लाने की होड़ लगाई। कहा जाता है इस रणनीति में भी काशी का ही योगदान है। कितना विडम्बनामूलक है कि एक ओर मुकदमा और दूसरी ओर चिरायु होने के लिए यज्ञ। हाय रे नामवर का अस्सी! कोई क्यों न मर जाए इस सादगी पर ए खुदा लड़ते हैं मगर हाथ में तलवार नहीं है।
फिलहाल ८० वीं वर्षगांठ के आयोजन के सूरते हाल पर दरबारीलाल की
समयांतर में छपी टिपण्णी यहाँ हाजिर हैA
नामवर का अस्सी
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बनारस ने नामवर सिंह के साठ को भी सेलीब्रेट कियाA पचहत्तर को भी और इस दफा अस्सी को भी। बनारसी बुद्धिजीवी ऊबकर अब कहने लगे हैं कि काशी में केवल नामवर ही साठ के होते हैंA पचहत्तर के होते हैं और अस्सी के भी।इस बार हिन्दी आलोचना के कमांडर नामवर सिंह चुपचाप अस्सी के हो गए. कई स्तरों पर उनका अस्सी हुआ. वे अस्सी साल के हुए. काशी के अस्सी के हुए. नापसंद एवं पसंद करनेवालों के असि हुए। नहीं हुए तो सिर्फ बीसवीं सदी के अस्सी वाले नामवर। 28 जुलाई को अपने जन्म दिन पर बनारसी श्रोताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने पहला वाक्य कहा, काशी का अस्सी, अस्सी का नामवर आपको प्रणाम करता है।काशी के लिए मंच से कुछ ऐसा हुआ कि काशी भी अस्सी के हो गए हों।।
कई प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि आलोचक बच्चन सिंह की पचहत्तरवीं वर्षगांठ पर नामवर सिंह ने सम्मान आयोजन को ध्वस्त करते हुए कहा था कि बनारस का प्रलेस बना ही इसलिए है कि अपनों का सम्मान करे। बच्चन सिंह इतने आहत हुए कि गोष्ठी से सीधे अस्पताल पहुंच गए। नामवर का अस्सी आयोजन को देखकर बुद्धिजीवियों ने टिप्पणी करनी शुरू कर दी है कि बनारस और इस देश का प्रलेस बना ही इसलिए है कि नामवर सिंह की सम्मान गोष्ठी करते चले।
नामवर का अस्सी इसलिए भी रोमांचक है कि पिछले दिनों महादेवी जन्म शताब्दी के दरम्यान बनारस में ही उन्होंने पंत के तीन चौथाई साहित्य को कूड़ा कह दिया था। अखबारी साहित्यिक बहस चल ही रही थी कि स्थानीय भाजपाइयों ने मुकदमा दायर कर इसे नया रंग दे दिया था। कहा जाता है कि नामवर का अस्सी उसकी जबाबी कार्रवाई था। आइए इस हादसे के आंतरिक दृश्यों छवियों एवं अंतर्विरोधों का थोड़ा जायजा लें।
नामवरजी जब साठ के हुए थे तब बनारस की सम्मान गोष्ठी में बाएं -दाएं प्रलेस के दो विराट खंभे थे-नागार्जुन और त्रिलोचन। नागार्जुन ने एक कविता पढ़ी थी% अगर कृति का फल चखना है@आलोचक को खुश रखना है। अस्सी वाले कार्यक्रम में कृति की जगह नौकरी पदोन्नति पार्टी संगठन संबंध बुद्धिजीविता आदि भी रख लीजिए तो इस कविता की व्यंजना बढ़ जाती है। नागार्जुन नहीं रहे लेकिन 20 अगस्त 2007 को नब्बे साल के होने वाले प्रलेस के शुरूआती नायक त्रिलोचन बेटे बहू के घर में जर्जर हालत में सांसें गिन रहे हैं। नामवर सिंह के अस्सी के होने पर त्रिचोलन का एक लंबा इंटरव्यू स्थानीय हिन्दुस्तान में छपा जिसमें आशीर्वादी मुद्रा में कहा गया&हिन्दी में नामवर सिंह जैसी प्रतिष्ठा किसी को नहीं मिली। 28 जुलाई के बाद ही 20 अगस्त आता है। बनारसी बुद्धिजीवियों का कहना है कि नामवर सिंह एवं उनके भाई कुछ भी कर सकते हैं दूसरों का सम्मान नहीं कर सकते।
पचहत्तरवीं वर्षगांठ में सुविख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी थे और देशभर में हवाई जहाज के साथ थे। 80वीं के उधार का जिम्मा हिन्दी विभाग बीएचयू एवं प्रलेस की बनारस इकाई ने लिया और अद्वितीय ढंग से कर्ज चुकाया।
सम्मान समारोह में नामवर जी का चादर से सम्मान जलेस के उद्धारक चन्द्रबली सिंह ने कियाA कई दर्जन संगठनों संस्थानों एवं व्यक्तियों द्वारा माल्यार्पण की फेहरिस्त में जसम की स्थानीय इकाई ने माला भेंट कीA कला कम्यून ने पोटेªट दियाA अनपढ़ बुनकर शायर ने कुर्ता सिलकर पेश कियाA हिन्दी विभाग के अध्यक्ष ने स्वागत भाषण कियाA नवनियुक्त शिष्य ने नामवर की धरती हाजिर कीA परिवार ने पूरी मंगल कामना कीA संस्कृत के पंडितों विद्वानों ने श्लोकों की छौंक से शतायु होने का मंगलगान गाया। इसके बावजूद नामवर सिंह द्वारा प्रस्तुत दो शेर का लुत्फ लीजिए&aa हमको मालूम है महफिल की हकीकत लेकिन@दिल के बहलाने को गालिब यह खयाल अच्छा है। बात इतनी पर ही नहीं रूकीA नामवर जी ने कहा कि काशी में मेरे लिए धरती नहीं है और ज़फर का यह शेर सुनाया&a दो ग़ज ज़मीं भी न मिली कूए यार में।
दो सत्रों में चले आयोजन में तीन चीजें खूब छाई रहीं। नामवर सिंह के लिए कसीदा पढ़ा जानाA रामविलास शर्मा पर हमला करना तथा महादेवी बनाम पंत। पहला प्रसंग आ चुका है। नामवर सिंह को खुश करने एवं खास जगह तक पहुंचने की होड़ में उनका इतनी बार जयकार हुआ कि आखिरी गोष्ठी आलोचना का धर्म में उन्होंने क्रुद्ध होकर कहा& यदि अब एक बार भी मेरा नाम लिया गया तो मैं गोष्ठी से उठकर चला जाउंगा। दिलचस्प यह कि तब भी जयकार होता ही रहा । रामविलास शर्मा प्रकरण भी खूब चला। प्रारंभिक गोष्ठी में चन्द्रबली सिंह ने सम्मान करते हुए कहा कि रामविलास शर्मा के प्रति नामवर ऐसी स्थिति मत बनाएं कि उनकी जयंती पंचजन्य के कार्यालय में होने लगे। दूसरे सत्र में नामवर जी के एक उत्तराधिकारी आलोचक ने मंच से फतवा जारी कर दिया कि रामविलास शर्मा का हिन्दी आलोचना में लगभग कोई योगदान नहीं है।
मजेदार यह है कि समारोह में एक ओर रामविलास शर्मा चुभ रहे थे दूसरी ओर विचार गोष्ठी का विषय ही था&a आलोचना का धर्म। कहां धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक अवधारणा आलोचना और कहां भाजपाइयों के हाथों जख्मी शब्द- धर्म। नामवर जी ने तो इस बार एक तरह से विनय पत्रिका ही रच डाली। सम्मान सत्र में उन्होंने उपनिषद के श्लोक पढ़े। संस्कृत पंडितों ने उनके लिए दर्जन भर श्लोक गाए। नामवर सिंह ने न केवल तुलसी की चौपाइयों से पूरे समारोह को चकाचौंध बनाए रखा बल्कि तुलसी पर सुधीश पचौरी द्वारा वाक में आयोजित परिचर्चा की कड़ी निंदा की। स्थानीय भाजपाइयों को ललकारा कि तुलसी भक्त भाजपाई नहीं वे हैं। इसलिए कि तुलसी की तरह उन्होंने भी कई बार गंगा पार किया है। नामवर जी ने आखिरी इच्छा बतायी कि वे तुलसीदास पर एक आलोचना पुस्तक लिखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि इन दिनों वे बार-बार तुलसी ग्रन्थावली को उलटते पढ़ते रहते हैं। दूसरी ओर तुलसी भक्त अस्सी के भाजपाइयों ने नामवर जी के अस्सी के होने की शुभकामना में अस्सी घाट पर बुद्धि शुद्धि यज्ञ कियाA धूप दीप जलाएA मंत्रोच्चार किया तथा बाबा विश्वनाथ से प्रार्थना की कि ईश्वर उन्हें चिरायु बनाए। ऐसा है कबीर समर्थक नामवर का तुलसी प्यार और तुलसीपंथी रामविलास से तकरार।
अब अंत में महादेवी-पंत प्रकरण का उपेक्षित सच। नामवर सिंह ने हिन्दी में अंधभक्तों एवं कट्टर समर्थकों की एक बड़ी टीम तैयार कर ली है। इसमें लेखक कार्यकर्ता संगठनकर्ता प्राध्यापक चारों है। उनके लिए नामवर ही मानस पारायण के सातों कांड हैं। दूसरी ओर नापसंद करने वालों की भी एक बड़ी फ़ौज है। ज्यो ही नामवर जी ने पंत के साहित्य के तीन चौथाई को कूड़ा कहा वे पत्र-पत्रिकाओं में कलम की तलवार लेकर कूद पडे़। दिलचस्प है कि अब तक किसी ने नामवर जी के जेहन में यह बात नही पहुंचायी कि जिस आचार्य रामचन्द्र शुक्ल( आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी एवं मुक्तिबोध को हिन्दी आलोचना का वे प्रस्थान बिन्दु मानते हैं उन्होंने पंत के काव्य वैभव की जबर्दस्त प्रशंसा की है। नामवर जी ने छायावाद में खुद पंत की प्रशंसा की है। कहीं ऐसा तो नहीं कि सोवियत संघ के विघटन नवउदारीकरण के आगमन कम्युनिस्ट पार्टियों के कांग्रेसीकरण एवं नंदीग्रामीकरण के फलस्वरूप पंत की ऐतिहासिक अनुभूति (बकौल मुक्तिबोध से ज्यादा महाaदेवी का झिलमिल उन्हें भाने लगा है। ।
रही बात मुकदमा प्रकरण की। उनके अस्सी मुहल्ले के भाजपाई मीडियोकरों ने छपास रोग के कारण इस घटना को उड़ा लिया। वे खुश हैं कि पंत और तुलसी को थानेदारों वकीलों और जजों के कटघरे में आनंद आ रहा होगा। वे लोग ऐसा ही करते रहते हैं और कहते भी रहते हैं। कहा जाता है कि उन लोगों को अनुज काशीनाथ सिंह खुद सम्मान समारोह के लिए न्यौतने गए थे। कितना दिलचस्प है कि तुलसीदास पर नामवर जी ने कुछ कहा ही नहीं थाA न भाजपाइयों का उनपर आरोप है पर देश के मीडिया ने उन्हे एम एफ हुसैन की पंक्ति में लाने की होड़ लगाई। कहा जाता है इस रणनीति में भी काशी का ही योगदान है। कितना विडम्बनामूलक है कि एक ओर मुकदमा और दूसरी ओर चिरायु होने के लिए यज्ञ। हाय रे नामवर का अस्सी! कोई क्यों न मर जाए इस सादगी पर ए खुदा लड़ते हैं मगर हाथ में तलवार नहीं है।
2 टिप्पणियां:
अच्छा है रामाज्ञा भाई…बस ऊपर-नीचे स्पेस हटा दीजिये
mujhe lagata hain ki ab to 'namawarji ka nbbe' bhi hoke hi rahega........
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