फेसबुक से पता चला कि आज गुरु पूर्णिमा है।यह तो पहले ही पता था कि आज विशेष चंद्रग्रहण होगा।चेले के तीन सौ चौंसठ दिन और गुरू का एक दिन।आह!उस पर भी ग्रहण।लेकिन आषाढ़ का मानसून भी कमाल की चीज है।बादलों से ढँक लिया पूरा आकाश।अब न चाँद दिखेगा,न गुरु और न ही उनके चेले।गुरू की किस्मत ही ऐसी है तो क्या कीजिए!
आज का वक्त देखकर गुरू पूर्णिमा को गुरु ग्रहण अमावस्या कहा जाना ही उचित है।यह गूगल गुरू का ज़माना है।सारा ज्ञान,सुज्ञान,कुज्ञान सब लाइन हाजिर है।यदि आपके पास एक किसी जियोपति की ब्लैकमनी का व्हाइटपैक है तो अपने शॉर्टकट आइडिया से सारी दुनिया को पलक सेकेण्ड में केप्चर कर सकते हैं।
हालाँकि वे सूचनाएं हैं,ज्ञान नहीं।लेकिन भारत जैसे देश में जहाँ दो जून की रोटी के लिए भी पीएम तक का जुगाड़ लगाना पड़ता हो वहां सब कुछ ज्ञान ही है।
फिर गुरु का थोथा दर्शन लेकर क्या हो जब व्यवहार कुशलता(पकौड़ागिरी,खलासिगिरी जैसे संसदीय जॉब प्रोपगैंडा) ही लाइफ स्टाइल है।इसलिए इस बार,काशी के प्राचीनतम कूपमंडूक परम ज्ञानी चेलों का इक्का दुक्का धक्कामार प्रयास छोड़ दीजिए तो गुरु नाम की प्रजाति स्क्रीन से गायब हैं।गुरु से ज्यादा ग्रहण पर बहस है।
गुरु पूर्णिमा है भी पुराना टर्म।प्री मॉडर्न।प्री कालोनियल।देश के मॉडर्न शिक्षकों को पता था कि देश में महाभारत घर घर भले चलता रहे लेकिन व्यास के दुर्दिन आने वाले हैं।ऐसे भी व्यास को दलित गलित समुदाय ने हथियाना शुरू कर दिया था।
इसलिए सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम पर मॉडर्न चिंतकों ने शिक्षक दिवस का अंग्रेजी डेट फिक्स कर दिया।टीचर्स डे यानी शिक्षक दिवस।मुझे याद है 5 सितम्बर को शिक्षक कोष में भेजने के लिए हम लोग डाक टिकट खरीदते ही नहीं थे, बेचते भी थे।तब पता चला देश के सबसे बड़े टीचर राधाकृष्णन हैं।लेकिन मुझे तो अपने स्कूल के शिक्षक से प्यारे और आदर्श भगवान भी नहीं लगते थे।अंग्रेजी तिथि के बावजूद सितम्बर में बरसात के बादल रहते हैं।लेकिन गुरु को चाँद नहीं बनाने के कारण तब बादल से ढंकने और ग्रहण लगने का कोई खतरा नहीं रहता।
मुझे गुरू दिवस ने कभी आकर्षित नहीं किया।इसलिए कि गुरू तो हृदय में रहने वाला तत्व है।गुरु पूरे व्यक्तित्व में समाहित रहता है।अगर मैं हिंदी के गुरुओं से उदाहरण दूं तो रामचन्द्र शुक्ल की मूँछ,हजारीप्रसाद द्विवेदी के ठहाके,नामवर सिंह की गम्भीरता और मैनेजर पांडेय की चुहलबाजी की स्टाइल को कॉपी करने वाले हिंदी में चेलों की स्वस्थ्य संख्या रही है।तेरह साल के यूनिवर्सिटी अध्यापन और पन्द्रह साल की
प्री यूनिवर्सिटी टीचिंग के आधार पर सैकड़ों चेलों का सघन चारित्रिक अध्ययन खजाने में है।चेला रहा सो अलग।काशी में मेरे एक मित्र गुरु के अनेक दुर्लभ गुणों वाले चेले मिले।काशी के गुरु तो इतने गुरु घण्टाल हैं कि शूटर्स चेले तक पैदा करते हैं।ये अक्सर तीन तरह के होते हैं-कैरक्टर शूटर्स,सेल्फ़ी शूटर्स और मार्कर शूटर्स।
काशी में अनेक गुरुघण्टाल हैं जो अपनी महानता और कैरियर की सफलता के लिए कैरेक्टर शूटर्स चेले को फर्मे में ढालते रहते हैं।दूसरे गुरू ऐसे हैं जो मीडिया स्क्रीन पर फोटोशॉप सेल्फ़ी की उपस्थिति के साथ अंधगुरु चालीसा पाकर गदगद रहते।उन्हें लगता कि वे मॉडलिंग रेटिंग में आगे हैं और बिना मरे साहित्य में अमर
होते जा रहे हैं।
तीसरे तरह के गुरु वे हैं जो पढ़ाना छोड़कर सारे प्रोफेशनल वर्क करते हैं।जैसे ज़मीन दलाली,फ़्लैट खरीद बिक्री,नौकरी सेटिंग,राजनीतिक रगुलइ,शेयर धंधा,कोचिंगगिरी,बीमा,राजनीतिक कार्यकर्त्ता और मजूर भर्ती आदि।आदि मतलब अनंत तरह के सुकार्य।इन कार्यों में मदद करनेवाले क्रीतदास मार्कर शूटर्स हैं।मार्कर शूटर्स इसलिए क्योंकि हरेक पेशे का मार्क और मार्क्स अलग और विचित्र है।
आप पूछ सकते हैं कि गुरु पूर्णिमा पर चेले की चर्चा क्यों!जवाब है कि तानाशाही और नस्ली हिंसा के दौर में यही तो डेमोक्रेटिक ज्ञान की डायलटिक्स है।जब चेले ही नहीं तो गुरु कैसा!जबतक चेला स्मरण न हो तब तक गुरु वंदन की अहमियत कैसी!इन चेलों के प्रकार,संघर्ष और दुःख इतने हैं कि गुरु व्यास फिर से जन्म लें तो दस बारह महाभारत रचने होंगे।लेकिन आज के व्यास तो गूगल गुरु हैं।आज न कल टाइप करेंगे ही।प्रकार और संघर्ष छोड़िए।इनके दुःख सुनिए।कोई पांच प्रेमिकाओं से रिजेक्टेड बेरोजगार कुंवारा है उसकी उम्र मात्र पैंतीस साल है।किसी की फ़ेलोशिप बंद हो गई और नाइक का आखिरी शू तीन जगह से फट गया है लेकिन इंटरव्यू का सिलसिला खत्म नहीं हो रहा।कोई बुद्ध को पढ़कर चौबे गुरु का चौबे चेला मन्त्र लेकर भी लाइन में पीछे है।शुक्ल,त्रिपाठी,सिंह,प्रधान,यादव,मौर्या,चौधरी झुण्ड बनाकर चलते हैं और टाइटिल गुरु की खोज करते हैं।कई चार पांच गुरुओं को चार पांच सिम की तरह बैग में बन्द रखते।
क्या पता कब किसपर कोई मैजिकल ऑफर आ
जाए।बेरोजगारी की वफादारी शेयर बाजार की छलिया होती है।कब ऊपर चढ़े कब नीचे जाए।कई चेले दो करोड़ की नौकरी और स्विस के पन्द्रह लाख को जुमला मानकर अपराध या राजनीति के
क्षेत्र में पार्ट टाइम जॉब देखने लगते।इक्के दुक्के किस्मत वाले केंचुल छोड़ जब बिल में घुस जाते तो गुरु लोग उसके नाम पर आईपीएल से तेज सट्टा जुआ चलाने लगते और टीवी से ज्यादा गति से जहां सोच है वहां शौचालय है का गोष्ठी सेमिनार शुरू कर देते।इसलिए गुरु पूर्णिमा का महत्व बना रहे।
मंदी की महामारी के दौर में जब स्टैंडअप स्टार्टअप रनअप के बावजूद इंडिया शौचलय को गांधी जी के गोलक से ही झांक रहा है तब गुरु पूर्णिमा पर ग्रहण लगना और गुरु का चित्र गायब हो जाना लाजिमी है।यही मौका है कि गुरु और चेले अपने अपने ग्रह नक्षत्र की जाँच शुरू कर दें।इसलिए कि व्यास का महाभारत संसद से सड़क तक सरपट दौड़ लगा रहा है।