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30 अप्रैल, 2021

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28 अप्रैल, 2021

हिंदी समांतर कोश के कोशकार अरविंद कुमार नहीं रहे


वे हिंदी की किसी संस्था से अकेले बड़े थे।वे भाषा के सच्चे सागर थे।
       20 साल तक अनवरत श्रम करते हुए 1800 पृष्ठों और 268000 अभिव्यक्तियों की पांडुलिपि से हिंदी का समांतर कोश तैयार करने वाले अरविंद कुमार आज 95 वर्ष की उम्र में कोविड के आक्रमण से गुज़र गए।
        उन्होंने 1960 के दशक में फिल्मी पत्रिका  माधुरी का संपादन ही नहीं किया बल्कि उसके माध्यम से कला सिनेमा आंदोलन को दिशा भी दी।समांतर सिनेमा जैसे पद को रचने का सार्थक कार्य किया।
       हिंदी भाषा और समाज को अरविंद कुमार और उनकी पत्नी कुसुम जी के श्रम और योगदान का ऋणी होना चाहिए ।
       हिंदी विभाग,बीएचयू,मालवीय चबूतरा,ताना बाना(बनारस)प्रतिबिम्ब(बेगूसराय) की ओर से उन्हें मार्मिक श्रद्धांजलि।
                                     -रामाज्ञा शशिधर,बनारस

25 अप्रैल, 2021

कोविड कविता:सुनो पीपल की पत्तियो

【सुनो पीपल की पत्तियो】
   ©रामाज्ञा शशिधर, बनारस
     ★★★★
आओ पीपल की पत्तियो
वक़्त कम है
तुम फेफड़े बन जाओ

मेरी शिथिल देह में 
फेफड़े होकर भी वे नहीं हैं
वे अब काम नहीं कर रहे हैं
थक गए हैं 
भीतरी और बाहरी दुश्मनों से लड़ते हुए

हे धरती
तुम मुझे वरदान दो

मेरी राख पर उगाना
एक पीपल का पेड़
उसमें पत्तियों की जगह फेफड़े लगाना 

जब भी 
करोड़ों सूक्ष्म दुश्मन हवा के सारे रास्ते बंद कर दे

बाजार के घोड़े पर सवार तानाशाह 
लोहे के पेड़ से जुटाए प्राणवायु जब्त कर ले

मैं पीपल का पत्ता 
एक साथ
ऑक्सीजन और फेफड़ा 
दोनों बनकर
तुम्हारी कोख के सबसे खूबसूरत सृजन को 
मानव भविष्य की पताका बनने के लिए 
बचा लूं

अगले जन्म में मुझे पीपल ही बनाना धरती
फेफड़े और प्राणवायु से गझिन
            ---------------------
     
      ------------------अंग्रेजी अनुवाद---------
      ★Ghanshyam Kumar 
         लेखक और अनुवादक
   ◆
Hark! The Peepal-leaves
   ***************

O Peepal leaves!
Come
I've very little time
Be the lungs

My sluggish body
Seems to contain no lungs despite their being inside

They now appear to have stopped working 
They are dog-tired 
Fighting with foes, outward and inward

O Earth!
Grant me a boon-- 

Over my ashes
Grow a peepal tree
With lungs hanging in lieu of leaves

Whenever 
Crores and crores of the micro-enemies close all the pathways for the air
And the Dictator riding the horses of the market seizes the oxygen obtained from the iron-trees,

I, a Peepalleaf,
Turning myself at the same time into both oxygen and a lung
Earnestly wish to save the most beautiful creation of your womb
In order to become the emblem of the future of mankind

In my next birth
Make me just the peepal densely laden with lungs and oxygen!

22 अप्रैल, 2021

महामारी और ऑक्सीजन आपातकाल से मुक्ति चाहिए


       ©रामाज्ञा शशिधर
       सोशल मीडिया पर कोविड 19 जैसी महामारी को भय और भरम बताने और हल्के में लेने का एक सरल और सत्तामुखी ट्रेंड बढ़ता जा रहा है।यह कॉमन चेतना को कन्फ्यूज करने और खतरे में ढकेलने की 
कुसमय कोशिश है।

      मैं इस परिपाटी से असहमत हूँ।यह खाए अघाए और सेफ जोन में बैठे लोगों का जुमला हो सकता है या अनजान लोगों की अज्ञानता या दाढ़ीबाबा बनने का शौक!
 
      आप सिक्के का एक पहलू रखकर लोगों को भय और भरम से मुक्त रहने का दृष्टांत दे रहे हैं।इतिहासबोध बताता है कि इसी प्लेग और स्पेनिश फ्लू (1892-1922) से भारत में लाखों नहीं,करोड़ में लोगों का सफाया हो गया था।तब आबादी भी कम थी।
       इटली,जर्मनी,ब्रिटेन,अमेरिका की बड़ी आबादी स्वाहा हो गई है।
      हमारा ग्रामीण साथी मोनू चला गया।बनारस और देश में 100 से अधिक परिचित 15 दिन के अंदर खत्म हो गए।
        जीवमनोविज्ञान का अध्ययन बताता है कि भूकम्प,बाढ़,आपदा,दुश्मन को वे पशु पक्षी पहले भांप लेते हैं जो भय और सतर्कता का अभ्यास करते हैं।कृषि,टेक्नोलॉजी,भोग और आलस्य ने मनुष्य का बड़ा नुकसान किया है।जंगल में वे ज्यादा स्मार्ट थे।
       दूसरी बात।कोरोना का नया वेरिएंट दो गज की दूरी,मास्क है जरूरी से आगे निकल गया है।लेंसेन्ट और विश्व स्वास्थ्य संगठन का तथ्य गौरतलब है कि 
यह और हल्का होकर हवा में लंबे समय तक बना रहता और कई गुना ज्यादा संक्रमित करता है।
      महानगरों के बाद भैया एक्सप्रेस की वापसी से अब गांवों की बारी है।साथ ही इस म्यूटेट ने ऑक्सीजन की जरूरत को बढ़ा दिया है।
      बुद्धिजीवियों और जनजीवियों को यह सवाल चीखकर उठाना चाहिए कि एक साल में बेड, ऑक्सीजन,दवा,वेक्सिनेशन और पूरे हेल्थ सिस्टम को जनता की जरूरत के हिसाब से क्यों मजबूत नहीं किया गया।
      ब्रांडिंग,वाहवाही,मंदिर निर्माण,चुनाव,कुम्भ और बेशर्म प्रोपगैंडा का परिणाम सामने है कि श्मसान में लाशें रखने और जलाने की जगह नहीं है।अभी तूफान आना बाकी है।
     ऑक्सीजन इमरजेंसी के दौर में हमें भयभीत भी होना है और डर के पार भी जाना है।इस बात पर जनमत को एकमत से केंद्रीय सत्ता से सवाल पूछना चाहिए कि जब देश में ऑक्सीजन जमा करने की जरूरत थी,जब वेक्सिन आंदोलन की जरूरत थी,जब रेमडेसिविर संग्रह करने की जरूरत थी तब सरकार ने इसका बड़े पैमाने पर निर्यात क्यों किया। सरकार जनता के सम्मुख योग्यता और नैतिकता खो चुकी है।
     इसलिए पब्लिक हेल्थ सिस्टम की बड़ी लड़ाई की तैयारी तुरत शुरू करनी चाहिए।रीयल और वर्चुल दोनों स्तरों पर।
           -रामाज्ञा शशिधर
            #दिनकर लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर,वाराणसी
            #मालवीयचबूतराबीएचयू  
            #प्रतिबिम्बसिमरिया
            #तानाबानाबनारस