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15 अगस्त, 2021

बीएचयू में आज़ादी की 75वीं याद का अर्थ

रामाज्ञा शशिधर 
 कला संकाय,बीएचयू
@छात्र सलाहकार की कलम से
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√कला संकाय परिसर,उसके कुछ विभागों और छात्रावासों के आसमान में तिरंगा फहरा।सादगी और जज़्बे के साथ।
√पूरे लोकवृत में विरासत की गूंज और परिस्थिति की चुनौतियों के बिंब और शब्द आकार लेते रहे।
√संकाय प्रमुख प्रो वीबी सिंह ने वक्तव्य में कहा कि आजादी को मजबूती गांधी,मालवीय,नेहरू,पटेल,जेपी के आचरण और विचार से मिलती है।देश के सामने स्वाधीनता को याद रखने और संभालने की बड़ी चुनौती है।
√भोग संस्कृति के सेल्फी युग में कोरोना प्रोटोकॉल के बीच बिड़ला बी और  लाल बहादुर शास्त्री छात्रावासों के
छात्रों शिक्षकों की सादगीपूर्ण रंगारंग तैयारी बीएचयू की परंपरा के अनुरूप थी।वे बधाई के पात्र हैं।
   

 {इसे आज़ादी के उत्सव का वर्तमान रंग कहिए }
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       [ स्वाधीनता:विरासत,वर्तमान और भविष्य ]
★स्मृतिध्वंश और स्मृति विखंडन के युग में बीएचयू जैसे   सार्वजनिक शैक्षणिक संस्थान की देह और चेतना से निरंतर संवाद की जरूरत बढ़ गई है।इस संदर्भ में दो बातें जोर देकर याद रखने लायक हैं।
       पहली,कहते हैं जब मालवीय जी ने ब्रिटिश वास्तुकार पैट्रिक गेडीज़  से बीएचयू के नक्शे पर बातचीत करते हुए सवाल किया कि शैक्षिक भवनों  से केंद्रीय कार्यालय दूर और लघु क्यों है।तब गेडीज़ ने ऑक्सफोर्ड,कैम्ब्रिज के अनुभव से उत्तर दिया था कि जब प्रशासनिक कार्यालय शिक्षणालय के नजदीक आ जाता और उसका आकार बड़ा हो जाता तब
शिक्षा का स्वास्थ्य कमजोर हो जाता है।
          दूसरी चीज।आज हर शिक्षक-छात्र को बीएचयू शिलान्यास 1916 के गांधी का ऐतिहासिक महान भाषण पढ़ना चाहिए।पढ़ना ही नहीं चिंतन,मनन,अभिव्यक्ति और आचरण में शामिल करना चाहिए।वह भाषण बीएचयू के चेहरे के लिए सबसे शानदार दर्पण है।विरासत से ज्यादा भविष्य का आईना।
★अनेक गांवों-किसानों को विस्थापित कर बीएचयू की काया सुर्खी,चूना,लखौरी ईंट के मेल से बनी ऐसी विरासत है जो भारत के अंधकार युग में 'शिक्षा की वास्तुशिल्पीय मशाल' की याद दिलाती है।बाजार की भूमण्डलवादी आंधी और सामाजिक विखंडन के कारण भारतीय ग्रामीण समाज गहरे संकट से गुजर रहा है।उसके पुनर्निर्माण का रास्ता खोजने की शोधपरक ज़िम्मेदारी बीएचयू जैसी सार्वजनिक संस्था की है।नई पीढ़ी को आज़ादी से एक प्रेरणा यह भी लेनी चाहिए कि करोड़ों कटे फटे चेहरों की मरम्मत के लिए गांधी की तर्ज पर  नया हिन्द स्वराज्य जैसा शोधपरक ज्ञान कैसे पैदा होगा।
★मशीनी और वित्तीय क्रूर पूँजीवाद जब हर नागरिक की देह और चेतना को यंत्र के पुर्जे में बदल देने में सफल है तब  संस्थान को 'तर्कशील दार्शनिक गुरु ज्ञान' और 'गार्बेज कुकीज सूचनात्मक गूगल गुरु स्टोरेज' के फर्क को केंद्र में रखकर शिक्षा के क्षेत्र में परंपरा और नवाचार का नया मॉडल देना होगा।हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है ' से सीख लेते हुए तय करना होगा कि 'शिक्षा का लक्ष्य माल उत्पादन नहीं, मनुष्य निर्माण है'।
★ देशभक्ति,बलिदान,विचार निर्माण,दर्शन-विज्ञान-संस्कृति का पुनर्गठन,साहित्य-कला-विचार का जन उत्पादन जैसे दर्जनों कार्य इसके फलसफे पर अंकित हैं। संस्थान को 'सतरंगे फूलों'  और' इंद्रधनुषी रंगों' की तरह विविध विचारों,विमर्शों,शोधकर्मों का उच्च-उदार केंद्र बनाए रखना होगा।
     निःसन्देह छात्र पीढ़ी की ज़िम्मेदारी स्वयं और राष्ट्र के निर्माण की ज्यादा है।उन्हें अपने भविष्य के लिए नए सपनों,नए पंखों और नई ज़िम्मेदारियों की जरूरत है।

         बीएचयू भारतीय समाज में एक प्रकाश स्तम्भ की तरह है।यह करोड़ों आम जन की पाई पाई से बना है।देश में आम आदमी के बच्चे यहां सस्ती सार्वजनिक शिक्षा पाते रहें,इसकी गारंटी की जिम्मेदारी जितनी शासन सरकार की है,उससे ज़्यादा कामन मैन की संतानों की है।स्वाधीनता के घड़े से निकले इन्हीं तत्वों के मेल को अमृत कहते हैं।समता के मटके में स्वतंत्रता का आनंद अमृत पिया जा सकता है।बिना विविधता और समानता के स्वतंत्रता अमृत के नाम पर मृत तत्व है।