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21 सितंबर, 2011

बनारस में राष्ट्रीय बहस:हमारा समय और आज की हिंदी कविता

पिछले साल की जनधर्मी परंपरा को आगे  बढ़ाते हुए बनारस इस बार कविता पर ज्यादा नुकीला आयोजन कर रहा है.इस बार विद्यार्थियों की संसद का विचार हुआ है कि हिंदी समाज गहरे संकट से गुजर रहा है और हिंदी कविता के खेत में अन्न देने वाली फसलों पर गाजर घास का हमला बढ़ता जा रहा है.नकली और असली कविता का मानक खत्म किया जा रहा है.पुरस्कार और महंथई की राजनीति ने नकली  और अजनबी कविता का बाजार गरम कर रखा है,वहीँ सच्ची और अच्छी कविता कारावास और कसाई के हवाले की जा रही है.हड़ताली पीढ़ी की आलोचना चूक चुकी है.
                               ऐसे कठिन वक्त में जरूरी है कि कवि और पाठक मिल बैठ कर संयुक्त रूप से यह तय करें कि कविता अपने समाज में बने रहने के लिए स्वयं में क्या क्या बदलाव ला सकती है.हिंदी कविता कलात्मकता और लोकप्रियता की  एकता को कैसे अपनी परंपरा से प्रेरणा लेते हुए आगे बढ़ा सकती है.कबीर और तुलसी के जनपद से अच्छी कोई और दूसरी  जगह इस अहम जिम्मेदारी के लिए नहीं हो सकती.इस ऐतिहासिक आयोजन की  रूपरेखा इस तरह है:

10 सितंबर, 2011

बुरे समय में नींद ने कविता न पढ़ने के मिथ को तोडा :गौरीनाथ