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30 जनवरी, 2012

बनारस में साहित्य की नयी लहर





 साहित्य में हाशिया ही केन्द्र होता है.बनारस में इन दिनों साहित्यिक घमासान चल रहा है.केवल जनवरी २०१२ में दर्जन से अधिक बहस-विमर्श हुए.२८ को हिंदी एम्ए के छात्रों ने 'भारतीय राष्ट्र की पुनर्व्याख्या :हाशिए का परिप्रेक्ष्य 'विषय पर ताप से भरी संगोष्ठी की जिसमे वीर भारत तलवार,कालीचरण स्नेही सहित दर्जन भर बहसकार थे.चिंतकों का मानना था कि राष्ट्र अपने जन्मकाल से ही हाशिये के दमन और लूट का औजार रहा है. .आदिवासी,दलित,मुसलमान,किसान,स्त्री,उपेक्षित राष्ट्रीयताएँ आज राज्य की चक्की में राष्ट्रवाद के नाम से ही पिस रहे हैं.कारपोरेट पूँजीवाद और पूंजीवादी राष्ट्रवाद के गठबंधन का उत्पीडन इसी तरह जारी रहा तो आने वाला समय एक भयानक उथल-पुथल से गुजरेगा.२०११ बनारस और बीएचयू के रचनात्मक-वैचारिक माहौल के लिए किसी भी हिंदी जनपद से ज्यादा सक्रिय साल रहा.चाहे शताब्दी कवियों की याद हो अथवा क्रन्तिकारी कवि वरवर राव का काव्य पाठ,महत्वपूर्ण रचनाओं-किताबों के प्रकाशन का मसला हो या साहित्य अकादेमी व् भारतभूषण अग्रवाल जैसे जरूरी पुरस्कारों की उपलब्धि,इरोम शर्मीला का आन्दोलन हो या अन्ना का,कविता,कहानी ,आलोचना,रिपोर्ताज -हर विधा में नयी लहर है,दोपहर है.-माडरेटर 

02 जनवरी, 2012

 कल गुरु काशीनाथ पचहत्तर के हो गए और मै बकैत .दुनिया जब नए साल का जन्म दिवस माल,रेस्तरां और हाल में पिज्जा,बेबीकोर्न क्रिप्सी,फेनी और कोलावेरी डी में डूबकर मना रही थी तब अस्सी के बकैत अड़ीबाज बर्थडे ब्वाय मि. के. नाथ की ७५ वी पार्टी को पोई की चाय संसद में गोल-लम्बे गुब्बारे,गेंदे-गुलाब के गुलदस्ते,गली के सरियल कुक्कुर की तरह केंकियाते  हार्न,पत्थर की रेलिंग पर चूतरों से घिसी चट्टी के सहारे  बोकिया रहे  थे.