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17 अक्टूबर, 2010

एक साधो का रोजनामचा




             oÉRûÉuÉWÒÇû xÉÉखा

Wåû xÉÉkÉÉå!
qÉæÇ cÉÉæUÉWåû mÉU ZÉÄQûÉ WûÉåMüU oÉÉåsÉ UWûÉ WÕÇû iÉÉå CxÉå cÉÔÌiÉrÉÉmÉÉ qÉiÉ xÉqÉfÉ.rÉWû MüÍsÉMüÉsÉ Wæû.iÉÑsÉxÉÏSÉxÉ MüÌWûlÉ Wæû ÌMü MüÍsÉMüÉsÉ ÌuÉqÉÌiÉ MüÉsÉ है.  

15 अक्टूबर, 2010

कविता घाट : बनारस में युवा कवियों का जमघट होगा

युवा कवि संग

पाठक मित्रो! समाचार में दी गयी कवियों की सूची  आयोजक मंडल का अपना निर्णय है. फेस बुक पर कुछ  साथियों ने सूची  पर सवाल उठाये हैं.मेरा उनसे अनुरोध है कि सवाल को जनतांत्रिक और स्थाई बनाने के लिए  ब्लाग पर टिपण्णी करें- माडरेटर 

देश बदर मकबूल फ़िदा  हुसैन की कविता




२०१० हिंदी उर्दू के कई महान कवियों का जन्मशती साल है. पुराना कवि नए कवि में ज़िंदा रहता है और पुरानी कविता नई कविता में. नवम्बर २०१० की १ तारीख हिंदी कविता के लिए शुभ दिन है जब देश भर के लगभग चार दर्जन युवा कवियों की मेजबानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के शोध आयोजक मंडल के द्वारा होगी जिसके संयोजक रविशंकर उपाध्याय हैं.
 काशी हिंदी कविता की कर्मभूमि है.  कबीर,तुलसी,रैदास,भारतेंदु,प्रसाद,नजीर,त्रिलोचन,धूमिल,ज्ञानेंद्रपति से लेकर अलिंद तक. काशी हिंदू विश्वविद्यालय कविता पोषक गर्भगृह रहा है. बच्चन,सुमन,केदारनाथ सिंह,विजेन्द्र,गोरख पांडेय,माहेश्वर आदि से लेकर अरविंद अवस्थी,अनुज लुगुन तक इसके प्रमाण हैं. कविता-नदी के कई रूप अनवरत प्रवहमान रहे हैं. 
 यह धर्म की नगरी में धर्मनिरपेक्ष कुम्भ होगा.देश में कुश्ती का आरंभ एक महाकवि तुलसीदास ने किया था और वह भी काशी से. बनारसी नामवर सिंह का कहना है "बनारस हिंदी सहित्य का पानीपत है."हिंदी कविता जब जन से बहुत दूर अंतरिक्ष यात्रा पर है, कविता का जन से मिलना जुलना अपनी आवोहवा में शामिल होना है,अपने पुआल और सरपत के छप्पर वाले घर में लौटना है. इस कविता संगम की सदारत करेंगे पूरावक्ती कवि ज्ञानेन्द्रपति जो कविता खोजते हुए कभी रेलवे पुल की ऊंचाई पर पाए जाते हैं और कभी बनारसी घाटों की खाई में.
 हिंदी विभाग के शोधार्थियों  द्वारा आमंत्रित कवि हैं-
निर्मला पुतुल                                           
पवन करण
हेमंत कुकरेती
बद्रीनारायण   
आशुतोष दूबे
कुमार मुकुल
श्रीप्रकाश शुक्ल
आशीष त्रिपाठी
रामाज्ञा शशिधर
पंकज चतुर्वेदी
व्योमेश शुक्ल
जीतेंद्र श्रीवास्तव
नीरज खरे
आर चेतन क्रांति
प्रेम रंजन अनिमेष
अनिल त्रिपाठी
यतींद्र मिश्र
मनोज कुमार झा
शैलेय
बसंत त्रिपाठी
गिरिराज किराडू
शिरीष कुमार मौर्य
रवींद्र स्वप्निल प्रजापति
तुषार धवल
अरुणदेव
हरेप्रकाश उपाध्याय
अरुण शितांश
राकेश रंजन
निशांत
रंजना जायसवाल
प्रांजलधर
वाज़दा खान
कुमार अनुपम
ज्योति किरण
शिव कुमार पराग
प्रमोद कुमार तिवारी
वंदना मिश्र
कुमार वीरेंद्र
राहुल झा
वर्तिका नंदा
अरुणाभ सौरभ
अनुज लुगुन                                                 
श्रीकांत दूबे
अलिंद उपाध्याय
सुधांसु फ़िरदौस
सोमप्रभ
मिथिलेश शरण चौबे 

13 अक्टूबर, 2010

कविता घाट : मुखियाजी


मुखियाजी का तांडव जारी है. चाहे गांव की पंचायत हो या देश की. संयोग से यूपी और बिहार के चुनावों से जनतंत्र का पाखंड फ़िर खुल रहा है.गांव,टोला,मुहल्ला,घर,दालान,खेत,बथान सभी बाजार,बारूद,जुल्म,जाति और जहर में नए सिरे से बदल गए हैं.दारू से,मुर्गे से,साडी से,धोती से,कट्टे से,टके से,जनेऊ से,खडाऊं से,गोत्र से,मूल से,नाभि से,नाल से मत का दान दनदना रहा है.लोकतंत्र फ़नफ़ना रहा है. ऐसे में बया और दिनकर स्मारिका  में छपी आपबीती और जगबीती  कविता मुखियाजी फ़िर से पोस्ट करने को मजबूर हूं.-रामाज्ञा शशिधर


मुखिया जी कुछ भी न बदला
बदल गए बस आप

जब से आप हुए जनसेवी
लोकतंत्र कुछ और फरेबी
जात धरम की नई जलेबी 
हाट बाट है लेवी  लेवी 
हाथ न सूझे रात है कैसी
तीन ताल धुन सात है कैसी

पूरी गाड़ी खेंचे में है
निकल गए बस आप

न्याय समिति उत्थान सभाएं
बुश ब्लेयर हैं दाएं बाएं
रात रात चलती कक्षाएं
किसे उठाएं किसे गिराएं
एक कथा में सौ मुद्राएं
हर मुद्रा की सौ शाखाएं

चौसर के सब मंत्री मर गए
अमर हुए बस आप

प्राइवेट पब्लिक मिश्रित सेक्टर
आरक्षण के सारे फेक्टर
वर्ल्ड बैंक एनजीओ चैप्टर
लाल कार्ड का मेसी ट्रैक्टर
ठेका पट्टा लूट दलाली
फिर भी दांतिल आंत है खाली

रायल संग मुर्गा काकरेली
निगल गए बस आप

मैकाले की नई मनीषा
आपकी खातिर बुद्ध और ईसा
जाप लिये फुसफुस चालीसा
बिछा रही पत्तल पर शीशा
गिरे लाश न भरे गवाही
मूर्ति निमित्त धन करे उगाही

ग्राम बदर हो गया ससिधरवा
ग्राम रतन हुए आप





09 अक्टूबर, 2010

आईसीटी पुनश्चर्या पाठ्यक्रम (२२ सित. से १२ अक्तू. २०१०),एएससी,बीएचयू के व्याख्यानों का सारांश 
२३.०९.१० -१,२,३
सूचना व संचार प्रौद्योगिकी क्या है? इसकी संभावनाएं?
ऐसी प्रौद्योगिकी जो तथ्यों, आंकड़ों,चित्रों,स्वरों,विडिओ, पाठ  का संग्रहण,निर्माण,पुनर्निर्माण,परिवर्तन करे और उसकी वैज्ञानिक व्यवस्था दे वह सूचना प्रौद्योगिकी है. जो इन सूचनाओं का सम्प्रेषण और संवहन, संरक्षण और प्रदर्शन करे वह संचार प्रौद्योगिकी है.
विकासक्रम :
० १९८०-९०- डाटा प्रोसेसिंग, आदान-प्रदान
० १९९०-२०००-इ कामर्स , टेलीकाम ज्ञान
० २००५-......-बायोटेक,मोबाईल कामर्स, आईसीटी 
आईसीटी की कार्यप्रणाली  
असीमित बैंडविथ 
० उच्चतर गति 
० बेतार पहुँच 
आईसीटी के सेवा क्षेत्र
मेडिकल ट्रांसक्रिप्सन
० कल सेंटर,बीपीओ
० वैध डाटाबेस प्रोसेसिंग
० बेंक-आफिस क्रिया कलाप
० डाटा  प्रोसेसिंग
०डब्यू डब्ल्यू डब्ल्यू सेवा
० राजस्व सेवा
उच्चतर आईटी कुशलता क्या है?
० प्रोग्रामिंग कुशलता ० नेटवर्किंग ० साफ्टवेयर अभियांत्रिकी ० आपरेटिंग सिस्टम अवधारणा ० सामग्री सृजन
०  व्यवसाय/ आउटसोर्सिंग  अवधारणा 
आउट सोर्सिंग क्षेत्र में अवसर खिड़की
० बीपीओ( बिजिनेस प्रोसेस आउट सोर्सिंग) से आगे  सोचिये
० केपीओ- नालेज प्रोसेस आउट सोर्सिंग
० एफपीओ- फिनान्सिअल प्रोसेस आउट सोर्सिंग
० एलपीओ- लीगल प्रोसेस औत सोर्सिंग
यह नालेज इकोनोमी युग है.
यह वर्चुअल इकोनोमी का युग hai

आईसीटी का इतिहास
एक कहावत है-
लाल बुझक्कड़ बूझ गया और न बूझा कोय
पाँव में पत्थर बाँध के हिरना कूदा होय
-खेतों में उगे चिन्ह को केवल गांव का बूढा लाल बुझक्कड़ समझ पाया. वह हाथी के पैरों के निशान थे न कि
चक्की बंधे हिरन पांव के. सूचना और संचार यही समझ है.
पारंपरिक सूचना संचार - हल्दी,चावल,सुपारी,ढोल,पत्ते,कबूतर, ख़त,फरमान आदि.
क्रमिक विकास
० पूर्व-मेकेनिकल यंत्र ०  मेकेनिकल यंत्र ० इलेक्ट्रो-मेकेनिकल यंत्र(१८४०-1940) ० इलेक्ट्रोनिकल यन्त्र(१९४०-अब तक )
कुछ जरूरी आविष्कार
० कागज-१०० एडी , चीन ० पहली कलम -९५३,अरब ० कबूतर से संवाद-११५०,बगदाद
० पहला कूरियर पोस्टल  ० कम्प्युटर-१८९७ ० टेलीविजन-१९२७ ० कम्यूनिकेसन कम्प्यूटिंग-१९६९
० इंटरनेट , मोबाईल-१९८३ ० ब्राडबैंड-२००३ ० ब्लाग्स-२००५









.साहित्य में करेला ज्यादा फाइदेमंद है या काशीफल


   
नामवर सिंह : नामी आलोचक और ईनामी आलोचक
आलोचना शिल्पी नामवर सिंह चुपचाप चौरासी के हुए. जाहिर है चौरासी में पचहत्तर और अस्सी जैसा शोर होने का कोई तत्व  भी नहीं है. चौरासी पर उन्हें इ एम् इ सी  ग्रुप की ओर से ५१ हजार का शब्द साधना शिखर सम्मान मिला. युवा रचनाकारों में रणेंद्र ,निशांत ,दिलीप कुमार  भी पुरस्कृत हुए. यह सम्मान नामवर सिंह को लेना भी चाहिए क्योंकि इसमें शिखर शब्द जुड़ा हुआ है. कायदे से उन्हें ऐसा कोई सम्मान नहीं लेना चाहिए जिसमे शिखर,चोटी,उत्तुंग,एवरेस्ट,कंचनजंघा आदि न जुड़ा हो.दूसरी बात ,कहा जाता है कि इस  पुरस्कार की शुरुआत की  बुनियाद में वे सुझावदाता थे  और बाद में परामर्शदाता भी. नामवर सिंह की रूचि से सम्मान समारोह उनकी जन्मभूमि बनारस में होना तय हुआ. जिस स्थल पर अस्सी हुआ था वहीँ हुआ. फिर,जो वे चाहते थे वही हुआ. आखिर क्या हुआ?
            कामन वेल्थ गेम में अक्टूबर से बनारसी फूल के निर्यात होने और  देवताओं के लिए फूल का टोटा पड़ने से पहले उन्हें खूब फूल मिले, हिंदी शिक्षक की ओर से दादा गुरू  की उपाधि मिली, प्रलेसिये की तालियाँ मिली,जसमिये का संयोजन-संचालन मिला,हिंदी की नयी पीढ़ी की खचाखच भीड़ मिली. बाकी को पुरस्कार सर्टिफिकेट के अंदाज में मिले ,नामवरजी को सम्मान की अदा में.
            नामवर सिंह का कहना है कि बनारस हिंदी साहित्य का पानीपत है. स्थापित होने के लिए इस मैदान में जीतना होता है.दरअसल रामलीला,हनुमान प्रचार और कुश्ती की परम्परा महाकवि तुलसीदास की देन है . संयोग से नामवर जी बनारस में  तुलसीदास के  बिलकुल पडोसी रहे हैं. वे साहित्यिक कुश्ती के पुराने उस्ताद हैं जिन्हें पहलवानों के मनोविज्ञान और बल विज्ञान की बारीक़ समझ है. हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.राधेश्याम दुबे द्वारा नामवर सिंह को दिया गया दादा गुरू का संबोधन इसलिए भी मौलिक और दिव्यर्थी है क्योंकि बनारस और  हिन्दी में दादाओं ओर गुरुओं की कमी नहीं है.एक साथ  दादा गुरू तो सिर्फ नामवर सिंह ही हो हो सकते हैं. वे ऐसे उस्ताद हैं जिन्हें  पता है कि जहाँ काम आवे सुई कहा करे तरवारि.
           इस बार का विचार- युद्ध शीर्षक था -परंपरा और रचनात्मकता. काशी के प्रकांड पंडितों को परंपरा के संस्कृत-कूप में डालकर नामवरजी ने  खुद रचनात्मकता की रस्सी बाल्टी हथिया ली. बनारसी बुद्धि का मंच करतब ऐसा हुआ कि दिल्ली से पधारे गोपेश्वर सिंह,रोहिणी अग्रवाल,राकेश बिहारी आदि को दर्शक दीर्घा में ही जमे रहना पड़ा. मजेदार यह था कि एक ओर नामवर सिंह विचारों के कनमा छटांक से काम चलाते रहे वहीँ पुरस्कारदाता का भाषण मुम्बइया हवाई मिठाई की  तरह लम्बा और सारहीन था. आत्ममुग्धता और निजगान के साथ पत्रिका का प्रचार मुख्य सार था. पाखी का नामवर विशेषांक विमोचित  हुआ जिसकी बासी सामग्री इस बात का प्रमाण है कि मालिक संपादक  की साहित्यिक निष्ठा कितनी क्रन्तिकारी है. पाखी के संपादक मालिक ने मंच से दहाड़ते हुए कहा कि वे नामवर जी से किसी भी तरह की बात करने की छूट लेते हैं और राजनीति में दिलचस्पी के कारण वे जबरदस्ती लम्बा बोलेंगे. श्रोताओं की चाह थी की नामवर जी अपने समय पर कुछ नया बोलेंगे. उनकी चुप्पी और आयोजक अपूर्व जोशी के बडबोलेपन के पीछे की माया का कारण मजेदार है.
              पिछले शिक्षक दिवस पर अमर उजाला में साहित्य के बुजुर्ग शिक्षक नामवर सिंह पर रवींद्र त्रिपाठी की एक टिपण्णी है- नामवर सिंह हिंदी में चुप्पी के सबसे बड़े मास्टर हैं. 
              इस चुप्पी का गहरा राजनीतिक निहितार्थ  है. बकैत बनारस से उन्होंने चुप्पी का रूप चुना है. इसलिए उनके पान घुलाने,१२० नंबर फांकने और मंद मंद मुस्काने की अपनी रणनीति है. पान नामवर सिंह के मुंह में चलने वाली राजनीति का  चलायमान जयगान है.
             यह चुप्पी उनके लिए जितनी  शुभ हो ,समाज और साहित्य के लिए घातक है. जैसे कुलपति वी एन राय के नया ज्ञानोदय  प्रकरण पर कुलाधिपति पद की चुप्पी, विष्णु खरे के हिदी विभागों को चकला घर कहने और उन्हें पुरुष वेश्या कहने पर चुप्पी, सलवा जुडूम और ग्रीन हंट के संचालक के किताब लोकार्पण को लेकर हुए विरोध पर चुप्पी, बिहार के बाहुबली नेता   के साथ मंच पर जाने के कलाकारों द्वारा विरोध पर चुप्पी,जसवंत सिंह की किताब  की आलोचना के विरोध पर चुप्पी, प्रलेस महासचिव कमला प्रसाद द्वारा फोर्ड फाउन्डेसन से  पैसा लेने लौटाने के प्रकरण पर चुप्पी, बनारस में प्रलेस सम्मलेन में विचारधारा के अंत की घोषणा की आलोचना पर चुप्पी आदि. उम्मीद है, कोई अंध भक्त टेपित लाभ के लिए नामवर सिंह को बोलवाए या भाषण अंकन के सिलसिले में वे  कुछ  बोलें तो बोलें वरना स्टैंड के नाम पर आई सी सी  का कार स्टैंड उनके लिए  सबसे सुविधाजनक स्टैंड  है.
          .पाखी इएमइसी ग्रुप की साहित्यिक पत्रिका है. आइये ,अगस्त में ग्रुप के मालिक का सम्पादकीय स्टैंड सुनिए. संपादक के लिए मध्य मार्ग उत्तम मार्ग है  यानी वर्त्तमान व्यवस्था सुमार्ग है.सम्पादकीय का कहना है कि अरुंधती रॉय अतिवादिता की  शिकार हैं. रूस वैचारिक स्वंत्रता का दुश्मन था.'' विचारधाराओं में बंधा मस्तिष्क अतिवादिता का शिकार हो जाता है.उसमे ठहरे हुए जल के समान दुर्गन्ध आने लगाती है.''  अमेरिकी साम्राज्यवादी नीति रूसी वामपंथ और भारतीय वाम विचारधारा  की जनविरोधी अतिवादिता एक जैसी है. आदिवासी किसानों की लडाई का मुद्दा केवल नक्सलपंथ का मुद्दा है.
        संपादक का कहना है कि कैसे कोई तय कर सकने की निर्णायक भूमिका में है कि विश्वरंजन के हाथ निर्दोषों के खून से रंगे हैं. सम्पादकीय के अनुसार मार्क्सवाद एक आयातित विचारधारा है. आदिवासी किसानों  को क्या पता है  कि मार्क्स-लेनिन 'किस चिड़िया  का नाम है. मालिक संपादक का कहना है" मैं किसी भी विचारधारा को अंतिम  सत्य नहीं मानता.' 
        विचारधारा  को अफीम मानने वाले संपादक क़ी मानवता का राज यहाँ है कि ''मैं एक ब्राहमण परिवार में जन्मा हूँ मेरे लिए इसका कोई महत्व नहीं है. लेकिन मैं इसके लिए शर्मिंदा भी नहीं हूँ.'' आगे ''अब देखिये विचारधाराओं का प्रदूषण.  जब नरेन्द्र मोदी को अपराधी कहता हूँ तो सराहना होती है. हुसैन के खिलाफ लिखता हूँ तो दक्षिण पंथी करार दे दिया जाता हूँ.''
        सितंबर के सम्पादकीय में मालिक का साफ़ कहना है कि मैं एक कपड़ा व्यापारी हूँ और रियल स्टेट का कारोबारी हूँ . भूमंडलीकरण  की  प्रक्रिया के साथ साहित्य में यह परिघटना बड़े पैमाने पर शुरू हुई है जिसमे पुरस्कार और पत्रिकाएं साख, शक्ति और प्रतिष्ठा संरचना के फ्रंट लाइन ट्रूप्स हैं.
      कार्ल-मार्क्स के करेले से ज्यादा कामू के काशीफल पर नजर गडाए रखनेवाली हथेलियों से नामवर सिंह ने सम्मानित होकर बाजार और सरोकार दोनों धर्मों  की सेवा अवश्य की. क्या उस वक्त  तालियों के शोर  में उन्हें याद आया होगा  क़ि  एक विचारधारा में उनकी इतनी आस्था थी कि कभी यहाँ से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस को अपन जन्म दिवस मानते थे.
        बनारस में दो  दशक से  सैकड़ों  किसानों और बुनकरों की मौतों का सिलसिला जारी है और देश में लाखों किसानों की.  जनता और जनविचारधारा  को मनुष्यता का दुश्मन माननेवाली वैचारिकी से सम्मानित होते हुए चुप्पी का नहीं टूटना समय और हिंदी बौद्धिकता के सन्नाटे को और बढ़ाता है.भारतीय समाज में हिंदी बौद्धिकता सर्वाधिक सत्तामुखी, उत्सवधर्मी और जन  प्रश्न से कटी है. इसलिए वह सर्वाधिक संदेह के घेरे में है. सन्नाटे के कोहरे में जीवन मूल्य, विचारधारा और जन सरोकार लाश की तरह दबाकर रख दी गयी है. जनता का दुःख तिरस्कृत है और साहित्य में आया दुःख पुरस्कृत.अभी अँधेरा बहुत घना है.  धूप उगने से पहले बहस जारी रहेगी कि करेला ज्यादा फायदेमंद है या काशीफल.