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19 जनवरी, 2025

काशी की रेत पर 'दिव्य निपटान'

√राश की डायरी
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रामचंद्र शुक्ल ने नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित 'शब्द सागर' में 'निबटान' के साथ 'निपटान' शब्द को  भी लिया। 'निपटान' शब्द की महत्ता काशी की परंपरा में बहुत ज्यादा है। काशी के फक्कड़ रहवासियों ने गंगा पार रेत पर 'मल त्याग' की क्रिया को 'मोक्ष प्राप्ति के स्तर तक' उठाने के लिए  पवर्ग के तृतीय वर्ण 'ब' की जगह प्रथम वर्ण 'प' को उच्च स्थान दिया और उसके विशेषण के रूप में 'दिव्य' शब्द को जोड़ा।  पश्चिम में निपटान को एक कामुक क्रिया या ऑर्गज्म के रूप में फ्रायड ने अभी अभी देखा है। काशी ने सदियों पूर्व निपटान में दिव्य लगाकर प्लेजर से आगे उदात्तता और मोक्ष तक पहुंचा दिया।
       काशी ने मुक्तिदायक ' दिव्य निपटान' के लिए स्थल गंगा पार 'रेत' को चुना। रेत राग और संभावना से मुक्त उदासीन अखाड़ा है जहां निपटान करने वाला स्वयं से दंगल करता है। 'निपटान' ऐसी क्रिया है जिसमें बाह्य सहयोग से फायदा नहीं मिलता। रेत पर निपटने के बाद अन्य क्रियाओं में सहयोग की जरूरत पड़ती है। जैसे लंगोट गमछा सुखाई,अग्नि सुलगाई,भंग घोटाई, तरावट घोलन कार्य, बाटी चोखा सिझाई आदि। और दिव्य तो स्वर्गीय,अलौकिक होता है। काशी के लिए यह सब अब स्मृति है। तो बच गए इनके कुछ पर्याय जो यहां हैं-
(क) दिव्य
स्वर्ग से संबंध रखनेवाला । स्वर्गीय । २. आकाश से संबंध रखनेवाला । अलौकिक । ३. प्रकाशमान । चमकीला । ४. बहुत बढ़िया या अच्छा । जो देखने में बहुत ही सुंदर या भला मालूम हो । खूब साफ या सुंदर । जैसे,—(क) उन्होंने एक बहुत दिव्य भवन बनवाया था । (ख) आज हमने बहुत दिव्य भोजन किया है । ४. लोक से परे । लोकातीत (को॰) ।

(ख) निपटान
१. पूरा करना । समाप्त करना । खतम करना । करने को बाकी न छोड़ना जैसे, काम निबटाना । २. भुगताना । चुकाना । बेवाक करना । जैसे, कर्जा निबटाना । ३. तै करना । निर्णित करना । झंझट न रखना । जैसे, झगड़ा निबटाना ।
      आप इस दिव्य शब्द के सामान्य अर्थ से मजा लीजिए। सारे पर्याय बताते हैं कि यह संभावना और उपलब्धि से मुक्त शब्द है। इसलिए 'रेत' तत्व से बना 'शिल्प' जैसे क्षणभंगुर है और तुरत नष्ट हो जाता है  वैसे ही 'रेत' शब्द से बनी रचना भी किरकिरी हो सकती है रसपगी नहीं। 'रेत' दिव्य निपटान के लिए ही है,कबीर समझ गए थे।इसलिए वे गली,घाट,गंगा को रचने के बाद सीधे मगहर की मिट्टी में मिल गए। आजकल काशीवासियों ने रेत को त्याग दिया और आर्थिक-सांस्कृतिक माफिया उसपर 'दिव्य निपटान' कर रहे हैं।आखिर मसला समाजमुक्त 
चरम सुख का जो है।
【विशेष जानकारी : अब काशी आकर 'शब्द सागर' उर्फ 'रेत का तेल' खरीदने की जरूरत नहीं है। मुस्टंग दुष्ट अमरीका की एक यूनिवर्सिटी ने पूरे ग्लोब के लिए अनूठी धरोहर का ऑनलाइन 'निपटान' कर दिया है। दूसरी ओर विशेषण 'दिव्य' बनारसियों के लिए छोड़ दिया है। आजकल वह भारत के प्रधानमंत्री  के पहले लगता है।】

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