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04 अक्टूबर, 2011

कविता घाट:सूरन बाजार के खिलाफ देशी विचार है

           सूरन 


कोई दांत निपोड़े या नींबू निचोड़े 
खुरचन से रगड़े या सितुआ खखोरे 

कवकवाने की कवायद मेरा स्वभाव 
क्या करूं मिट्टी से रहा ऐसा लगाव 

चाहे जिस भाषा में रहूँ 
काम करूँगा ऐसा कि लगूं 
कि लगता रहूँ जीभ को 
तालू लार कंठ को 
आत्मा अमाशय आँत को 
रसायन बुद्धि विचार को 

01 अक्टूबर, 2011

कविता से पहले कवियों को दीमक के हवाले कर देना चाहिए


हमारा समय और आज की हिंदी कविता' पर राष्ट्रीय बहस बीएचयू के राधाकृष्णन सभागार में 24 सितम्बर 2011 को सात घंटे तक चलती रही.हिंदी कविता की दिशा,दशा और भविष्य को लेकर हुई .गोष्ठी से अनेक जरूरी सूत्र निकले हैं जो आज की कविता के गतिरोध,खूबी और ताकत को शिद्दत से रेखांकित करते हैं.रस्मी और फर्जी गोष्ठियों से अलग कविता से गंभीरता से प्यार करने वालों के बीच हुए वाद विवाद संवाद के सम्पादित अंश को आज की कविता के घोषणा पत्र के तौर पर श्रोताओं ने लेने की अपील की है..हम आपसे चाहते हैं कि इस बहस को आगे बढ़ाएं ताकि हिंदी में असली और नकली कविता,जनधर्मी और जनविरोधी कविता का नया पैमाना विकसित हो सके-माडरेटर