सूरन
कोई दांत निपोड़े या नींबू निचोड़े
खुरचन से रगड़े या सितुआ खखोरे
कवकवाने की कवायद मेरा स्वभाव
क्या करूं मिट्टी से रहा ऐसा लगाव
चाहे जिस भाषा में रहूँ
काम करूँगा ऐसा कि लगूं
कि लगता रहूँ जीभ को
तालू लार कंठ को
आत्मा अमाशय आँत को
रसायन बुद्धि विचार को
सूरन जो हूँ भाई!
इतना उपेक्षित हूँ कि
माथे पर फूल नहीं
कलेजे में बीज नहीं
कलमुंही सूरत है
चेहरे पर आब नहीं
फालतू बोझिल समय ने
फेंक दिया गांठों के गुच्छ को
बंसवाडे गंडोरे या भट्ठे के पांव तले
फैलना पड़ा धीरे धीरे
धरती के गर्भाशय को जबरिया फैलाता हुआ
कोख का जीवन से ऐसा ही रिश्ता है
सूरन ओल बंडा या जमीकंद
जिस नाम से जो भी पुकार ले
कवकवाहट में फर्क नहीं
एक जैसी कवायद है
मैथिली मगही भोजपुरी अवधी हो
ब्रज बुंदेली पहाड़ी मेवाडी हो
हर बोली में मिल जाएंगे मेरे आशिक
चोखे के सब्जी के मुरब्बे के अचार के
हिंदी ही क्यों
टमाटर गोभी भिंडी के भी
बदल रहे हैं रूप रंग स्वाद चाल ढाल
मैं रह गया ओल का ओल
न मिली नागरिकता न भूगोल
-बुरे समय में नींद से