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26 फ़रवरी, 2012

'बुरे समय में नींद' में शामिल मेरी ग्यारह प्रिय कविताएँ

 

दोस्तो!
कविता के पुराने प्रतिबद्ध कार्यकर्ता होने के बावजूद काव्य प्रकाशन और प्रदर्शन को लेकर मैं बेहद शर्मीला और आलसी आदमी हूँ.आप पाठकों की हौसला आफज़ाई का नतीजा है कि सितम्बर २०११ में अंतिका प्रकाशन से अपनी ६९ कविताओं का संकलन बुरे समय में नींद ला पाने में सफल हुआ.मेरे लिए यह उत्तेजक उपलब्धि है कि इस काव्य विरोधी समय में बुरे समय में नींद का पहला संस्करण सिर्फ छह महीने में बिक गया तथा प्रकाशक ने जल्द ही दूसरा संस्करण छापने का आश्वासन दिया है.अनेक दोस्तों ने कई महीने से लगातार मांग की है कि मैं एक साथ अपनी कुछ प्रिय कविताओं को परोसूं.आपके लिए मैं संकलन से अपनी ११ प्रिय कवितायें आपके हवाले कर रहा हूँ.उम्मीद है कि आस्वाद और मूल्य दोनों स्तरों पर आप इनसे जुड़कर आत्मीयता महसूस करेंगे.
आपका
रामाज्ञा शशिधर



12 फ़रवरी, 2012

काशी के एक नए कवि की कविता में जायफल की खुशबू

  
हिंदी कविता के प्राचीन गर्भगृह में एक संभावनाशील एवं बेहद अनूठे कवि के जन्म का स्वागत है! २०१२ के बसंत में प्रस्तुत अजय राय की पांच कविताएँ अँखुआ,जायफल,अडडकाशी, अखबारनवीस एवं रेत अपनी अंतर्वस्तु,संरचना और अंदाजेबयां में बिलकुल भिन्न और उम्मीद से भरी हैं.इन कविताओं में बनारस के अनुभव का विश्वसनीय भूगोल है,पत्रकारिता के रोजमर्रे की परतों के भीतर छोड़ दिए गए सच का पुनराख्यान है,मध्यवर्गीय ठहराव की आत्मालोचना है,सत्ता की हिंसा की शिनाख्त है,बौद्धिक वर्ग के बाँझ चरित का टकसाली चित्रण है तथा है समय और चीजों को बदल नहीं पाने की आत्मग्लानि. रोटी को दांव पर लगाकर प्रतिबद्ध पत्रकारिता को जीने वाले इस युवा कवि में रघुवीर सहाय की काव्य -परंपरा की असली और अगली यात्रा देखी जा सकती है.चुनौती और जोखिम से भरी हुई. यह इसलिए भी कि रघुवीरी काव्य परंपरा ने जहाँ एक ओर कविता कर्म को आसान बनाया वहीँ कविता की नागर धरती पर कूड़े का ऐसा  उत्तुंग ढेर लगाया कि पाठकों के लिए कविता सौ मन कूड़े में चावल के एक कण जैसी हो गई.कबीर की धरती के इस नए कवि को आपका प्यार मिलेगा,यह उम्मीद है-रामाज्ञा शशिधर