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18 जुलाई, 2014

रूपनगर एक गाँव का नाम है!



 
.न रूप है न रूपया,न नगरीय सुविधा है न बोध.न जाने क्यों इस ठेठ देहात का नाम रूपनगर हुआ.इतिहास के नाम पर अंग्रेजों द्वारा एक दौर में लूट और यात्रा के लिए बनाया गया रेलवे टीसन था.आज़ादी क्या मिली, रेल ने भी रास्ता बदलकर मुंह मोड़ लिया.फिर भी यह गुणी गाँव रूपनगर ही कहलाता रहा.
गाँव का ह्रदय क्षेत्र दुर्गाथान.दिन के तीन बजे. यहाँ हर वार इतवार होता है.चाय के लिए चूल्हे में कोयला चढ़ गया है.फूस की छानी धुएं और आग से भर गई है.किसान और निठल्ले चर्चा को केतली,स्पेन और छन्ने पर खौलाना शुरू कर चुके हैं. बहस में हर चीज ठहरी हुई है.तभी बाल और युवा मंडल से लदी फटफट मैदान में पहुँचती है.
गाँव की संस्कृति में बदलाव और हस्तक्षेप शुरू है...बैनर टंग गया-प्रतिबिम्ब संवाद श्रृंखला .सिमरिया,बेगूसराय,बिहार-851126.बिस्मिलाह खान के बनारस से आई डफली बोलने को बेताब है.बाल कलाकारों के होठ –हम होंगे कामयाब-गीत से गाँव की जमी हुई काई को पोछ देना चाहते हैं...धीरे धीरे अच्छी खासी भीड़ जुट गई है..तास के पत्ते उर्फ़ साहब,जोकर,गुलाम,इक्के,नहले,दहले शर्मा उठे हैं.सत्तर पार के कामरेड गंगाधर पासवान का कमजोर और बीमार शरीर लगातार पसीना बहाकर हर जरूरी चीज को जुटा रहा है और सोलह से छब्बीस की जवानी मोबाइल पर मस्त है.