✒काल तुझसे होड़ है मेरी✒
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"विज्ञान और साहित्य में समय बोध"
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@रामाज्ञा शशिधर
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😂क्या इस सदी में दर्शन शास्त्र के लिए एकमात्र शेष कार्य भाषा का विश्लेषण है!अरस्तू और कांट से शुरू तत्वमीमांसा की महान परंपरा का यह कैसा पतन!
–स्टीफन हॉकिंग,समय का संक्षिप्त इतिहास,पृ 183
😂काल का कोई निश्चित मापक नहीं है बल्कि सभी प्रेक्षकों का अपना अपना निश्चित काल होता है जिसे उनकी निजी घड़ियाँ मापती हैं।अंतरिक्ष यात्रा से केवल कुछ सालों में बूढा होकर लौटने में आपको मजा नहीं आएगा जब आपकी पृथ्वी के साथी के मरे हजारों साल हो चुके हो।
–स्टीफन हॉकिंग,समय का संक्षिप्त इतिहास,पृ 156
😂वाइट की एक युवा महिला थी
प्रकाश से भी जिसकी तीव्र गति थी
कर गई एक दिन वह आपेक्षिकता से प्रस्थान
और आ गई लौटकर जब
जाने से पहले के दिन का हुआ था अवसान
–एक कविता,समय का संक्षिप्त इतिहास,पृ 156
😂टाइम मशीन उपन्यास 1895 में आया और उसने सूर्य के प्रकाश में कुछ नया जोड़ दिया।एच जी वेल्स की कथा न तब कोरी थी न आज है।
–टाइम मशीन(काल की कल),अंतिम पन्ना
😂काल,
तुझसे होड़ है मेरी
अपराजित तू
तुझमें अपराजित मैं वास करूं
–शमशेर बहादुर सिंह,काल तुझसे होड़ है मेरी
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स्टीफन सर!
आप काल यात्री हैं और यात्रा में हैं।मैं साहित्य का अदना सा छात्र चूंकि बचपन से विज्ञान और ब्रह्मांड के रहस्य को जिज्ञासा और कौतूहल से पढ़ता रहा हूँ इसलिए आपसे दिली रिश्ता बनता गया है।बचपन की एक घटना आपको बताना जरूरी समझता हूँ जिस कारण मैं साहित्य की ओर मुड़ने पर मजबूर हो गया।
मेरे ग्रामीण सरकारी स्कूल मध्य विद्यालय सिमरिया के कारू मास्टर साहब ने बेंत की छड़ी से बड़ी पिटाई कर दी।मेरा दोष था कि मैं कक्षा सात में प्रकाश के प्रावर्तन के नियम पर एक टूटे हुए शीशे से काम कर रहा था।खिड़की की प्रकाश किरण शीशे से टकराकर अचानक मेरी एक क्लास कन्या के सुमुख पर गिर पड़ी।उसने अपने सौंदर्य पर प्रहार समझ कर गणित शिक्षक से शिकायत कर दी।स्कूल के वे स्थाई दारोगा गुरु थे।उन्होंने ऐसी मरम्मत कि मैंने कविता लिखनी शुरू कर दी।क्या पता आपकी तरह मैं भी तरंग और समय की व्याख्या में आज लगा होता।भारत को आज भी थेरेपी की जरूरत ज्यादा है आविष्कार खोज की कम।खैर😃
जब आपकी कोशिकीय यात्रा खत्म हुई तब मालवीय चबूतरा ने आपकी स्मृति में संवाद किया।शिक्षक छात्र सभी दो सप्ताह तक शामिल हुए।पहले रविवार को विज्ञान और काल के रिश्तों पर श्रीप्रकाश शुक्ल और छात्रों का संवाद रहा।दूसरा रविवार साहित्य और समय के रिश्तों पर मेरे साथ विद्यार्थी उलझते सुलझते रहे।
दो सप्ताह की चिंतन यात्रा तथ्यों से भरी थी लेकिन दर्शन और सत्य कभी कण की तरह और कभी तरंग की तरह पकड़ाते छूटते रहे।एक गहरी शांति और कम्प गूँज से घिर गया हूँ।चाहकर भी लिखना असंभव बना रहा।एक तरफ निश्चितता की शक्ति बिखर रही है दूसरी ओर अनिश्चितता की चेतन तरंगें एक दूसरे से टकराकर विलीन हो जा रही है।एक तरफ आपका ब्रह्मांडीय चिंतन और मानव जाति के भविष्य को लेकर व्यापक चिंता दूसरी ओर पूँजीवाद के द्वारा नियति की ओर बढ़ती विनाशलीला।
ऐसा क्यों लगता है कि विज्ञान की विराटता और उदात्तता की कोख से टेक्नालॉजी और पूँजी की क्षुद्रता का जन्म होना कितना अनिश्चित भविष्य की दिशा बना रहा है।मानव जाति आपसे कुछ भी सीखने को तैयार नहीं।क्रिएटर पर कन्ज्यूमर राज कर रहा है।
विज्ञान के विराट व संशयग्रस्त दिक् काल के सम्मुख दर्शन कितना बौना है और साहित्य हृदयहीन क्षुद्रता की डोर पकड़ने को बेचैन है।तब विज्ञान और साहित्य में समय की धारणा कैसी है-इस आइडिया को कल्पित करना मानव जाति के लिए पहले से ज्यादा दिलचस्प प्रश्न हो गया है।
–विज्ञान,दर्शन,धर्म और साहित्य शुरू से समय की अपनी युगीन व्याख्या में व्यस्त रहे हैं।समय की व्याख्या की यूनान और भारत की तो शानदार परंपरा है।
-विज्ञान समय का मस्तिष्क है तो दर्शन उसकी आँख और साहित्य उसका चित्त।बिना आँख के मस्तिष्क भटक सकता है और बिना हृदय के मानव विरोधी हो सकता है।समय का हाल इन दिनों ज्यादा बीमार है।उसकी आँख बंद है और हृदय सूख रहा है।इसलिए पृथ्वी का कम्पार्टमेंट जल्द खाली करने की चेतावनी आपकी ओर से भी है।
-समय की गणना एक कल्पित धारणा है।जैसे आजकल राष्ट्रवाद की धारणा।पृथ्वी पर ही अनेक हिस्सों में वैज्ञानिक समय में अंतर है।लंदन,पाकिस्तान और बांग्लादेश में ही काल की भिन्नता है। हर कल्पित अक्षांश देशान्तर में समय भिन्न है।यह भी सौर सापेक्ष है।पृथ्वी से अलग हटते ही पूरे ब्रह्माण्ड में समय पूर्ण कल्पित हो जाता है।
-जहां से विज्ञान का समय कल्पित होना शुरू होता है वहीँ से दर्शन और मिथक का जन्म होता है।साहित्य विज्ञान से ज्यादा दर्शन और मिथक का भोक्ता है इसलिए वहां इन दोनों का कल्पित समय अपने रचनात्मक रूप में गतिशील होता है।
-यह सच है कि विज्ञान की ऊंचाई के साथ पीसा मीनार और क़ुतुब मीनार की ऊंचाई वाला दर्शन बीसवीं इक्कीसवीं सदी में निरीह पिलपिला और बौना होता चला गया है।विज्ञान का क्या है के सामने दर्शन का क्यों है मरणासन्न है।इसीलिए विज्ञान भी पूरी मानवता के साथ ब्लैक होल के मुहाने पर पहुँच चूका है।
-आपका सारा चिंतन समय और ब्रह्मांड के रिश्तों की खोज पर है जिसके दो छोर हैं: महाविस्फोट से कृष्ण विवर की यात्रा।लेकिन इस बीच की चिंतन और खोज यात्रा में आप बार बार भाग कर दर्शन और साहित्य की शरण में क्यों आते हैं?यहां तक की कविता को आपकी आत्मा क्यों खोजती है।इसलिए कि आपके लिए मानवीय अस्तित्व और समान सुख वाली मानवता की हिफाजत जरूरी है।
-क्या यही कारण नहीं है कि वैज्ञानिक आपको वैज्ञानिक नहीं मानते,दर्शन के विद्यार्थी आपको दार्शनिक नहीं मानते और साहित्यकार आपको गल्पकार नहीं।शायद इसीलिए आप दो सदियों के लोकप्रिय वैज्ञानिक हैं,दार्शनिक हैं और लेखक भी।समय का तकाजा है कि समय पर नई बहस शुरू हो।
-विज्ञान के लिए समय का प्रश्न जहां सृष्टि की रचना,जीवन और विनाश का प्रश्न है वहीं साहित्य के लिए समय का प्रश्न मानवीय नैतिकता और मूल्य का भी प्रश्न है।
-आधुनिक विज्ञान के जन्म ने अपने उपउत्पाद प्रौद्योगिकी के माध्यम से समय की परिभाषा को स्थूल से सूक्ष्म(वर्ष,महीना,रात दिन,घण्टा,मिनट,सेकेण्ड,क्वार्क,क्वांटा) और धीमी गति से तीव्र गति की दिशा दी है वहीं साहित्य के भीतर समय ज्यादा कल्पनाहीन,अनुदात्त,क्षुद्र,मिथकमुक्त,और बूढा होता गया है।साहित्य के समय को विज्ञान ने असमय इतना बूढा और बीमार कर दिया है कि शिशुता गायब हो गई है।अब हर बच्चा पा पैदा हो रहा है।
-न्यूटन के बल सिद्धान्त ने जहां औपनिवेशिक आधुनिकता के समय की आधारशिला रखी जहां सब कुछ केंद्रीकृत, दिशायुक्त,सार्वभौमिक और अंतिम सत्य की तरह था।गैलेलियो और न्यूटन के समय के इस निश्चिततावादी सिद्धान्त ने जहां यूरोप को जहालत और गुरबत से मुक्ति दी वहीँ यह मुक्ति शेष दुनिया के शोषण और तबाही पर आधारित थी।यूरोपीय जहाज पर लगे फ्रांसीसी शब्द क्लॉक ने ऐसा कमाल किया कि
पूरी पृथ्वी आजतक साम्राज्यवादी पूंजीवाद के जबड़े में सिसक रही है।
-आधुनिकता के निश्चयवादी सिद्धान्त ने साहित्य की महाकाव्यात्मक और मिथिकीय कल्पनशीलता को स्थगित कर दिया जहां समय के तीनों काल अपनी कल्पित विराटता के साथ मौजूद होते थे।वे साहित्य के रूप अंतर्वस्तु और विचारधारा को उसकी विराटता और उदात्तता के लिए प्रेरित प्रभावित करते थे।
-आधुनिक विज्ञान से उपजी धारणा ने साहित्य में मिथक की धारणा को स्थगित करते हुए इतिहास बोध का आरम्भ किया।जहां मिथक में समय की धारणा व्यापक होती है वहीँ इतिहास में अपेक्षाकृत न्यून कल्पनाशील और संक्षिप्त। यथार्थवाद ने साहित्य के समय और उसकी मानवीय सम्भावना का बड़ा नुकसान किया जहां सब कुछ आँखन देखी हो गया।
-विज्ञान से उपजी समय की नई धारणा ने एक ओर मिथक साहित्य,लीजेंड,परिकथा लोक साहित्य को स्थगित किया वहीँ नव कपोल कल्पना पर आधारित विज्ञान गल्प और क्षुद्रता केंद्रित डिटेक्टिव ऐयारी साहित्य को जन्म दिया जहां समय के क्षण का ख्याल रखा जाता है।1895 की टाइम मशीन से आजतक साहित्य और हॉलीवुड की अधिकांश फिल्में इसके मजेदार उदाहरण है।
-साहित्य और दर्शन हमेशा से स्थूल और भौतिक समय से चेतनगत संघर्ष करते रहते हैं।साहित्य और दर्शन विज्ञान के विरुद्ध द्वन्द्वात्मक जंग है जहां हर फिजिकल को मेटाफिजिकल में तब्दील करने की क्रांतिकारी प्रक्रिया है।
-जो विज्ञान के ब्रह्माण्ड में है वह साहित्य और दर्शन के पिंड में है।जोई पिंडे सोई ब्रह्मांडे।साहित्य का अपना चन्दा अपना सूरज अपने ग्रह अपने नक्षत्र।अपनी घड़ी और अपनी सुई।अगस्टीन ने किताब रीडिंग से नगर और सूरज के समय को निर्धारित किया था।कवि के लिए मुर्गे की बांग में क्वार्क क्लॉक
होता है।लेखक चिंतक जल प्रकाश रेत बसंत पतझड़ और ब्रह्मा की नींद में समय खोजते हुए अपने अवचेतन को कल्पना
और स्वप्न के लायक बनाते रहते हैं।
-आधुनिक विज्ञान से पहले हिंदी का सिद्ध नाथ साहित्य,संत साहित्य,सूफी साहित्य,मिथकीय और लोक साहित्य समय की
विराट सम्भावना का उपयोग करता रहा है।शायद टाइम स्पेस
की धारणा ही है जो इस साहित्य को कालजयी कहने पर हम
मजबूर होते हैं।
-विज्ञान के निश्चिततावाद को चुनौती समाजवाद में विश्वास करने वाले वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने समय की सपेक्षतामूलक धारणा से दी।यह सच है कि हाइजनवर्ग ने इसकी बुनियाद बीसवीं सदी के तीसरे दशक में रख दी थी।अब संसार के लिए
बल की सत्ता ही महत्वपूर्ण नहीं रह गई।जहां ब्रह्माण्ड को
चुनौती दिक् काल के तीन आयाम से आइंस्टाइन दे रहे थे वहीँ यूरोपीय साम्राज्य को लोकतंत्र से धक्का मिल रहा था।अब निश्चित कुछ भी नहीं था।यदि किसी कण को प्रकाश की गति से दौरा दिया जाए तो वह द्रव्यमान ऊर्जा में बदल जाएगा।गुरुत्वाकर्षण बल ऊर्जा पर नहीं मास पर काम करता है।अब यह ब्रह्माण्ड स्वतन्त्र है,कण भी है और तरंग भी है,एक कण से की ऊर्जा से पैदा हुआ है और फिर एक कण में बदल जाएगा।बुद्ध की शून्यता का दर्शन हजारों साल से पुकार रहा है।
-उत्तर आधुनिकता अनिश्चितता का दर्शन है।पूँजीवाद कह रहा है वही आखिरी विकल्प है।दर्शन का अंत इतिहास का अंत महाख्यान का अंत लेखक की मृत्यु ज्ञान का अंत मनुष्य की मृत्यु।आप कह रहे हैं माव जाति अपनी प्रतिरोधी क्षमता और पृथ्वी का पर्यावरण खोती जा रही है।यदि मानव जाति कुछ सौ सालों में दूसरे ग्रह पर विस्थापित नहीं होती है तब उसका अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
-आपके समय की धारणा पूंजीवाद के विरुद्ध है और यह एक साथ आशा और निराशा के साहित्य और दर्शन को जन्म दे सकती है।
-हमारे विश्वविद्यालयों बौद्धिकों लेखकों के लिए चुनौती है कि
वे अपने विषय के पुनर्जन्म के साथ मानवता के हित में समय की नई व्याख्या का आरम्भ करें।
-दर्शन को अपनी आँख खोलनी होगी।यह पश्चिम से नहीं एशिया और भारत से सम्भव है।क्रूरता को करुणा से और तानाशाह विज्ञान को बुद्ध के दर्शन से चुनौती देनी होगी।एक बार फिर शून्यता और प्रतीत्य समुत्पवाद को विराट बनाना होगा।नालन्दा का प्रेत भटक रहा है।चबूतरा चबूतरा।सड़क गली।
-साहित्य में एक नए मानवतावादी यूटोपिया का सृजन।एक विराट बहस का निर्माण।यथार्थवाद की जगह उत्तर यथार्थवाद।स्थूल की जगह जादुई यथार्थवाद।नई फैंटेसी।नया स्वप्न।नई कल्पनाशीलता।मार्क्वेज़ के उपन्यास एकांत के सौ वर्ष से सीखें समय की नई धारणा।दुनिया को फिर से रचने की धारणा।
स्टीफन सर हम आभारी हैं।मालवीय चबूतरा कण भी है और तरंग भी।चबूतरा ऐसा सिंगल कण है जो सभ्यता के ब्लैक
होल वाले मुहाने पर आकर नई सभ्यता के बिग बैंग की कल्पना कर रहा है।आप टाइम ट्रैवलर हैं तो चबूतरा टाइम मशीन है।दृश्य भी अदृश्य भी।हम प्रकाश की गति से चलकर ही ऊर्जा में बदल सकते हैं और आपसे मिलन भी हो सकता है।
आपका
रामा
12 अप्रैल, 2018
मालवीय चबूतरा विचारों की टाइम मशीन है :रामाज्ञा शशिधर
साहित्य लेखन , अध्यापन, पत्रकारिता और एक्टिविज्म में सक्रिय. शिक्षा-एम्.फिल. जामिया मिल्लिया इस्लामिया तथा पी.एचडी.,जे.एन.यू.से.
समयांतर(मासिक दिल्ली) के प्रथम अंक से ७ साल तक संपादन सहयोग.इप्टा के लिए गीत लेखन.बिहार और दिल्ली जलेस में १५ साल सक्रिय .अभी किसी लेखक सगठन में नहीं.किसान आन्दोलन और हिंदी साहित्य पर विशेष अनुसन्धान.पुस्तकालय अभियान, साक्षरता अभियान और कापरेटिव किसान आन्दोलन के मंचों पर सक्रिय. . प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए कार्य. हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं हंस,कथादेश,नया ज्ञानोदय,वागर्थ,समयांतर,साक्षात्कार,आजकल,युद्धरत आम आदमी,हिंदुस्तान,राष्ट्रीय सहारा,हम दलित,प्रस्थान,पक्षधर,अभिनव कदम,बया आदि में रचनाएँ प्रकाशित.
किताबें प्रकाशित -1.बुरे समय में नींद 2.किसान आंदोलन की साहित्यिक ज़मीन 3.विशाल ब्लेड पर सोयी हुई लड़की 4.आंसू के अंगारे 5. संस्कृति का क्रन्तिकारी पहलू 6.बाढ़ और कविता 7.कबीर से उत्तर कबीर
फ़िलहाल बनारस के बुनकरों का अध्ययन.प्रतिबिम्ब और तानाबाना दो साहित्यिक मंचों का संचालन.
सम्प्रति: बीएचयू, हिंदी विभाग में वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर के पद पर अध्यापन.
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