🎤ओपन माइक🎤
📣किसान क्यों सड़कों पर आते हैं?📣
🌜रामाज्ञा शशिधर🌛
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🎤किसान की किसानी को सिस्टम ने घाटे का पेशा इसलिए बनाया है कि वे खेती छोड़ दे।
🎤कारपोरेट पूँजी क्रोनी और बिचौलिया पूँजी है जो बिना श्रम के दिन रात मोटी होना चाहती है।
🎤किसान की पूरी खेती यानी बीज,खाद,पेस्टिसाइड,बिजली,डीजल,मशीन सब कुछ कारपोरेट के हाथों सरकार
ने सौंप दिया है।इनकी कीमत हर साल मनमानी बढ़ती है और उत्पाद की कीमत में लगभग ठहराव है।
🎤किसान का 11 पैसे का आलू 20 रूपये के चिप्स में,3 रुपए का टमाटर 150 रुपए के साउस में,2 रुपए का मक्का 100 रुपए के पॉपकार्न में और 20 रुपए का मक्का 400 रुपए के कोर्नफ्लेक में बिकता है।बीच का माल बिचौलिया कारपोरेट खा जाता है।
🎤प्राइवेट सूदखोर महाजन और बैंक किसान को कर्ज देते हैं जो फाँसी का फंदा या सल्फास की टिकिया तक पहुंचा देते हैं।
🎤अबतक साढ़े तीन लाख किसानों ने सिस्टम की क्रूरता के कारण आत्महत्याएं की हैं।
🎤हाइब्रिड टमाटर की तरह हाइब्रिड राजनीति हो गई है।दोनों बेस्वादू बेरस और बर्गर फ्रेंडली आइटम हैं।
🎤स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट तुरंत लागू कर
किसान समुदाय को राहत दी जा सकती है।
🎤अमेरिका जैसा कारपोरेट संचालक देश अपने कुल 6 फीसदी किसान को 60 फीसदी सब्सिडिज् देता है और भारत जैसा कृषिप्रधान देश अपने 60 फीसदी किसानों को 6 फीसदी सब्सिडिज् देने में उदासीन है।
🎤पूंजीपति एनपीए घोटाला और लोन सब्सिडिज् से देश विदेश में मौज उड़ाते हैं और किसान हजार लाख रुपए कर्ज के कारण जेल आत्महत्या का शिकार होते हैं,यह सिस्टम का जनविरोधी चरित्र और कारपोरेट फ्रेंडशिप का साइन है।
🎤किसान के सामने आत्महत्या, खेती से विस्थापन या आंदोलन ही मुक्ति के मार्ग हैं।
🎤किसान को जाति धर्म से उठकर वर्ग संघर्ष करना होगा और दूध सब्जी अन्न की तरह अपना नेता पैदा करना होगा।
🎤समय आ गया है कि देश में किसान स्वराज्य के लिए गांधियन मार्क्सवाद की अवधारणा रखी जाए।
03 अक्टूबर, 2018
किसान आंदोलन की जरूरत क्यों है:रामाज्ञा शशिधर
बीएचयू में महात्मा गांधी
🎤ओपन माइक🎤
📗बीएचयू में गांधीजी📗
✒प्रस्तुति:रामाज्ञा शशिधर✒
🎃चित्र को गौर से देखिए।
- यह महामना के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का गांधी चबूतरा है।
-गांधी जी तेरह बार काशी आए। 1916 और 1942 में बीएचयू में भाषण दिए।
-पहले ऐतिहासिक भाषण में बीएचयू शिलान्यास सभा से स्वर आया-गांधी बैठ जाओ।
-क्या आप गांधी की 150 वीं वर्षगाँठ और 70वीं गोड्से गांठ पर जानना चाहते हैं कि भारत के वायसराय और राजे रजवाड़ों के सम्मुख मोहनदास करमचंद गांधी ने छात्रों को क्या कहा था?
गांधी जी का एक एक हर्फ़ आज बीएचयू,बनारस और भारत की पीर कथा कहता है!
यह भाषण 6 फ़रवरी 1916 को हुआ।तीन दिनों की संगोष्ठी के अंतिम दिन गांधी ने दरभंगा महाराज की अध्यक्षता और एनीबेसेंट के सानिध्य में यह वक्तव्य दिया था।गांधी जी को मालवीय जी ने स्नेहपूर्वक बुलाया था।
दरअसल गांधी के संबोधन से वायसराय के चम्मच राजे रजवाड़े भड़क उठे और अपनी आलोचना न सहने के कारण अध्यक्ष ही भाग खड़े हुए।
गांधी जी ने एक जगह लिखा कि वक्ता और श्रोता को भागते देखा गया लेकिन पहली बार अध्यक्ष को गोष्ठी छोड़कर भागते देखा।ऐसे खरे थे लँगोटधारी गांधी।
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🎤यह न सोचें कि हमारा विश्वविद्यालय एक तैयार उत्पाद बन चुका है..और हम एक महान साम्राज्य के अच्छे नागरिक बनकर निकल चुके हैं।आप केवल जबान से यह संदेश कभी न दे सकेंगे कि भारत एक दिन विश्व का उद्धारक बनेगा।
🎤हमारी मुक्ति किसान के जरिए ही आ सकती है।न तो वकील,न डॉक्टर और न ही धनाढ्य भूस्वामी उसे सुनिश्चित कर सकते हैं।
🎤हम सबने आशंका के क्षण बिताए हैं।जब वायसराय बनारस की सड़कों से गुजर रहे थे,जगह जगह जासूस लगा दिए गए थे।हम सभी में भय व्याप्त था।क्या यह लार्ड हार्डिंग के लिए भी बेहतर नहीं होता कि वे मौत के साए में जीते रहने के बजाए मर जाते?
🎤एक अत्यंत भड़कीला शो,आभूषणों का ऐसा प्रदर्शन,जिससे पेरिस से आए बड़े आभूषण निर्माताओं की भी आँखें चौंधिया गईं।मैं इन सजे धजे भद्र लोगों की तुलना देश के गरीब लोगों से करता हूँ।भारत की मुक्ति तबतक नहीं हो सकती जबतक आपलोग इस बहुमूल्य आभूषणों को उतारकर गरीब देशवासियों के लिए एक ट्रस्ट में रख नहीं देते।
🎤कितने भी भाषण हमें स्वशासन के काबिल नहीं बनाएँगे।केवल हमारा आचरण हमें उसके काबिल बनाएगा।
🎤हमारे लिए बड़े अपमान और शर्म की बात है कि महान कालेज के साए में और पवित्र शहर में मुझे देशवासियों को ऐसी भाषा में संबोधित करना पड़ रहा है जो विदेशी है।
🎤एक हिन्दू के रूप में बड़ी भावुकता से कह रहा हूँ कि हमारे पवित्र मंदिर की गलियां क्या वैसी गंदी हों जैसी वे हैं।
🎤अपने देश के प्रति उसके प्यार के लिए अराजकतावादी का मैं सम्मान करता हूँ।अपने देश के लिए उसके मर मिटने की भावना के लिए मैं उसका सम्मान करता हूँ।
🎤आज भारत स्वतंत्र होता,हमारे पास ऐसे शिक्षित व्यक्ति होते जो अपने ही देश में विदेशी जैसे न लगते बल्कि देश के हृदय से उनका संवाद होता,वे गरीब से गरीब लोगों के बीच काम कर रहे होते।
🎤कभी कभी स्वयं पर दोष ले लेना अच्छा है।