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18 मार्च, 2022

राष्ट्रकवि के गांव में रंगमंच के कलागुरु ज्ञानदेव

*रामाज्ञा शशिधर

💐ग्रामीण कलाकार को श्रद्धांजलि💐
{ज्ञानदेव नहीं,कलादेव कहिए!}
~~~~~~~~~~~~~~~~~
वे अपनी काया और माया में ठेठ व देशज कलाकार थे।वे पारसी और ग्रामीण रंगमंच के मंजे हुए अदाकार थे।वे आजीवन श्रमिक,किसान,गरीब,पिता,ग्रामीण,आम आदमी आदि की करुण भूमिका में मंच से सामाजिक व मानवीय करुणा पैदा करते रहे।
     मैंने उनके बेबस किरदार की दर्दीली आवाज़ पर सैकड़ों सिमरिया वासियों को रोते देखा है।मैं अक्सर उनकी किरदारी पर भावुक हो उठता था।
    जब मैं सिमरिया या बेगूसराय में था,जब दिल्ली प्रवास में रहा और जब बनारस में हूँ,जिन कुछ ग्रामीणों से मेरी दिली डोर डायरेक्ट जुड़ी रही उनमें ज्ञानदेव शर्मा अव्वल रहे।
    अक्सर गांव जाने पर भगवती स्थान या प्रकाश की चाय अड़ी पर उनसे घण्टों संवाद होता था।विषय चाय की राजनीति के उलट-सिर्फ नाटक,कला,सिमरिया का कला इतिहास,बॉलीवुड के स्वप्न।
   वे दिनकर पुस्तकालय के आरंभिक सीरियस पाठक थे।1990 के दौर में मुझसे वे पॉपुलर नावेल पर चर्चा करते तथा पुस्तकालय से लेकर पढ़ते।
   उनके अत्यंत प्रिय नाट्यकर्मी मित्र श्रीनिवास सिंह रहे।दोनों दिली रहे,नाटक में,कारखानों की नौकरी में,ज़िंदगी में।
      वे नुक्कड़ नाटक की सड़क से चलकर फिल्मकार प्रकाश झा की सोहबत तक पहुंचे थे।उन्हें कसक रही कि उनकी गरीबी ने उनकी फिल्मी यात्रा को कांटों से घेर दिया।
   सिमरिया को विभूति पैदा करने आता,सहेजने नहीं आता है।दिनकर पुस्तकालय में  अलग से सिमरिया कला साहित्य रत्न सेक्शन होना चाहिए।जो समाज अपने रत्नों के दस्तावेज को जीवित बनाकर रखता,वही जीवित समाज होता है।

     बनारस में लोग आज मसानी होली खेलते हैं।ज़िंदगी के परमसत्य का उत्सव मनाते हैं।'मसाने में खेले होली दिगम्बर!'सिमरिया कलास्थान भी है और महामसान भी।
ज्ञानदेव शर्मा जीवन भर कलास्थान के कलाकार रहे,अब महामसान के महामसानी हो गए हैं।शवमय नहीं,शिवमय!!ज्ञानदेव नहीं,कलादेव!!
    सिर्फ चोला बदल गया है।वे राग,आग और राख में हमेशा बने रहेंगे।
मिट्टी के छंद से मिट्टी का सम्मान है--
💐
जब कलाकार मर गया, चांद रोने आया,
चांदनी मचलने लगी, कफन बन जाने को।
मलयानिल ने शव को कंधों पर उठा लिया,
वन ने भेजे चंदन श्री-खंड जलाने को।

सूरज बोला, वह बड़ा रोशनीवाला था
मैं भी ना जिसे भर सका कभी उजियाली से,
रंग दिया आदमी के भीतर की दुनिया को, 
कलाकार ने निज नाटक की लाली से।
     
                   

1 टिप्पणी:

Priyavrat kumar ने कहा…

मैं अमर हूं।
राग ,आग,और तुम्हारी याद में।
उस माटी में,
जहां जीवन और मृत्यु एक साथ अटखेलिया करती है,
गंगा की पावन धार में ,
आज भी मैं वहीं हूं।
मैं अमर हूं।