√रामाज्ञा शशिधर
बात काशी की है!अस्सी घाट की है।घाट दर घाट की है।
बात शास्त्र की नहीं,लोक की है।शास्त्रार्थ की नहीं,लोकार्थ की है।वाक की नहीं,जर्नी की है।सेल्फी की नहीं, सेल्फ की है।सीढ़ी की नहीं,साधना की है।गोबर पुजैया की नहीं,ज्ञान उपासना की है।
बात दर्शन अखाड़े की है।ज्ञान पंचायत की है।लोक विद्या आंदोलन की है यानी बात सतह, धूल और गाद के नीचे छुपे हुए मानव के श्रम रस की है, बनारस के ज्ञान रस की है।
बात अपनी है और उनकी है।बात जितनी पुरानी है उससे ज्यादा नई है।जितनी नई है उससे भी आगे चली गई है।बात वाद की है,विवाद की है तथा सबसे ज्यादा संवाद की है।
तो कुछ देर के लिए प्रिंटेड पोथी से मुंह मोड़िए।जैसे आधुनिकता से पूर्व और उत्तर दोनों वक्तों ने उसे अंगूठे पर रखा है,आप भी कुछ देर तर्जनी पर रखिए।लोक में घरिए।डिजीलोक में उतरिए।
लोक लोग से होता है।लोग जीवित ध्वनि और दृश्य से बनते हैं।तरंगों पर सवार ध्वनियों के संकेतक और दृश्यों के चलचित्र ही लोक के आधार थे,हैं और रहेंगे।वाचिक लोक से उत्तर वाचिक डिजिलोक तक।बीच में प्रिंट का पमपुआ घाट आया था,अब उसका सत्य हरिश्चंद हो गया है।लोक से उत्तर लोक तक सब वाचिक ही वाचिक है।मनु से आंबेडकर तक प्रिंट के मकड़जाल हैं।
लोक विद्या आंदोलन ढाई दशक से बुद्ध की जमीन से चल रहा है।वहां पोथी की हैसियत न्यून है;प्रिंट रुतबा हाशिए पर है; शासकीय ज्ञान के केंद्र का नाभिक लिजलिजा है;लाइब्रेरी,अनुसंधान, उपदेश,डिग्री और लिखा पढ़ी के तर्क लोक पर हुकूमत के सनातन पाखंड माने जाते हैं।
लोक विद्या आंदोलन में ज्ञान का सारांश लोकज्ञान है।लोकज्ञान ही मूल,तर्कशील और अनुभवजन्य ज्ञान है।वही समाज की गति का आधार है।
लोकज्ञान के ज्ञाता किसान हैं,शिल्पी हैं,कारीगर हैं,स्त्रियां हैं,आदिवासी हैं,लघु रोजगारी हैं।वे सब लोकज्ञान के तर्कशील वैज्ञानिक हैं,दार्शनिक हैं,रूपांतरकारी सामाजिक हैं,कलाविद हैं,शिल्प शिक्षक हैं।
लोकज्ञानी जानते हैं कि घाट उत्तर आधुनिक घुड़दौड़ के मैदान नहीं,सदा से स्थिर साधना के शांति स्थल रहे हैं।लोकज्ञानी जानते हैं कि शांति के घाट अब शोर के घाट हो रहे हैं;भाव के घाट अब दांव के घाट हो रहे हैं;विचार के घाट अब प्रचार प्रसार के घाट हो रहे हैं;मोक्ष घाट अब बाजार के गलघोंट घाट हो रहे हैं।
लोकविद्या आंदोलन का लोक संवाद बनारस के घाटों पर बनारसी साड़ी की तरह फैल रहा है।अस्सी घाट पर ज्ञान पंचायत चल रही है।राजघाट पर दर्शन अखाड़े की आजमाइश है।बीच के घाटों पर कबीर के अनहद ज्ञान हैं,रैदास के बेगमी गान हैं, कीनाराम के अघोर तान हैं।हर ओर ज्ञान और तर्क की तरल लहरी है।
1 मई को अस्सी घाट की ज्ञान पंचायत इसकी गवाह है।नगर भर से लोकविद्यामार्गी की जमघट लगी।ओझल गंगा और अपहरित असि के संगम पर।दिवस था मजूर का।याद थी भदैनी वाले नामवर सिंह की।एक प्रिंट का इलाज होना था-दूसरी परंपरा की खोज।
सुनिए!ज्ञान पंचायत में इस अघोर का अछोर क्या है!