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31 दिसंबर, 2024

अस्सी ने पूछा कि काशीनाथ और ज्ञानेंद्रपति एक ही दिन क्यों पैदा हुए!


@रामाज्ञा शशिधर की कलम से
【बनारस में काशीनाथ और ज्ञानेन्द्रपति का जन्मदिन】
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दोस्तो!
 यह अनोखा संयोग है कि काशीनाथ और ज्ञानेन्द्रपति दोनों बनारसी तरावट के लेखक हैं और दोनों का  जन्मदिन नववर्ष के दिन ही है।यानी दोनों का जन्मदिन
'गरीबों का गोआ' बन चुके बनारसी घाटों की भीड़ की भेंट है।
        आज बनारस का गली कूचा सब सड़क पर है,घाट पर है,बोट पर है,रेत पर है।नगर के घर खाली और गंगा घाट छाली ताली।
       मैं घुमक्कड़ी और फक्कड़ी करता हुआ अस्सी पर हूँ।बाएं में दायां ऐसा घुसा है कि नगर का चक्का जाम।भीड़ से घबड़ाकर पोई की अड़ी पहुंचा।पोई की तनी छाती और फैली बांहें अड़ी के खोहनुमा दरबे के काफी भीतर दबी दबी सी हैं।काशीनाथ के सुपात्र और अड़ीवीर प्रो गया सिंह गायब हैं।पता चला इनदिनों में अर्धरात्रि में अपने मांद से हवाखोरी के लिए निकलते हैं जिन्हें सिर्फ पागल,नशेड़ी और बाबा ही देख पाते।
     चौराहे के जाम के धुएं से पीपल हांफ रहे हैं।
       पप्पू की अड़ी पर भी रंग तरंग का सांध्य मजमा है।घिसे पिटे गदरची और ढिंढोरची से मुक्त।
     नींबू की चाय की चुस्की लेते ही,अपने पुराने छात्र जो अब टीवी पत्रकार हैं,पर नजर पड़ी।हालचाल हुआ।
    तभी उधर से एक मद्धिम आवाज़ आई-आज 'काशी का अस्सी' के लेखक काशीनाथ का जन्मदिन है।चूरा मटर पोई के यहां होता था।
      दूसरी आवाज़ ने पहली को काटा-यह वर्षों पहले होता था जब काशीनाथ अस्सी के नागरिक थे।वे अब विदेश में रहते हैं बेटे के साथ।
          बहस शुरू हुई जिसका सारांश है कि 1ली जनवरी को जन्मदिन का चलन बहुत पहले से है।जिसके जन्मदिन का पता नहीं रहता वह 1ली जनवरी में ईस्वी
लगाकर रखवा लेता है।अधिकारी बर्थ सर्टिफिकेट,आधार कार्ड,वोटर कार्ड और प्रिंसिपल स्कूल में पहली तिथि आंख मूंदकर डालता है।यह माँ बाप और समाज के लिए सहूलियत भरा दिन है।देश की एक तिहाई आबादी फाइलों में पहली जनवरी को ही पैदा होती है। काशीनाथ के साथ हुए हादसे का पता बाबू गया सिंह को लग गया हो इसलिए पोस्टपोन कर दिया।
           मुझे राहत हुई कि ज्ञानेन्द्रपति ने अस्सी पर किसी को भले ही जन्मदिन नहीं बताया और सेलिब्रेट नहीं किया वरना ये संसदिए हमारे गंभीर और सत्याग्रही कवि पर जब धुआंधार शब्द फुहार फेंकते तो उनकी तरोताज़ा कल्पना वेबजह सीलन फील करती।
             दोनों लेखक मेरे अज़ीज हैं।दोनों के कारण बनारस में मुझे अपने होने का कारण दिखता है।
       दोनों को नगर ने अपनी तरह से ढाला है और दोनों ने नगर को अपनी तरह से रचा है।दोनों बनारस में चाहे जहां रहते हों जनगणमन  ने दोनों के लिविंग पॉइंट्स फिक्स कर दिए हैं।
       काशीनाथ डेढ़ दशक पूर्व अस्सी भदैनी से मंडुआडीह की ओर चले गए लेकिन वे आज भी पाठकों के लिए अस्सी की अड़ी पर हैं।
     ज्ञानेन्द्रपति अब कम ही केंट रेलवे  के 9 नम्बर प्लेटफॉर्म पुल पर खड़े रहते हैं लेकिन पाठक उन्हें पुल पर किसी का इंतज़ार करनेवाला लेखक ही महसूसते हैं।
      दोनों के सपने थे-नगर कबीर की मौज में चले।दोनों में कोई नहीं चाहता था कि नगर फौज में चले।
         हर हर मोदी ,घर घर मोदी और हर हर बुलडोजर,घर घर बुलडोजर के विकास अभियान में दोनों लेखक अदृश्य होते गए।बनारस की पुरानी गलियों और  डोंगियों की तरह।
        मैं दोनों फक्कड़ लेखकों के द्वारा उड़ाई गई भाषा की धूल में अपनी यादों और सपनों के निशान खोज रहा हूँ।
      दोनों मुझमें शामिल हो गए हैं और मैं दोनों की रूहों का पांव पैदल नगर होना चाहता हूँ।
        कितना इत्तिफाक है कि मेरे दोनों अज़ीज लेखक का जन्मदिन जिन कारणों से 1ली जनवरी है,उन्हीं कारणों का शिकार मेरा बर्थ डेट 2री जनवरी है।
    मतलब वे दोनों एक को जन्म लेकर एक नम्बरी हैं और मैं 2 को जन्म लेकर दो नम्बरी।
    यह मैं नहीं कहता हूँ,अस्सी के हाइपर बोलिक ढिंढोरची कहते हैं।
         नगर में किसको पता है कि काशीनाथ बीमार हुए तो ठीक भी हुए ।परिजन की बहार और दोस्त चौथीराम यादव जी के प्यार के मरहम से।
   ज्ञानेन्द्रपति के पास न कोई परिवार है और न कोई चौथीराम यादव।ज्ञानेंद्रपति के लिए यह नगर ही चौथीराम यादव है।वे इस्पाती मनुष्य हैं।सौ साल लोहा रहें।
           दोनों को जन्मदिन की अशेष शुभकानाएं!

16 सितंबर, 2024

भाषा की संकेत श्रृंखला की रचनात्मक अभव्यक्ति है साहित्य : चबूतरा शिक्षक

मालवीय चबूतरा रपट, रविवार, 15 सितम्बर,2024
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बीएचयू परिसर में 'मालवीय चबूतरा ज्ञान संवाद' आज भी प्राचीन गुरुकुल ज्ञान परंपरा को बचाए हुए है। यह चबूतरा संवाद प्रत्येक रविवार को सुबह 8-10 के बीच संपन्न होता है, जिसमेें परिसर के  छात्र - छात्राएं एवं शोधार्थी सम्मिलित होते हैं और पूर्व निर्धारित विषय पर अपने विचार रखते हैं । इसके संस्थापक डॉ रामाज्ञा शशिधर हैं जिन्होंने वाद विवाद संवाद की नालंदा  ज्ञान परंपरा  को बचाए रखने के लिए इसकी शुुरुआत 2017 में की।चबूतरे का एक उद्देश्य यह है कि विद्यार्थी किताबी ज्ञान की सीमा से निकल व्यावहारिक‌ ज्ञान के महत्व को भी समझ सके। 
आज हिंदी सप्ताह के अंतर्गत  'भाषा और साहित्य' विषय पर चबूतरा छात्रों ने वाद विवाद संवाद के माध्यम से अपने विचार रखे। प्राचीन भारतीय भाषा चिंतक पाणिनी,पतंजलि,भर्तृहरि  से लेकर आधुनिक पश्चिमी भाषा चिंतक सस्यूर व नॉम चोमस्की  तक के भाषा सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डाला गया।भामह से लेकर  रामचन्द्र शुक्ल तक साहित्य की दी गयी परिभाषा पर भरपूर बहस हुई।

          विषय पर अपनी बात रखते हुए चबूतरा शिक्षक रामाज्ञा शशिधर ने कहा कि भाषा शब्दार्थ संबंध में नहीं बल्कि संकेतक संकेतित संबंध में विन्यस्त होती है।भाषा संकेत की ऐसी व्यवस्था है जो अर्थ ग्रहण, चिंतन और अभिव्यक्ति तीनों क्षेत्रों में कार्य करती है। भाषा मनुष्य की संज्ञानात्मक शक्ति का परिणाम है। संसार की समस्त भाषाओं के विन्यास लगभग एक जैसे होते हैं इसलिए संसार के सारे मनुष्यों की समता,स्वतंत्रता और एकता भाषा के माध्यम से संभव है।भाषा के शब्द सीखे जाते हैं जबकि उसका सार्वभौमिक और उत्पादन मूलक विन्यास मानवीय संज्ञान की बुनियादी विशेषता है।
भाषा का प्रथम रूप वाचिक है, लिखित उसका दोयम रूप है। वाचिकता को बचाए रखने की जरूरत है। भाषा का मरना समाज का मरना है। 
       चबूतरा गुरु रामाज्ञा शशिधर ने कहा कि साहित्य भाषा के रचनात्मक और सूक्ष्म रूपों का इस्तेमाल करता है। साहित्य शब्दार्थ का खेल है जो प्रथमतः और अंततः भाषा की संरचना पर निर्भर रहता है। साहित्य के बिना भाषा संभव है जबकि भाषा के बिना साहित्य असंभव है। साहित्य सिर्फ जनता की चित्तवृत्तियों का संचित प्रतिबिंब नहीं है बल्कि उसमें जनता और लेखक दोनों के संयुक्त चित्त का प्रतिबिंब होता है। साहित्य में प्रतिबिंब का अर्थ भाषिक चित्रण और ध्वन्यात्मक गूंज से है ना कि सिर्फ दर्पणमूलक चित्र से। रामचंद्र शुक्ल की यह परिभाषा अधूरी है। साहित्य को संस्कृत काव्यशास्त्र से लेकर अब तक शब्दार्थ के रूप में तरह-तरह से परिभाषित किया गया है जिसका मतलब यह होता है कि साहित्य का संपूर्ण अस्तित्व भाषा की उत्पादक और सार्वभौमिक संरचना पर निर्भर करता है। साथ ही साहित्य भाषा में राजनीतिक अवचेतन की तरह ही विन्यस्त होता है । साहित्य को पाठ के रूप में पढ़त के लिए प्राथमिक तौर पर भाषा और भाषा विज्ञान की सूक्ष्म समझ की प्राथमिक जरूरत है।


 चबूतरा सदस्य और सहायक प्रोफेसर डॉ अरमान आनंद ने अपनी बात रखते हुए कहा कि साहित्य तभी बचा रह सकता है जब उसमें नई बात कही जाए या पुरानी बात को  नए तरीके से कहा जाए। लिखित और वाचिक भाषा के साथ आंगिक भाषा भी मनुष्य के अर्थ को अभिव्यक्त करती है।

      चबूतरा छात्र अभिषेक ने भाषा को प्रतीकों और चिह्नों का समूह बताया।

     छात्रा आंचल ने भाषा में व्याकरण को महत्वपूर्ण बताया और साहित्य में विचार को।
छात्र नीतिश ने कहा कि भावात्मक भाषा ही साहित्य है।

    छात्रा नेहा ने कहा कि साहित्य मन का विचार है।

    छात्र रवि ने कहा कि भाषा वह है जिसमें हम अपने विचारों का दूसरों के साथ आदान प्रदान करते हैं । 

   छात्रा आयुशी ने कहा कि भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है। साहित्य का लक्ष्य मनुष्य का निर्माण करना है।

   छात्र अनमोल ने कहा कि भाषा और साहित्य एक दूसरे के पूरक हैं। साहित्य लोक कल्याणकारी है। 

     छात्र जितेन्द्र, इंदु , राशोमान, राहुल, मंगलेश और छात्रा शिवानी ने विषय पर अपने विचार रखे।
  चबूतरा विमर्श का संचालन छात्र हिमांशु ने किया।
★★★
प्रस्तुति - रूमा

30 मई, 2024

दिल्ली के प्रतिरोध में काशी का ऐलान!

दिल्ली के प्रतिरोध में काशी का ऐलान
तू मेट्रो की उड़नपरी मैं पैदल की शान

ढाय फुटी पैदल गली पांच फुटी है कार
दिल्ली तेरी नीतियां  काशी में बेकार

रिक्शा तांगा बाद में मोटर चले पछाँह
 काशी चाल सनातनी पैदल तानाशाह

साँढ़ सड़क पागुर करे हूटर करे सलाम
बाएं में दायां घुसे काशी चक्का जाम

भारतेंदु की गली में पिज़्ज़े का व्यापार
नई चाल में ढल रहा हिंदी का बाजार

चेला चइला बन खड़ा लेटा गुरुआ लाश
इक दूजे को जलाकर बांटे जगत सुवास

चल जिह्वा झट कूद जा बाटी चोखा भोज
मेगी बर्गर ब्रेड खा ऊब गया मन रोज

काशी पृथ्वी से अलग रुकी घड़ी का नाम
महाकाल की देह पर करे सदा विश्राम

धरती पर चूल्हा जले अंबर जले मसान
धुआं धुआं सब एक है काशी की पहचान

काशी आकर देखिए साँढ़ चरावे शेर
मुर्दा मुख गंगा बसे डमरू फलते पेड़
                                 

चलती चाकी देखकर  कबिरा मारे तान
चूना से कत्था मिले रंग बदल दे पान
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 सड़क के कवि रामाज्ञा शशिधर के दोहे