दिल्ली के प्रतिरोध में काशी का ऐलान
तू मेट्रो की उड़नपरी मैं पैदल की शान
ढाय फुटी पैदल गली पांच फुटी है कार
दिल्ली तेरी नीतियां काशी में बेकार
रिक्शा तांगा बाद में मोटर चले पछाँह
काशी चाल सनातनी पैदल तानाशाह
साँढ़ सड़क पागुर करे हूटर करे सलाम
बाएं में दायां घुसे काशी चक्का जाम
भारतेंदु की गली में पिज़्ज़े का व्यापार
नई चाल में ढल रहा हिंदी का बाजार
चेला चइला बन खड़ा लेटा गुरुआ लाश
इक दूजे को जलाकर बांटे जगत सुवास
चल जिह्वा झट कूद जा बाटी चोखा भोज
मेगी बर्गर ब्रेड खा ऊब गया मन रोज
काशी पृथ्वी से अलग रुकी घड़ी का नाम
महाकाल की देह पर करे सदा विश्राम
धरती पर चूल्हा जले अंबर जले मसान
धुआं धुआं सब एक है काशी की पहचान
काशी आकर देखिए साँढ़ चरावे शेर
मुर्दा मुख गंगा बसे डमरू फलते पेड़
चलती चाकी देखकर कबिरा मारे तान
चूना से कत्था मिले रंग बदल दे पान
---
30 मई, 2024
दिल्ली के प्रतिरोध में काशी का ऐलान!
साहित्य लेखन , अध्यापन, पत्रकारिता और एक्टिविज्म में सक्रिय. शिक्षा-एम्.फिल. जामिया मिल्लिया इस्लामिया तथा पी.एचडी.,जे.एन.यू.से.
समयांतर(मासिक दिल्ली) के प्रथम अंक से ७ साल तक संपादन सहयोग.इप्टा के लिए गीत लेखन.बिहार और दिल्ली जलेस में १५ साल सक्रिय .अभी किसी लेखक सगठन में नहीं.किसान आन्दोलन और हिंदी साहित्य पर विशेष अनुसन्धान.पुस्तकालय अभियान, साक्षरता अभियान और कापरेटिव किसान आन्दोलन के मंचों पर सक्रिय. . प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए कार्य. हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं हंस,कथादेश,नया ज्ञानोदय,वागर्थ,समयांतर,साक्षात्कार,आजकल,युद्धरत आम आदमी,हिंदुस्तान,राष्ट्रीय सहारा,हम दलित,प्रस्थान,पक्षधर,अभिनव कदम,बया आदि में रचनाएँ प्रकाशित.
किताबें प्रकाशित -1.बुरे समय में नींद 2.किसान आंदोलन की साहित्यिक ज़मीन 3.विशाल ब्लेड पर सोयी हुई लड़की 4.आंसू के अंगारे 5. संस्कृति का क्रन्तिकारी पहलू 6.बाढ़ और कविता 7.कबीर से उत्तर कबीर
फ़िलहाल बनारस के बुनकरों का अध्ययन.प्रतिबिम्ब और तानाबाना दो साहित्यिक मंचों का संचालन.
सम्प्रति: बीएचयू, हिंदी विभाग में वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर के पद पर अध्यापन.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
बहुत ही प्रासंगिक दोहे हैं। आपकी कथन कहन की भंगिमा निराली है।
बहुत खूब
एक टिप्पणी भेजें