गांव की डायरी
प्रेमचंद और भ्रष्टचंद
रामाज्ञा राय शशिधर
हल की मूठ पकड़े होरियों और फावड़े चलाते हल्कुओं को प्रेमचंद और भ्रष्टचंद में फर्क की गहरी समझ है। वे प्रेेमचंद पर हमले को आजादी पर हमला समझते है। यही कारण है कि प्रेमचंद के पात्र और पाठक निर्मला को अपमानित करने वाले सी¬.बी.एस. ई के अध्यक्ष का पुतला हजारों की भीड़ में जला सकते हैं और मृदुला मुर्दाबाद/निर्मला जिंदाबाद’ के नारे लगा कर आईना दिखा सकते है। प्रेमचंद के ग्रामीण पात्रांे और पाठकों ने भाजपा नेता मृदुला सिन्हा के गृहराज्य बिहार में 2,700 सेकेंड तक राष्ट्रीय राजमार्ग-31 का चक्कर लगाकर सी.बी. एस. ई अध्यक्ष के पुतले को नारों, जनगीतों, पर्चो, भाषणों तख्तियों के बीच फूंक दिया तथा गगन भेदी स्वर में दुहराते रहे कि ‘हमें प्रेमचंद चाहिए भ्रष्टचंद नहीं। गांव के लोगें में ‘दो बैलों की कथा’ वाले प्रेमचंद कितने रचे बसे हैं यह इस बात से साबित होता है कि पांच किलोमीटर की जुलूस-यात्रा में होरी, हीरा, झूरी, हल्कू, गोबर, शंकर, घीसू, हामिद, वंशीधर, निर्मला, धनिया जैसे अनगिनत पात्रों के हाथों में तख्तियां और होठों पर नारे लहरा रहे थे-प्रेमचंद पर अत्याचार/नहीं सहेगा गांव-ज्वार, प्रेमचंद पर हमला यानी स्वतंत्रता पर हमला, हम हैं छात्र मजदूर, किसान/ हम बदलेंगे हिंदुस्तान, प्रेमचंद का यह अपमान। नहीं सहेगा हिंदुस्तान, सीबीएसई मुर्दाबाद, सांस्कृतिक क्रांति जिंदाबाद! यह सब दिल्ली के आईटीओ पुल पर में मिनरल वाटर पीकर पचास वर्षो से’ अबाध क्रांतिकारी स्पीच’ देने वाले बौद्धिकों द्वारा या जनता और जनकला की रोज हजार कसमें खाने वाले राष्ट्रीय सांस्कृतिक संगठनों द्वारा नहीं बल्कि बेगूसराय जनपद के ठेठ गांव सिमरिया की छोटी-सी संस्था’ ‘प्रतिबिंब‘ के बैनर तले लगभग महीने भर के जन अभियान के बाद संभव हो पाया था तथा हिंदी पट्टी की संभवतः ऐसी पहली कोशिश थी। यह जानना दिलचस्प होगा कि गोदान, मैलाआंचल और रागदरबारी के बाद के गांव द्वारा यह सब हुआ कैस। जब गांव के कान मे यह हवा पहुंची कि प्रेमचंद के साथ केंद्र सरकार ने अन्याय किया है तो लोग थोड़ा हिले डुले, फिर सुस्त हुए। प्रतिबिंब के सांस्कृतिकर्मियों ने एक गोष्ठी की ‘प्रेमचद पर हमलाः दुश्मनों की खोज।’ इसके साथ ही जन आंदोलन की रूपरेखा बनाते हुए किसानों, मजदूरों, छात्रों के बीच एक सरल पर्चा जारी किया गया जिसमें लिखा कि ‘आज प्रेमचंद के पन्ने ही हमारे चौपाल हैं। प्रेमचंद के लिए लड़ने का मलतब है होरी जैसे उन करोड़ों किसानों के लिए लडना जिनकी दुश्मन सामंती ब्राहमणवादी व्यवस्था, सरकार और डंकन-अमरीका है। क्या अब प्रेमचंद का कद इस देश में मंत्री पत्नी जितना हुआ।’ पंचों में सांस्कृतिकर्मियों ने पांच कसमें खाईः ‘वर्ष 2003 को हम प्रेमचंद वर्ष के रूप में मनाएगें। सी.बी.एस. ई को निर्मला को पाठयक्रम में ससम्मान लगवाने की कोशिश करेंगे। हम सांस्कृतिकर्मी मानसरोवर की 300 कहानियों का एक साल में पाठ करेंगे। गांव गांव जाकर प्रेमचंद की कहानियों का सार्वजनिक पाठ करेगें। इन कामों की शुरूआत 30 जून, 2003 को राष्ट्रकवि‘ दिनकर की जन्मभूमि से सी. बी.एस. ई के अध्यक्ष का पुतला दहन कर यथावत शुरू कर दी गयी है। पुतला दहन कार्यक्रम और जुलूस यात्रा के लिए जब डेढ. दर्जन किसानों के बेटों ने गांव-गांव घूमना शुरु किया तो सामान्य जनता बुद्धिजीवियों के बीच सबसे बड़ी दीवार भाषा की आई। हमने कहा कि प्रेमचंद पर हमला सी.बी.एस.ई ने किया। उन्होंने समझा सी.बी.एस. ई यानी सी.बी. आई। ’क’ ने कहाः हां भाई, सी. बी. आई भी भ्रष्ट हो चुकी है। ’ख’ ने पूछा सी.बी.एस. ई किस जानवर का नाम है ? पर सबने माना, अच्छा, बौआ! प््रेमचंद नामक लेखक पर हमला अन्याय है, पर हुआ कैसे ? और एक नई भाषा की खोज हुई। ‘आपके बाल-बच्चे स्कूलों में जो किताबें पढ़ते हैं उन्हें भारत सरकार का परीक्षा लेनेवाला विभाग बच्चों की जरूरत के मुताबिक बनाता है। पूरे देश की 12 वीं कक्षा से उस विभाग यानी सी.बी. एस.ई केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने महान कहानीकार प्रेमचंद की किताब हटाकर मुजफरपूर जिले की भाजपा नेता मृदुला सिन्हा की किताब लगाई है। देश के लेखकों द्वारा विरोध करने पर अब आपके बच्चों को दोनों में एक किताब पढ़नी होगंी। जरा सोचिए ! प्रेमचंद की जीवनी और कहानी की जगह आज की नेता की जीवनी और कहानी पढ़े ंतो आपके बच्चे क्या बनेंगे’। बस क्या था। गांव-गांव आग सुलग उठी। गले में नारों लिखी तख्तियां टांगे जिधर से अभियानी गुजरते छात्रांे, मजदूरों, किसानों, महिलाओं के चेहरे पर आक्रोश, असंतोष, बेचैनी, असुरक्षा। सीमाएं तोड़ देते एक स्वर से आवाज गोलबंद होती, प्रेमचंद पर अत्याचार/नहीं सहेगा गांव जवार। क्या कोई आंदोलन बिना विरोध-अंतर्विरोध के ही चरम पर पहुंचता है् ? नहीं! ‘च’ बाबू की मान्यता थी कि कोई चुनावी राजनीति है।‘छ’ साहब ने कहा क्या फर्क पड़ता है कि प्रेमचंद जगह नए लोग पढ़े जाएं। ‘ज’ ने कहा क्या डा. प्रेमचंद पर हमला हुआ ?‘ट’ का स्वर था-बड़ जुल्मी छै इ सरकार । मार-काट अ महंगाई एकर प्रान छीकै। ‘ठ’ का साफ कहना था-जब लालू की जीवनी पढ़ाई जा रही थी तब आप कहां थे ? ‘त’ ने कई स्कूलों को भड़काया-यह लाल झंडा वाला है। ’द’ ने दांत गड़ाया -भैया यह सब नाम कमाने का धंधा है। ‘प’ ने पटाखा छोड़ा-सिमरिया की आवाज आज तक दिल्ली नहीं पहुंची तो अब क्या पहुंचेगी ? ‘म’ ने मक्खन मारा-हां, यार! गंाव में चिल्लाने से सरकार क्या किताब बदल देगी ? यह सब बैठारी की दिहाड़ी हैं। दूसरी ओर सकारात्मक उफान भी था। ‘र’ किसान ने मूंछ हिलाई- एं, ऐसन बात! बाबू इ दिनकर की धरती है। एक फूंक मारों तो अंगंरेज को उखाड़ा। दूसरा फूंक मारा, इ सरकार को उखाड़ों।‘ल’ ने गीत गाया -मानव जब जोर लगाता है। पत्थर पानी बन जाता है। ‘स’ ने हंुकार- सच कहता हूं। ऐसा कुछ भी होता तो मेरा शरीर थरथराने लगता है। मुझे लगता है कि देश के लिए कुछ करना चाहिए। यह सिमरिया गांव का 32 वर्षीय किसान तरूण कुमार है। कसहा, बरियाही, अमरपुर, रुपनगर, गंगाप्रसाद, बारो, गढ़हरा, मल्हीपुर,बडहिया, चंदन टोला, चकिया, बीहट सहित अनेक गांवों मंे लंबे समय तक भूखे-प्यासे, धूप-बरसात से लड़ते किशोर साथी दौड़ते रहे। मुहाने पर पहुंची क्रांति को नेतृत्व नहीं जनता अंजाम देती है। 30 जून के 10 बजे जब पुतला दिनकर द्वार पर जुलूस यात्रा के साथ पहंुचा तो दूसरे अनेक गांवों की जनता हजारों की संख्या में जुटी थी। तय था कि राष्ट्रीय राजमार्ग की बगल में ‘सदगति’ का पाठ, भाषण एवं जनगीतों के बाद पुतला जलाया जाएगा। जनता का परावार उमड़ा और सैकड़ों लोगों ने नेतृत्व की उपेक्षा कर राष्ट्रीय राजमार्ग को जामकर पुतला स्थानांतरित कर दिया। फिर सारी गतिविधियां 2,700 सेकेंड तक वहीं चलती रहीं। अगले दिन हिंदुस्तान ने खबर लगाई निर्मला को लेकर जलाया गया सी.बी.एस. ई का पुतला। दैैकिल जागरण का शीर्षक था सी.बी.एस. ई के अध्यक्ष का पुतला फूंका। और आज ने लिखा ‘सी.बी. एस. ई के अध्यक्ष का पुतला दहन’। अनेक क्षेत्रीय पत्रों में भी खबरें आती रहीं। प्रतिदिन संस्कृतिकर्मी गांव-गांव जाकर प्रेमचंद की कहानियों का पाठ करते है। प्रेमचंद के पात्रों एवं पाठकों से इस पर राय ली जाती है। अब तक ‘सदगति’ ‘ठाकुर का कुआं’ ’सवा सेर गंेंहूं’ का पाठ हो चुका है। साथ ही जनपद के कवि दिनकर की क्रांतिकारी कविताओं का पाठ भी जारी है। लोग चौपाल में घेरकर अपने प्यारे-न्यारे कथाकार की कहानी चाव से सुनते हैं। हजार से अधिक हस्ताक्षर जमा हो चुके है। जानिए कि निर्मला के समर्थन एवं मृदुला के विरोध में अनेक ग्रामीण भाजपा कार्यकर्ताओं ने सहर्ष हस्ताक्षर किए क्योंकि प्रेमचंद उनकी आत्मा में रचे-बसे हैं। ‘स’ को पता भीं है कि दिल्ली के राजेंद्र सभागार में आग और धुआं पर्चे के रूप में बंट चुका है। दिल्ली की दीवारों पर चिपक चुका है। उसे यह भी पता नहीं प्रेमचंद राष्ट्रीय संगोष्ठी में शेखर जोशी जैसे कथाकार ने चार मिनट तक उनके इस कार्य की सराहना की है।‘स’ नामक ग्रामीण किसान को कितना दुख होगा कि दिल्ली के बुद्धिजीवी जनता के ऐसे आंदोलन को ’स्पीच’ सुनने के दरम्यान चूतड़ों के नीचे दबा देने के कितने बड़े उस्ताद हैं। एक ही उम्मीद है कि होरी और हामिद एक
प्रेमचंद और भ्रष्टचंद
रामाज्ञा राय शशिधर
हल की मूठ पकड़े होरियों और फावड़े चलाते हल्कुओं को प्रेमचंद और भ्रष्टचंद में फर्क की गहरी समझ है। वे प्रेेमचंद पर हमले को आजादी पर हमला समझते है। यही कारण है कि प्रेमचंद के पात्र और पाठक निर्मला को अपमानित करने वाले सी¬.बी.एस. ई के अध्यक्ष का पुतला हजारों की भीड़ में जला सकते हैं और मृदुला मुर्दाबाद/निर्मला जिंदाबाद’ के नारे लगा कर आईना दिखा सकते है। प्रेमचंद के ग्रामीण पात्रांे और पाठकों ने भाजपा नेता मृदुला सिन्हा के गृहराज्य बिहार में 2,700 सेकेंड तक राष्ट्रीय राजमार्ग-31 का चक्कर लगाकर सी.बी. एस. ई अध्यक्ष के पुतले को नारों, जनगीतों, पर्चो, भाषणों तख्तियों के बीच फूंक दिया तथा गगन भेदी स्वर में दुहराते रहे कि ‘हमें प्रेमचंद चाहिए भ्रष्टचंद नहीं। गांव के लोगें में ‘दो बैलों की कथा’ वाले प्रेमचंद कितने रचे बसे हैं यह इस बात से साबित होता है कि पांच किलोमीटर की जुलूस-यात्रा में होरी, हीरा, झूरी, हल्कू, गोबर, शंकर, घीसू, हामिद, वंशीधर, निर्मला, धनिया जैसे अनगिनत पात्रों के हाथों में तख्तियां और होठों पर नारे लहरा रहे थे-प्रेमचंद पर अत्याचार/नहीं सहेगा गांव-ज्वार, प्रेमचंद पर हमला यानी स्वतंत्रता पर हमला, हम हैं छात्र मजदूर, किसान/ हम बदलेंगे हिंदुस्तान, प्रेमचंद का यह अपमान। नहीं सहेगा हिंदुस्तान, सीबीएसई मुर्दाबाद, सांस्कृतिक क्रांति जिंदाबाद! यह सब दिल्ली के आईटीओ पुल पर में मिनरल वाटर पीकर पचास वर्षो से’ अबाध क्रांतिकारी स्पीच’ देने वाले बौद्धिकों द्वारा या जनता और जनकला की रोज हजार कसमें खाने वाले राष्ट्रीय सांस्कृतिक संगठनों द्वारा नहीं बल्कि बेगूसराय जनपद के ठेठ गांव सिमरिया की छोटी-सी संस्था’ ‘प्रतिबिंब‘ के बैनर तले लगभग महीने भर के जन अभियान के बाद संभव हो पाया था तथा हिंदी पट्टी की संभवतः ऐसी पहली कोशिश थी। यह जानना दिलचस्प होगा कि गोदान, मैलाआंचल और रागदरबारी के बाद के गांव द्वारा यह सब हुआ कैस। जब गांव के कान मे यह हवा पहुंची कि प्रेमचंद के साथ केंद्र सरकार ने अन्याय किया है तो लोग थोड़ा हिले डुले, फिर सुस्त हुए। प्रतिबिंब के सांस्कृतिकर्मियों ने एक गोष्ठी की ‘प्रेमचद पर हमलाः दुश्मनों की खोज।’ इसके साथ ही जन आंदोलन की रूपरेखा बनाते हुए किसानों, मजदूरों, छात्रों के बीच एक सरल पर्चा जारी किया गया जिसमें लिखा कि ‘आज प्रेमचंद के पन्ने ही हमारे चौपाल हैं। प्रेमचंद के लिए लड़ने का मलतब है होरी जैसे उन करोड़ों किसानों के लिए लडना जिनकी दुश्मन सामंती ब्राहमणवादी व्यवस्था, सरकार और डंकन-अमरीका है। क्या अब प्रेमचंद का कद इस देश में मंत्री पत्नी जितना हुआ।’ पंचों में सांस्कृतिकर्मियों ने पांच कसमें खाईः ‘वर्ष 2003 को हम प्रेमचंद वर्ष के रूप में मनाएगें। सी.बी.एस. ई को निर्मला को पाठयक्रम में ससम्मान लगवाने की कोशिश करेंगे। हम सांस्कृतिकर्मी मानसरोवर की 300 कहानियों का एक साल में पाठ करेंगे। गांव गांव जाकर प्रेमचंद की कहानियों का सार्वजनिक पाठ करेगें। इन कामों की शुरूआत 30 जून, 2003 को राष्ट्रकवि‘ दिनकर की जन्मभूमि से सी. बी.एस. ई के अध्यक्ष का पुतला दहन कर यथावत शुरू कर दी गयी है। पुतला दहन कार्यक्रम और जुलूस यात्रा के लिए जब डेढ. दर्जन किसानों के बेटों ने गांव-गांव घूमना शुरु किया तो सामान्य जनता बुद्धिजीवियों के बीच सबसे बड़ी दीवार भाषा की आई। हमने कहा कि प्रेमचंद पर हमला सी.बी.एस.ई ने किया। उन्होंने समझा सी.बी.एस. ई यानी सी.बी. आई। ’क’ ने कहाः हां भाई, सी. बी. आई भी भ्रष्ट हो चुकी है। ’ख’ ने पूछा सी.बी.एस. ई किस जानवर का नाम है ? पर सबने माना, अच्छा, बौआ! प््रेमचंद नामक लेखक पर हमला अन्याय है, पर हुआ कैसे ? और एक नई भाषा की खोज हुई। ‘आपके बाल-बच्चे स्कूलों में जो किताबें पढ़ते हैं उन्हें भारत सरकार का परीक्षा लेनेवाला विभाग बच्चों की जरूरत के मुताबिक बनाता है। पूरे देश की 12 वीं कक्षा से उस विभाग यानी सी.बी. एस.ई केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने महान कहानीकार प्रेमचंद की किताब हटाकर मुजफरपूर जिले की भाजपा नेता मृदुला सिन्हा की किताब लगाई है। देश के लेखकों द्वारा विरोध करने पर अब आपके बच्चों को दोनों में एक किताब पढ़नी होगंी। जरा सोचिए ! प्रेमचंद की जीवनी और कहानी की जगह आज की नेता की जीवनी और कहानी पढ़े ंतो आपके बच्चे क्या बनेंगे’। बस क्या था। गांव-गांव आग सुलग उठी। गले में नारों लिखी तख्तियां टांगे जिधर से अभियानी गुजरते छात्रांे, मजदूरों, किसानों, महिलाओं के चेहरे पर आक्रोश, असंतोष, बेचैनी, असुरक्षा। सीमाएं तोड़ देते एक स्वर से आवाज गोलबंद होती, प्रेमचंद पर अत्याचार/नहीं सहेगा गांव जवार। क्या कोई आंदोलन बिना विरोध-अंतर्विरोध के ही चरम पर पहुंचता है् ? नहीं! ‘च’ बाबू की मान्यता थी कि कोई चुनावी राजनीति है।‘छ’ साहब ने कहा क्या फर्क पड़ता है कि प्रेमचंद जगह नए लोग पढ़े जाएं। ‘ज’ ने कहा क्या डा. प्रेमचंद पर हमला हुआ ?‘ट’ का स्वर था-बड़ जुल्मी छै इ सरकार । मार-काट अ महंगाई एकर प्रान छीकै। ‘ठ’ का साफ कहना था-जब लालू की जीवनी पढ़ाई जा रही थी तब आप कहां थे ? ‘त’ ने कई स्कूलों को भड़काया-यह लाल झंडा वाला है। ’द’ ने दांत गड़ाया -भैया यह सब नाम कमाने का धंधा है। ‘प’ ने पटाखा छोड़ा-सिमरिया की आवाज आज तक दिल्ली नहीं पहुंची तो अब क्या पहुंचेगी ? ‘म’ ने मक्खन मारा-हां, यार! गंाव में चिल्लाने से सरकार क्या किताब बदल देगी ? यह सब बैठारी की दिहाड़ी हैं। दूसरी ओर सकारात्मक उफान भी था। ‘र’ किसान ने मूंछ हिलाई- एं, ऐसन बात! बाबू इ दिनकर की धरती है। एक फूंक मारों तो अंगंरेज को उखाड़ा। दूसरा फूंक मारा, इ सरकार को उखाड़ों।‘ल’ ने गीत गाया -मानव जब जोर लगाता है। पत्थर पानी बन जाता है। ‘स’ ने हंुकार- सच कहता हूं। ऐसा कुछ भी होता तो मेरा शरीर थरथराने लगता है। मुझे लगता है कि देश के लिए कुछ करना चाहिए। यह सिमरिया गांव का 32 वर्षीय किसान तरूण कुमार है। कसहा, बरियाही, अमरपुर, रुपनगर, गंगाप्रसाद, बारो, गढ़हरा, मल्हीपुर,बडहिया, चंदन टोला, चकिया, बीहट सहित अनेक गांवों मंे लंबे समय तक भूखे-प्यासे, धूप-बरसात से लड़ते किशोर साथी दौड़ते रहे। मुहाने पर पहुंची क्रांति को नेतृत्व नहीं जनता अंजाम देती है। 30 जून के 10 बजे जब पुतला दिनकर द्वार पर जुलूस यात्रा के साथ पहंुचा तो दूसरे अनेक गांवों की जनता हजारों की संख्या में जुटी थी। तय था कि राष्ट्रीय राजमार्ग की बगल में ‘सदगति’ का पाठ, भाषण एवं जनगीतों के बाद पुतला जलाया जाएगा। जनता का परावार उमड़ा और सैकड़ों लोगों ने नेतृत्व की उपेक्षा कर राष्ट्रीय राजमार्ग को जामकर पुतला स्थानांतरित कर दिया। फिर सारी गतिविधियां 2,700 सेकेंड तक वहीं चलती रहीं। अगले दिन हिंदुस्तान ने खबर लगाई निर्मला को लेकर जलाया गया सी.बी.एस. ई का पुतला। दैैकिल जागरण का शीर्षक था सी.बी.एस. ई के अध्यक्ष का पुतला फूंका। और आज ने लिखा ‘सी.बी. एस. ई के अध्यक्ष का पुतला दहन’। अनेक क्षेत्रीय पत्रों में भी खबरें आती रहीं। प्रतिदिन संस्कृतिकर्मी गांव-गांव जाकर प्रेमचंद की कहानियों का पाठ करते है। प्रेमचंद के पात्रों एवं पाठकों से इस पर राय ली जाती है। अब तक ‘सदगति’ ‘ठाकुर का कुआं’ ’सवा सेर गंेंहूं’ का पाठ हो चुका है। साथ ही जनपद के कवि दिनकर की क्रांतिकारी कविताओं का पाठ भी जारी है। लोग चौपाल में घेरकर अपने प्यारे-न्यारे कथाकार की कहानी चाव से सुनते हैं। हजार से अधिक हस्ताक्षर जमा हो चुके है। जानिए कि निर्मला के समर्थन एवं मृदुला के विरोध में अनेक ग्रामीण भाजपा कार्यकर्ताओं ने सहर्ष हस्ताक्षर किए क्योंकि प्रेमचंद उनकी आत्मा में रचे-बसे हैं। ‘स’ को पता भीं है कि दिल्ली के राजेंद्र सभागार में आग और धुआं पर्चे के रूप में बंट चुका है। दिल्ली की दीवारों पर चिपक चुका है। उसे यह भी पता नहीं प्रेमचंद राष्ट्रीय संगोष्ठी में शेखर जोशी जैसे कथाकार ने चार मिनट तक उनके इस कार्य की सराहना की है।‘स’ नामक ग्रामीण किसान को कितना दुख होगा कि दिल्ली के बुद्धिजीवी जनता के ऐसे आंदोलन को ’स्पीच’ सुनने के दरम्यान चूतड़ों के नीचे दबा देने के कितने बड़े उस्ताद हैं। एक ही उम्मीद है कि होरी और हामिद एक
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