कविता की नई भूमिका
बनारस में आयोजित युवा कवि संगम कई सवाल छोड गया है.
क्या हिंदी कविता पुरानी लीक पर ही चल रही है? कविता में
पुरानी लीक के अवशेष-चिह्न हैं या वह अपनी काया और माया
को पूरे तौर पर बदल रही है? क्या बाजार से बाहर मौजूद कही
जानेवाली हिंदी कविता सचमुच ’ग्लोबल’ की ताकत संरचना से
मुक्त है या उसका नवोन्मेषी हिस्सा ’वर्चुअल ज्ञान क्रांति’ के पैटर्न
का अनुसरण कर रही है? हिंदी कविता के एक नए हिस्से में कविता होने के
अलावा ऐसा क्या है जिसे हिंदी समाज और संस्कृति से अभिन्न माना जाए?
क्या अब कविता देश से परे केवल अधूरे काल की अवधारणा पर
अपना विकास करेगी? क्या कविता भूगोल से बाहर अपना अस्तित्व
बनाएगी और अतीत से सर्वथा मुक्त होकर केवल भविष्य में दोनों
पांव रखेगी? क्या कविता केवल ’स्व’ या स्वविहीन सूचनास्थूलता की क्राफ़्ट
भर बनेगी ? क्या कलात्मकता और लोकप्रियता के सह-अस्तित्व का संघर्ष और
सरोकार अब गैरजरूरी है? क्या कविता में कैसे कहा जा रहा है,केवल वही अहम
होगा या कैसे क्या कहा जा रहा है इसका विकास होगा? क्या कविता प्रौद्योगिकी
से पूर्णत संरचित स्वरूप लेगी या दोनों के द्वंद्व से कुछ नया बनेगा? अंतत कविता
कहां से आएगी,किस रूप में यथार्थ भार क वहन करेगी और किसके लिए होगी?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो आज की पीढी की कविता से पूछने की जिज्ञासा है.
12 नवंबर, 2010
कविता की नई भूमिका
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