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06 नवंबर, 2011

केन्द्र राष्ट्रवाद का गुनाह करता है और सीमाएं सजा भोगती हैं

                       बनारस में इरोम शर्मीला 


मणिपुर की आम जनता सत्ताधारी राष्ट्रवाद की हिंसा की बेशुमार शिकार है.ड्रम की उन्मादी धुनों,बूटों की हिंसक गूंजों,आंसू गैस के बादलों,कारतूस की दंदनाहटो,लाठियों की चटचटाहटों के साये में वहाँ की निर्दोष जनता लगातार बलात्कार,हत्या और उत्पीडन झेल रही है. ग्यारह साल से इसका तीखा विरोध भी जारी है.लोकतंत्र और मानवाधिकार की दुहाई देने वाले भारत का असली चेहरा चालीस साल की अवस्था में पैंतीस किलो हो गयी अनशनकारी इरोम है.ग्यारह साल से सेना की बर्बर करतूत के खिलाफ आमरण अनशन पर बैठी इरोम शर्मीला गाँधी के देश की राजसत्ता के लिए शर्म का मसला है.
            इरोम शर्मीला और लाखों इरोम शर्मिलाओं की मांग है कि आर्म्स फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट 1958 से मणिपुर को तुरंत मुक्त किया जाए.यह कानून 1942 में गाँधी के भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ औपनिवेशिक शासन द्वारा लादे गए आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर आर्डिनेंस का स्वातंत्र्योत्तर अवतार है.अन्य क्षेत्रों में बरकरार उपनिवेशी ढांचे की तरह भारतीय सेना की संरचना भी पूर्ण औपनिवेशिक है.इसका प्रमाण बेरोजगार किसान-पुत्र फौजियों का उत्पीड़ित राष्ट्रीयता के खिलाफ आजादी के बाद किया गया बेजा इस्तेमाल है.केन्द्र राष्ट्रवाद का गुनाह करता है और सीमाएं
 उसकी सजा भोगती हैं.               
              5 नवंबर को देश के अन्य हिस्सों की तरह बनारस के छात्रों-बुद्धिजीवियों-एक्टिविस्टों ने इरोम की मांग के समर्थन में बीएचयू द्वार से अस्सी घाट तक जुलूस निकला,नारे लगाए,डफली की थाप पर जनगीत गाए,जनसभा की और लंका पर मानवाधिकार उल्लंघन पर आधारित डॉक्युमेंटरी फिल्म एफ्स्पा-1958 का प्रदर्शन किया. भगत सिंह स्टडी सर्कल के बैनर तले सैकड़ों विद्यार्थी और बुद्धिजीवी हाथों में तख्ती लिए नारे लगा रहे थे-जनांदोलनों पर दमन बंद करो/ आर्म्स फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट 1958 वापस लो/लोकतंत्र में तानाशाही,नहीं चलेगी नहीं चलेगी/इरोम तुम संघर्ष करो,हम तुम्हारे साथ हैं/इरोम शर्मीला की मांगे पूरी करो.जनगायक युद्धेश और अन्य कलाकार डफली बजाते हुए गा रहे थे-वे सारे हमारी कतारों में शामिल. 

            अस्सी घाट पर जुलूस जनसभा में बदल गया.विचारों के कोने से छनकर आया-सभी राष्ट्रीयताओं को आत्मनिर्णय का अधिकार मिलना चाहिए,काले कानूनों की आड़ में महिलाओं का बलात्कार,युवाओं की हत्या और तमाम उत्पीडन बंद होना चाहिए,सरकारों द्वारा निर्धारित मुद्दों पर बुद्धिजीवियों को बोलना और सुर मिलाना बंद करना चाहिए,किसान के बेटों को सीमा पर लड़ने भेजना और किसानो की जमीन छीनना राष्ट्रवाद नहीं है,सारंडा और दंतेवाडा के मुहल्लों से मुर्गी,सूआर खाना लूटकर खाना,स्थानीय औरतों का बलात्कार करना और पुरुषों को लापता करना राष्ट्रीयता का बर्बर सरकारी रूप है,सोचना होगा कि आज देश कि बहुसंख्यक जनता सड़क पर और सेना केम्पों में विद्रोह क्यों कर रही है,नौजवान ऐसा तोपखाना है जो सत्ता कि दमन मिसाइलों पर भारी पड़ता है,इरोम का उपवास दुनिया का सबसे लंबा अहिंसक प्रतिरोध है जिसने जनांदोलनो को गोलबंद होने का मौका दिया है,अन्ना के आंदोलन का समर्थन और इरोम किए आंदोलन के प्रति उदासीनता सांप्रदायिक राष्ट्रीयता और मध्यवर्गीय बहुरूपिएपन का मुखौटा खोलता है,संविधान के पुनर्लेखन की जरूरत है,बनारस में दो साल से स्थाई १४४ धारा लागू है, पुलिस तथा खुफिया तंत्र से हम घिरे हैं,इसके बावजूद बद्धिकता का तकाजा है कि हम जनांदोलन और जनता के सच्चे राष्ट्र के साथ खड़े होकर सत्ता से संघर्ष करें.

आल इण्डिया प्रोग्रेसिव आमेंस एसोसिएशन,बनारस इकाई की ओर से स्वयंवर वाटिका लंका पर मानवाधिकार उल्लंघन पर आधारित डॉक्युमेंटरी फिल्म एफ्स्पा-1958 का प्रदर्शन  सत्तर मिनट तक हुआ.दिल को हिला देनेवाली फिल्म ने मणिपुर में सेना और पुलिस की बर्बरता का ऐसा दस्तावेज रखा कि खचाखच भरा सभागार आंसू और घृणा से भर गया.