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12 दिसंबर, 2013

पुरानी नाव की पुकार

छोड़ गया बाढ़ का पानी
तेरे संग की सघन निशानी
 डबडबाई आँखों सा गीला किनारा
बच गया
समय की पपनियों पर गाद
रच
गया
अस्थियाँ उग गईं याद की
बाद की
खा गया मेरा गोश्त
पानी जो ठहरा पुराना दोस्त
जीवनहीन रेत पर
कछुए सी पड़ी हुई 
पुकारती हूँ  प्यार प्यार 
यादों की क़ब्र में गड़ी हुई 

2.
दोने में दोनों 
साखू का सूखा हुआ दोना था मैं
गेंदे के गूदेदार फूल गुच्छ तुम
एक सांझ दोनों मिले 
नदी के झूले पर झूल पड़े 
दोनों जब गुँथे तब माटी का दीया
दोनों जब पिघले तब अलसी का तेल गला
दोनों में ज्वार आया बाती बेताब हुई
सुलग गए दोनों  नदी पूरी आग हुई
बिछुड़कर हम तुम पानी पर चलते हैं
दोने में बैठकर रोशनी में ढलते हैं