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31 दिसंबर, 2017

अलविदा मंडीमार 17! स्वागत डंडीमार 18!

रामाज्ञा शशिधर

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मेरे लिए यह चुनना बेहद मुश्किल है कि हमारे समय को भाप के इंजिन ने ज्यादा प्रभावित किया या घन्टे मिनट सेकेंड बतानेवाली घड़ी के आविष्कार ने।अंततः
घड़ी इंजिन पर भारी हुई।2017 को  अलविदा और 2018 को वेलकम कहना घड़ी की जीत है।मुझे नहीं मालूम मुर्गे के गले में सूरज रखने वाली सभ्यता किस
तरह वर्ष के अंत और आरंभ के साथ व्यवहार करती होगी लेकिन अब की अदा तो ऐसी है।
       तो 17 को नंबर 1 से देखिए तो आपका  मन ख़ुशी से भरा दिखेगा।कहीं नदी तालाब पार्क माल घाट में कोहरा लिपटा गरीबों का गोआ तो कहीं सचमुच का सी सन सैंड स्किन फिश बियर के वेव पर सवार अपर मिड्ल क्लास और अमीरों का गोआ।अगर नंबर 7 की ओर से यादों में लौटिए तो दुःख,घृणा,यातना,हिंसा,मक्कारी,लिंचिंग,ट्रोलिंग,गुलामी,झूठ,पाखंड,अवसाद से भरा हुआ घड़ी का सूई नाच।इसका मतलब है 1 और 7 दोनों दो कोण हैं समय के।और कोण के बदलते ही समय की व्याख्या
बदल जाती है।यह है 17 के यूटोपिया से नॉस्टेल्जिया तक की यात्रा।नॉस्टेल्जिया हमेशा से पीड़ा के पंख पर सवार रहता है लेकिन यूटोपिया इतना डरावना कम ही होता है जैसा 17 का था।मेरे लिए तो 18 में कोई सांस्कृतिक और सामाजिक मुक्ति की उम्मीद कम ही दिखती है।
            मीडिया ने चेतना का पूर्णतः मंडीकरण कर दिया है।अब सोशल मीडिया हर तरह के गुंडों की सबसे बड़ी शरणस्थली है।वहां फेक ट्रॉल्स फरेब वेबफ़ा सेल्फ़ी सोल का घड़ी के सेकेण्ड के 60 वें हिस्से में सेलिब्रेशन चलता रहता है।हर आईपी और आईडी में छुपा हुआ चित्र धोखा हो सकता है।यानी जिसे केटरीना समझ रहे हैं वह 69 का फोसला हो सकता है।जिसे राम समझ रहे हैं वह रावण का एजेंट हो सकता है।साधू के वेश में गोश्तखोर  और आशिक के वेश में सीरियल किलर।...यानी जिससे आप फोन पर रोज सुनते हैं- आपकी बातें मीठी लगती  हैं -वह जापानी व्हाइट नहीं मुहल्ले के दुश्मन लंठराम की पॉलिटिकल विपन मिस झरियारानी हो सकती है।केप्सकम में बेबीकार्न चिल्ली पर जिसने आपके मैसेंजर या व्हाट्सअप या अकाउंट बॉक्स में न्योता दिया है वह सात समंदर पार ब्राजील के एक पिछड़े इलाके का हैकर है जो आपकी डिग्री फीस या इलाज का एकाउंट ट्रीट देने से पहले उड़ा चुका है।याद रखिए आप एक कैशलेस राष्ट्र के सुपर सिटीजन लगभग होने वाले हैं और विद्युत चुम्बकीय  वेव्हॉर्स पर सवार हैं।
        मेरे लिए वर्ष 17 घर बदलने और खुद को आत्मोन्मुख बनाने का साल रहा।मुझे हर कीमत पर अनुभव और शब्द की नई दुनिया रोमांच और रोमांस के जीवद्रव्य से भर देती है।साल 17 ने एक ऐसा ज्ञान चबूतरा विकसित करने का मौका दिया जो एक साथ रीयल और वर्चुअल दोनों है।जब लोग पत्थर चलाते हैं बरगद आसमान में जड़ और सर सहित  अपलिफ्ट हो जाता है।जब जिज्ञासु उसे पारदर्शी मन से खोजते वह हाज़िर हो जाता है।यानी मालवीय चबूतरा और दर्जन से अधिक ज्ञान विमर्श।17 ने मुझे 7 चाय अड़ियों का बुद्धत्व दिया जिसकी जड़ें ईस्ट इंडिया टी कम्पनी तक जाती हैं।अस्सी ने  कुछ शब्दउपजाऊ अच्छे किसान साथी दिए जो किसी यूनिवर्सिटी के दमघोंटू बजरज्ञानी से लाख दर्जे कुशल सृजन मन हैं।इस बार के ग्रीष्म में हिमालय की बर्फानी और जीवन भरी यात्रा सम्भव हुई जिसकी छाप आत्मा तक पर उतर गई।अपने घर में DLRC लाइब्रेरी की स्थापना और मदन कश्यप की उपस्थति में ग्रीन टी सहित बुक शेल्फ का आरम्भ से मैं एकाएक एलिट और पढ़ाकू दिखने लगा।दिनकर व्याख्यान श्रृंखला की यह मात्र शुरुआत है।
             इसबार की दीवाली,छठ,गुरुपूर्णिमा,क्रिसमस, एलटीसी यात्रा,नव वर्ष सब माँ की सेवा में समर्पित रहा।माँ विद्रोह और मुक्ति की अग्निशिखा है।मौत भी कभी कभी उससे घबड़ाती है।चाहता हूँ कि वह दुनिया के नजारों को और जिए।
             17 ने मेरे छद्म वैरियों को समय के खेत में गाजरघास सा बना दिया।जो लाट थे काठ हो गए,जो वाचक थे पाठ हो गए जो तीस थे साठ हो गए जो मॉल थे घाट हो गए जो बर्गर थे चाट हो गए जो किंगचेयर थे खाट हो गए जो प्रिन्स थे भाट हो गए जो क्षत्रिय थे जाट हो गए जो मूँछ थे ♨ट हो गए जो मलबरी थे टाट हो गए जो महल थे बाट हो गए जो मेगामार्ट थे गौसपुर गाँव के हाट हो गए।
         17 में खेत की दलाली में मंदी रही और स्लेट की कालाबजारी में मगजमारी।
      17 को मैंने 1 और 7 दोनों रुखों से देखा। कल मैं रुक्खा गुरु के साथ था और कल मैं ह्मबोट गुरु के साथ होना चाहता हूँ।ये दोनों प्राकृत और पालि के हीरो हैं।अलविदा 17!स्वागत18!चबूतरे पर जब भी आता हूँ खनेजा दीवार क्लॉक में हमेशा 8 ही क्यों बजते हैं।यह तो ईश्वर को ही पता होगा जो आजकल समय की भरपूर गिरफ्त में है।

 


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