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21 जनवरी, 2018

ऐसे हुआ मालवीय चबूतरे का सत्रारंभ


एक पीली पत्ती आकर बाईं हथेली पर गिरी...धूप के बड़ा टुकड़ा पूरब के क्षितिज से उतरा और पीली पत्ती में समा गया।फिर चारों ओर रोशनी ही रोशनी...इस तरह हुआ मालवीय चबूतरे का सत्रारंभ।हिंदी और अन्य ज्ञान अनुशासनों के जिज्ञासु विद्यार्थियों के बीच विमल ने राहुल जी पर एक संक्षिप्त परचा पढ़ा।और शीत सत्र 18 के ज्ञान विमर्श का सिलसिला एक घन्टे से अधिक देर तक चलता रहा। आजमगढ़ के बालक केदार पांडेय से   Rahul Sankrityayan - राहुल सांकृत्यायन बनने
की प्रक्रिया,राहुल जी का एक्टिविज्म,राहुल जी के सरोकार,राहुल जी की इतिहास यात्रा,राहुल जी की भूगोल यात्रा,राहुल जी का ऑर्गेनिक बुद्धिजीवी बनने का संघर्ष,राहुल जी की साहित्यिक देन,राहुल जी का प्रेम प्रसंग आदि आदि न जाने कितने संवाद झरोखे खुलते गए।फिर शिक्षक छात्र के बीच की अभिजात और आडम्बरी दूरी स्वतः समाप्त होती गई।वाद विवाद संवाद जारी रहा।इस तरह पता ही नहीं चला कि सूरज कब सर पर सवार हो गया। मुक्त मन से उन्मुक्त गगन के नीचे
शिक्षा की उपनिषदीय और सुकराती परंपरा जीवित रहे तो मनुष्यता की जय यात्रा जारी रहेगी।
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      विशेष बधाई आयोजन
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मालवीय चबूतरा के प्रिय छात्र डा अमरजीत राम इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी के स्थाई असिस्टेंट प्रोफेसर हो गए।आज डा साहब को वाचस्पति,दीनबंधु तिवारी और मैंने दिल से बाधाई दी।साथ ही हिंदी के दर्जन भर छात्रों ने डा साहब को सतरंगी शुभकामनाएं दी।डा साहब के सम्मान में चाय पार्टी हुई।डा अमरजीत हिंदी विभाग के मेधावी,ज्ञान पिपासु और विनम्र छात्र रहे हैं।हंसी और कविता दोनों इनकी जान हैं।डा अमरजीत ने कहा कि मालवीय चबूतरे से वे इलाहबाद रहते हुए भी जुड़े रहेंगे।

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