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01 मार्च, 2018

बनारस की होली में गर्म पकौड़ी पर गरमागरम बहस


पकौड़ी गर्म है।मुंह जल रहा है।चर्बीदार घी में नहीं,अन्न से निकले सरसों तेल में छनी है।पकौड़ी का ओरिजिन लोक है।पकौड़ी संस्कृत नहीं,देशज शब्द है।खेत और श्रम से निकली पकौड़ी अभिजन बाभन के घी की कचौड़ी को चुनौती दे रही है।
राजनीति या नेता से बहुत पहले किसान और कवि पकौड़ी की
महिमा गा चुके हैं।किसान,श्रमिक और कवि पकौड़ी में इनवॉल्व
हैं।पकौड़ी उनके लिए किसानी की तरह पुराना कौशल और स्वाद है।आज के नेता और राजनीति के लिए पकौड़ी अभिजन द्वारा जन का मजाक है।दूर से देखा हुआ हास्य है।साहित्य आज भी राजनीति से आगे चलने वाली सचाई की मशाल है।
               निराला के 'नए पत्ते' में शामिल सात दशक पुरानी कविता 'गर्म पकौड़ी' पर दिनकर लायब्रेरी रिसर्च सेंटर द्वारा आयोजित पकौड़ी फेस्ट में तीन तरह की पकौड़ियों और चटनियोँ के साथ गरमागरम बहस हुई।फेस्ट की बहस में बनारस की देशज संस्कृति से जुड़े बौद्धिकों ने स्वाद लेते हुए
भाग लिया। 
               नागार्जुन को जहरीखाल में पहाड़ी नदी की मछली
खिलाने वाले वैष्णव लेखक वाचस्पति सत्तर की उम्र में भी पकौड़ी के फेन हैं।वे लहसुन प्याज के परहेजी नहीं हैं।लहसून
पुदीने की चटनी के साथ अजवाइन पकौड़ी का स्वाद लेते हुए
नौजवान वाचस्पति कहते हैं कि पकौड़ी अभिजन के विरुद्ध जन का स्वाद है।निराला की कविता में गहरी राजनीति है।पूर्वांचल से तो पकौड़ीलाल कोल सांसद रहे हैं।यह पकौड़ी की लोक ताकत है कि कोल भील जैसे आदिवासी का नाम पकौड़ीलाल होता है।
                 वीटी के कड़क समोसे के आशिक कवि श्रीप्रकाश
शुक्ल टमाटर की चटनी की परसन लेते हुए कहते हैं कि पकौड़ी
घी कचौड़ी की वैकल्पिक स्वाद संस्कृति है।गर्म पकौड़ी में नवान्न का उत्सव बोध है।आज की राजनीति  पकौड़ी को हास्य
बनाकर जनता में खुद हास्य में बदल जाती है।पकौड़ी हमारी
पुश्तैनी लोक शैली और रसोई तकनीक है।निराला की यह कविता न केवल कविता की वस्तु को बदलती है बल्कि रूप में
भी क्रांतिकारी है।आज की राजनीति तो जब गांधी का दुरूपयोग कर सकती है तो पकौड़ी की क्या औकात है।
            पप्पू की चाय में छप्पन स्वाद की खोज करने वाले
नगर के अनमोल टी टेस्टर डा दीनबंधु तिवारी कहते हैं कि बनारस में केशरी परिवार भांग पकौड़ी का अंतर्राष्ट्रीय एक्सपर्ट है।पकौड़ी में नमक मिर्च मसाले का टेक्सचर खोजना चाहिए न कि राजनीति।पकौड़ी के बाद दूध की चाय जायकेदार होती है न कि नींबू की।
              मधु बहार की मिठाई को दालमोट में फेंट कर सिर्फ
जीभ और तालु से रस चाभने वाले शब्द संगीत मर्मज्ञ डा आशीष पांडेय कहते हैं कि पकौड़ी के पीछे गर्म शब्द का प्रयोग
दरअसल पुराने स्वाद को तोड़कर नया स्वाद पैदा करना है।जब
तक पकौड़ी ठंडी नहीं होगी नया स्वाद पकड़ में नहीं आएगा।
जैसे कंजूस कौड़ी तक से प्रेम करता है निराला के लिए पकौड़ी
उतनी ही सघन प्रेम की चीज है।यह नेहरू के नसीब में नहीं हो सकती तो आनंद भवन में एलिट जीवन जीते थे।
            अस्सी चुटकी नब्बे ताल तब जानो खैनी का हाल के
बाद गोरखपंथी जीवन की व्याख्या करनेवाले रमेश सिंह का
मानना है कि आज जन स्वाद की संस्कृति खतरे में है।
पकौड़ी पिज्जा के खिलाफ ठेले पर रसोई में खड़ी है।
             😈😈😈😈😈😈😈😈😈
इवेंट प्रबंधक:सौम्य सृजन
फ़ूड प्रबंधक: साखी
किचेन मास्टर:ज्योति
सर्विस मैन:रामाज्ञा शशिधर

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