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25 मार्च, 2018

केदारनाथ सिंह आधा बनारस हैं:मालवीय चबूतरा

💚काव्य पाठ 💛छवि प्रदर्शनी ❤चबूतरा चर्चा
✒मेरे लिए केदारजी आधा बनारस हैं-मालवीय चबूतरा
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"पत्तियां चुप हैं;पेड़ उदास हैं,सूरज बेस्वाद है;धूप फीकी है;हवा का फेफड़ा धीमा है;दूब कुचली हुई आत्मा की छाल सी चपटी है;टहनी पर बैठी बया के पंख पहाड़ हैं;कोयल खामोश है;कठफोरबा हिकारत से काठ को देख रहा है;चींटियाँ काम से महरूम हैं;दीमक जड़ों के बिस्तर पर सो रहे हैं;सांप मेढक से राम राम कह रहे हैं;मोर वंदे मातरम् भूल गया है;अशोक शोकग्रस्त,शिरीष क्रुद्ध,अमलतास म्लान,बबूल बदजुबान,गुलमोहर पत्रहीन और छतनार बेजार हैं।कुल मिलाकर बसंत उदास है।बगिया के एक कटे हुए सर वाले पेड़
के धड़ की जड़ में नगर के एक फोटोग्राफर द्वारा उतारी गई एक एक कवि की छवि है जो गा रही है-बनारस आधा है और आधा नहीं है।"
              आज मालवीय चबूतरे पर 'मेरे लिए केदारजी' चबूतरा चर्चा में ढाई घन्टे तक शब्द साहस के साथ ज़िंदा थे।
केदारनाथ सिंह के व्यक्तित्व और कविता की परतों को बनारस के छात्र शिक्षक,लेखक,पत्रकार खोलते रहे।अपनी कविता पर केदार प्रभाव को स्वीकारते हुए कवि  और प्राध्यापक श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि केदार जी की कविता में हजारों साल की परम्परा बोलती है इसलिए हिंदी काव्य पीढ़ियों पर आजादी के बाद सबसे ज्यादा
प्रभाव केदार की कविता का है।केदार जी में बुद्ध की करुणा कबीर का कौतूहल और निराला का कोलाहल एक साथ है।कवि और चबूतरा संस्थापक शिक्षक रामाज्ञा शशिधर ने कहा कि केदार जी की काव्य शक्ति की कुंजी चकिया गाँव और बनारस के पास है न कि दिल्ली या तीसरा सप्तक के पास।केदारजी लोकतंत्र के व्याख्याता कवि नहीं बल्कि देशज आधुनिकता और सभ्यता विमर्श के कवि हैं।केदारजी बिम्ब विधान के नहीं बल्कि बिम्बों की गहरी राजनीति के कवि हैं।केदारजी मानवीय आदिम वासना और प्रकृति के आपसी सहज रिश्तों के जिज्ञासु कवि हैं।केदारजी  आधुनिक मनुष्य की घिसी पिटी इन्द्रियों को नई धार देनेवाले माइक्रो बिम्ब के क्राफ्ट्समेन हैं।पुरस्कार और चेलावाद से मुक्ति के बाद केदारजी का
पुनर्मूल्यांकन जरूरी होगा।
फ़ोटो जर्नलिस्ट अनिरुद्ध
पांडेय ने कहा कि मालवीय चबूतरे जैसी लोक और ज्ञान की विरासत पर केदार जी पर जीवंत बहस से प्रमाणित है कि केदार जी हिंदी कविता के सायादार पेड़ हैं।नीलेश कुमार ने कहा कि केदारनाथ सिंह बेहद राजनीतिक कवि हैं जहां हॉकर भी वियतनाम वियतनाम चिल्लाता है।आशीष पांडेय ने कहा कि केदारजी बिम्ब के माध्यम से भाषा के मूल रचनात्मक स्वाभाव और शक्ति को वापस लाते हैं। केदार की बनारस कविता सुनकर एक अमेरिकी बुढ़िया इसलिए रोती है कि उम्र के उस पड़ाव पर वह कविता में चित्रित महान शहर की भव्यता नहीं देख पाएगी।शिवकुमार यादव ने कहा कि केदारजी लोक और किसान चेतना के कवि हैं।
               लगभग एक दर्जन पसंदीदा कविताओं का पाठ हिंदी विभाग के नवोन्मेषी छात्र छात्राओं ने किया।केदार की कविताओं की मानस पर पड़ी छाप की उन्मुक्त अभिव्यक्ति उपस्थित विद्यार्थियों ने की।केदार की कविता की लोकप्रियता है कि कई राहगीर पाठकों ने भी चबूतरे से जुड़ते हुए
शब्दांजलि दी।अरुण तिवारी का संचालन सराहनीय रहा।
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✒चबूतरे पर केदारनाथ सिंह की छवि प्रदर्शिनी✒
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...केदारजी आधा हैं और आधा नहीं हैं।बनारस की तरह!अमर उजाला के फोटो जर्नलिस्ट अनिरुद्ध पांडेय की कैमरे से उतारी गई केदारनाथ सिंह की तस्वीरों में से चुनी हुई  तस्वीरें आज ऐसा ही कह रही हैं।बलिया केदारजी की लोक चेतना  और बनारस साहित्य चेतना का घर रहा।अनिरुद्ध पांडेय अपनी संवेदनशील और मर्मी आँखों से बनारस की आर्काइव रोज समृद्ध करते हैं।आज सुबह नगर के घुमक्कड़ छविकार अनिरुद्ध पांडेय ने  मालवीय चबूतरे को केदारजी की छवियों से इतना आत्मीय बना दिया कि बरगद की हर पत्ती केदारमय हो गई।अनिरुद्ध जी को चबूतरे की ओर से आभार!

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