'हिंदी उर्दू की साझी विरासत और स्त्री लेखन' पर बात करते हुए मुझे ध्यान आया कि हिंदी उर्दू स्त्रीलिंग होते हुए भी स्त्री मुक्ति की राह में बाधा बनकर शुरू से खड़ी हैं।खुद एक जबान होकर राजनीतिक और भौगोलिक बंटवारे से पहले ही सियासी फायदे के लिए बंट गई।समाज की सत्ता से बाजार की सत्ता तक की यात्रा में बहनें,माँ बेटी आदि टर्म
स्त्री को घूँघट और बुर्कादार बनाने के सतत् औजार हैं।क्या कारण है कि आज़ादी के बाद उँगलियों पर गिनी उर्दू और हिंदी की कथाकार और कवि हैं?समकालीन वक्त में हमारी मुसलमान लेखिकाओं से ज्यादा रेडिकल लेखिकाएं पकिस्तान और बांग्लादेश में क्यों हैं?आज कल्चर,धर्म,रवायत,विरासत,नफासत को नए सिरे से रीविजिट करने की जरूरत है।पूरा माहौल धर्म और मजहब के सियासीकरण पर आश्रित होता जा रहा है।दोनों भाषाओं में धर्म के डिक्शन बढ़ते जा रहे हैं।पुरुष सत्ता दोनों भाषाओं की संचालिका हैं।हलाला और सामंती शादी प्रथा से बिना मुक्त हुए औरत के लिए आज़ादी ब्रांड नहीं बन सकती।औरतों को घर के भीतर ओवन स्लेव और बाहर मिलिटेंट बनाने की मुहिम जारी है।धर्म उस नाव की तरह है जिसे जबरन रस्सी और कंधों के सहारे रेत पर खींचा जा रहा है।ग्राममुक्त और इंस्टाग्राम से युक्त दुनिया में जब लेखक के मसीहा होने की सम्भावना मर चुकी है हर पाठक एक लेखक है।तब आज फिर हिंदी उर्दू की बंटवारे से पहलेवाली जमीन लौट आई है।आने वाले वक्त में दोनों समाज जितनी जल्दी एक होकर नए स्वप्न रचें मानवता और औरत के हक में है।दिलचस्प तो यह है कि हिंदी अब हिंग्लिश और उर्दू उग्लिश बनकर अपने बंटवारे की सियासी और अदबी विरासत से बदला ले रही है।
30 मार्च, 2018
समकालीन हिंदी में मुसलमान लेखिकाएं कम क्यों हैं:रामाज्ञा शशिधर
साहित्य लेखन , अध्यापन, पत्रकारिता और एक्टिविज्म में सक्रिय. शिक्षा-एम्.फिल. जामिया मिल्लिया इस्लामिया तथा पी.एचडी.,जे.एन.यू.से.
समयांतर(मासिक दिल्ली) के प्रथम अंक से ७ साल तक संपादन सहयोग.इप्टा के लिए गीत लेखन.बिहार और दिल्ली जलेस में १५ साल सक्रिय .अभी किसी लेखक सगठन में नहीं.किसान आन्दोलन और हिंदी साहित्य पर विशेष अनुसन्धान.पुस्तकालय अभियान, साक्षरता अभियान और कापरेटिव किसान आन्दोलन के मंचों पर सक्रिय. . प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए कार्य. हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं हंस,कथादेश,नया ज्ञानोदय,वागर्थ,समयांतर,साक्षात्कार,आजकल,युद्धरत आम आदमी,हिंदुस्तान,राष्ट्रीय सहारा,हम दलित,प्रस्थान,पक्षधर,अभिनव कदम,बया आदि में रचनाएँ प्रकाशित.
किताबें प्रकाशित -1.बुरे समय में नींद 2.किसान आंदोलन की साहित्यिक ज़मीन 3.विशाल ब्लेड पर सोयी हुई लड़की 4.आंसू के अंगारे 5. संस्कृति का क्रन्तिकारी पहलू 6.बाढ़ और कविता 7.कबीर से उत्तर कबीर
फ़िलहाल बनारस के बुनकरों का अध्ययन.प्रतिबिम्ब और तानाबाना दो साहित्यिक मंचों का संचालन.
सम्प्रति: बीएचयू, हिंदी विभाग में वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर के पद पर अध्यापन.
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