📒दिल्ली फ़ाइल-2📒
📚राहुल बाबा:एक ऑर्गेनिक बुद्धिजीवी📚
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दिल्ली बदली बदली सी है।आजकल बदली का ही मौसम है।बदली के माहौल में दिल्ली में हूँ।काशी से दिल्ली आना बेगूसराय की अपेक्षा आसान है।दूरी कम है।पुरानी यादों,सड़कों,ज्ञान कला केंद्रों और आत्मीय सहयात्रियों से जुड़ना स्वयं की खोई हुई तलाश है।
राहुल बाबा पर बहस है,इसलिए यह विचार यात्रा जरूरी है।आज राहुल बाबा जैसे ऑर्गेनिक बुद्धिजीवी की जरूरत ज्यादा है।वे ऑर्गेनिक इसलिए थे क्योंकि एक साथ एक्टिविस्ट,खोजकर्ता,घुमक्कड़,दार्शनिक और लेखक थे।वे वेदांत पुराण के समांतर खोए हुए बुद्ध की खोज कर सकते थे।वे बिहार के किसान शोषण के विरुद्ध लाठी खा सकते थे।वे हाथी,हथकड़ी और जेल से न डरते हुए जन भाषा में जन सत्याग्रह कर सकते थे।वे भोजपुरी में भाषण ही नहीं देते थे बल्कि 8 नाटक लिखकर एक साथ फिरंगी सत्ता,फासिस्ट सत्ता और सामंती सत्ता से लोहा ले सकते थे।राहुल जी कह सकते थे कि मेरा लेखन खेत को कुदाल से कोरने जैसा है।
राहुल बाबा बाईसवीं सदी का राष्ट्र बनाना चाहते थे।इसलिए वे बार बार आह्वान करते थे-भागो नहीं दुनिया को बदलो।आज राष्ट्र की उलटी गिनती शुरू है।जो इतिहास और राष्ट्र के भगोड़े थे वे रामराज्य से दुनिया को बदल देना चाहते हैं।
📒दिल्ली फ़ाइल-3📒
📚राहुलबाबा पर जब चला चोरी का मुकदमा📚
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राहुल बाबा की बेटी जया जी ने राहुल स्मृति संगोष्ठी में प्रोजेक्टर पर ये क्या तस्वीरें दिखाईं-राहुल बाबा दुनिया की सबसे ऊँची जगह तिब्बत की दस हजार फ़ीट के बर्फ देश पर बौद्ध भिक्खु।।
याद आया धर्मशाला में अपने ही देश तिब्बत से जान बचाकर छिपे दलाई लामा और हजारो लामा।नालंदा ट्रेडिशन के जीवंत प्रहरी।स्मृति खंडहर वाले भारत की संवाद शिक्षा पद्धति को बचाए बच्चे।
राहुल बाबा कभी नेपाल के रास्ते कभी कलिंगपोंग की राह।चार यात्राएं।
जया जी की मां कमला जी भी तो कालिंगपोंग में राहुल जी के पहले प्यार रूसी लोला के बहुत बाद तब मिली थी जब वे 55 पार थे और पांडुलिपि सृजन में तल्लीन।राहुल बाबा का हर प्यार पांडुलिपि के पन्नों से होकर निकला।
शब्द और प्यार का अनूठा संसार रचने वाले बाबा चाहते थे कि ब्रिटिश द्वारा गढ़ी गई भारत की छवि को नष्टकर वे पुराना भारत खोज लाएं।आज बुद्ध का वह बर्फ देश ड्रेगन देश की तोप से कब्जा है।
क्या आप जानते हैं कि आज राहुल बाबा तिब्बत के मठों से क्यों बुद्ध को नहीं ला सकते थे?इसलिए कि ड्रैगन का अघोषित आपातकाल उन प्राचीन तालपत्रों पर भी है जिनमें राष्ट्र और राजनीति की बू तक है।यह जानकारी मुझे भारत में स्थापित निष्कासित तिब्बत मंत्रालय की लायब्रेरी से हिमालय यात्रा के दौरान मिली।खैर।
यह दूसरी तस्वीर आज के लेखकों एक्टिविस्टों की याद दिलाती है-महापंडित राहुल बाबा के हाथों में हथकड़ी।अगल बगल सिपाही।जमाना अंग्रेजीराज का।साजिश भूमिलूटरों की।
बुद्ध की करुणा और शांति के हजारों पन्नों का बंडल खच्चर पर चार पर्यटन में नहीं,चार यात्राओं में लाने वाले बाबा जब भारत को नालंदा वापस करना चाह रहे थे तब भारत की सत्ता ने उन्हें किसान सत्याग्रही होने के कारण चोरी का आरोप लगाया,हथकड़ी पहनाई और सीवान छपरा हजारीबाग जेल की हवा खिलाई।
यह हथकड़ी वाली ऑरिजिनल तस्वीर मुझे किसान आंदोलन पर सामग्री जमा करते हुए 1939 में प्रकाशित जनता की तीनमूर्ति लाइब्रेरी की फ़ाइल में मिली थी।किसी ने कैमरे से केप्चर कर लिया था।तब हाहाकार मचा था।
...फर्क और फर्क।बुद्धिजीवी के आंदोलन,संघर्ष,आवाज,शब्द,सत्याग्रह को तब भी बलवा,उत्पात,राष्ट्रद्रोह,हिंसा,चोरी,डकैती कहा जाता था और आज भी।राहुल बाबा का गुनाह था कि वे भोजपुरिया किसान के शोषण से मुक्ति के लिए चंपारण सत्याग्रह की अर्जी से आगे बढ़कर जमींदार-अंग्रेज द्वारा छीने गए खेत में जनमर्जी से ऊख कटवा रहे थे।जमीन किसकी।जोते उसकी।
आज साढ़े तीन लाख आत्महत्या कर चुके किसानों के देश में किसी किसान की अस्थि की पूछ नहीं है।तब एक लेखक नागार्जुन खेत और जेल में साथ थे तो दूसरे लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी जनता में फ़ोटो खबर और लेख छाप रहे थे,तीसरे काशी प्रसाद जायसवाल,दिनकर, माखनलाल चतुर्वेदी आदि बाबा के कार्य का लेखा जोखा जनता तक पहुंचा रहे थे।आज किसान और किसान साहित्य की किसे चिंता है।
राहुल बाबा ने बुद्ध से एक छोटी सी नाव ली थी और विचार भी।नाव नदी पार करने के लिए है रेत पर खींचने के लिए नहीं।आज पढ़े लिखे लोग भी धर्म और पाखंड की नौका कंधे पर लिये जीवित नरक की यात्रा में आनंदमय हैं।
इसलिए किसान या तो विस्थापित हैं या हथकड़ी में या सल्फास और कपास की रस्सी के शिकार।हमें बुद्ध की दी गई नौका का सही उपयोग करना होगा।
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दिल्ली विश्वविद्यालय के आत्माराम सनातन धर्म कालेज में 125वीं राहुल सांकृत्यायन स्मृति गोष्ठी में जया सांकृत्यायन के अलावा मैनेजर पांडेय,मणीन्द्र नाथ ठाकुर,उर्मिलेश,गोपाल प्रधान,कमलनयन चौबे,प्रदीपकांत चौधरी आदि के विचार औपनिवेशिक और उत्तर औपनिवेशिक समय की गहरी शिनाख्त करते हैं।जरूरत है राहुल जी की तरह मरकस बाबा बनने की।
1944 में भागो नहीं दुनिया को बदलो किताब हिंदी में किसान और आमजन के राजनीतिक प्रशिक्षण की पहली जन किताब है।जन किताब इसलिए कि कई जन भाषाओँ की खिचड़ी हिंदी में वह किसान द्वारा व्यवस्था बदलाव के लिए लिखी गई है।
राहुल जी अक्सर फुटपाथ पर दिखाई पड़ते हैं लेकिन विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में नहीं।जबाव साफ़ है।बुद्ध से लाये अंगार से डर।जरूरत है राहुल की पांडुलिपियों के उद्धार की।क्रूर और संकीर्ण राष्ट्रवाद के ज़माने में राहुल बाबा की यूरो केंद्रित आधुनिकता और औपनिवेशिकता विरोधी चेतना से रचित महान ग्रन्थ मध्य एशिया का इतिहास फिर से केंद्र में लाने की जरूरत है।बुद्ध की करुणा और मानवता से जुड़ने के लिए।
प्रदीप कांत चौधरी की मांग जायज है कि क्यों नहीं आज यूरोप और अमेरिका को चुनौती देने के लिए राहुल सांकृत्यायन साऊथ सेंट्रल एशियन यूनिवर्सिटी की स्थापना भारत सरकार को करनी चाहिए।
लेकिन जो सरकार जेएनयू जैसी शोध विचार की महान संस्था को स्लो और फ़ास्ट पोइजन से नष्ट कर रही है उससे हम और क्या क्या उम्मीद करें।
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रवीन्द्र की एक कविता है सोने की नाव।
शाम का वक्त है।सुनहले बादलों से भरा आकाश।एक नाविक पश्चिम से सोने की नाव पानी भरे धनखेत से लेकर आ रहा है।किसान के सोने जैसी धान की फसल कटकर तैयार है।नाविक पूरा धान लाद लेता है।किसान कहता है कि मुझे भी ले चलो।जवाब मिलता-ए किसान।मेरी सोने की नौका तुम्हारे सोने के धान से भर गई।अब तुम्हारे लिए जगह नहीं है।
बुद्ध की नाव चोरी हो गई है।पूरब और पश्चिम दोनों दिशाओं के दो नाविक सोने का धान लूट रहे हैं।आखिरी खेप है।
कोई आए और राहुल बाबा की तरह भिक्खु के वेश में नाव को थाम ले और किसान को बैठा ले।
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